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नेपाल में सत्ता परिवर्तन के पीछे कौन, चीन या अमेरिका? जानें क्यों उठ रहे सवाल

Nepal Protest News: नेपाल में भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुआ जेन-जी प्रदर्शन अचानक उग्र हो गया। 8 सितंबर को मामूली विरोध के रूप में शुरू हुए इस आंदोलन ने रात तक हिंसक रूप ले लिया, जिसमें कई लोगों की मौत हो गई। सरकार ने सोशल मीडिया बैन हटाया और इस्तीफे भी हुए, लेकिन प्रदर्शन फिर भी नहीं थमा। अब सवाल उठ रहा है कि क्या यह केवल जन असंतोष है या फिर विदेशी ताकतों का खेल?

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Avinash Tiwari Updated: Sep 10, 2025 11:15
Nepal Protest
नेपाल में भयंकर (फोटो सोर्स- ANI)

Nepal Protest News: भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर बैन के खिलाफ नेपाल में जेन-जी प्रदर्शन शुरू हुआ। 8 सितंबर को दोपहर तक यह एक मामूली प्रदर्शन लग रहा था, लेकिन रात होते-होते प्रदर्शन उग्र हो गया। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए गोलीबारी हुई, जिसमें लगभग 20 लोगों की मौत हो गई। सरकार ने सोशल मीडिया पर लगाया गया बैन हटा लिया, लेकिन अगले दिन आंदोलन और उग्र हो गया। नेताओं के निजी आवासों, राजनीतिक दलों के कार्यालयों, सरकारी इमारतों में आगजनी शुरू हो गई। संसद भवन, राष्ट्रपति भवन में आग लगा दी गई। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन इसके बाद भी आंदोलनकारी नहीं रुके। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि इन आंदोलनकारियों का मकसद क्या था और इनके पीछे कौन हैं?

मांग पूरी, नहीं रुका प्रदर्शन

सोशल मीडिया से बैन हटाए जाने, नेपाल के गृहमंत्री समेत प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद भी जब प्रदर्शन नहीं रुका, तो कई तरह के सवाल उठ खड़े हुए। सवाल यह उठने लगा कि क्या नेपाल में फैले जन असंतोष का फायदा कोई और उठा रहा है? यह सवाल इसलिए उठा क्योंकि मांगें मान लिए जाने के बाद भी प्रदर्शनकारी उग्र प्रदर्शन करते रहे, जैसे उनका मकसद मौजूदा सरकार को पूरी तरह खत्म करना हो।

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चर्चा इस बात की भी हो रही है कि नेपाल में जो कुछ हुआ है, उसमें अमेरिका और चीन के बीच की प्रतिद्वंदिता का प्रतिबिंब है। पहले श्रीलंका, फिर बांग्लादेश में हुए बवाल और अब नेपाल में हुए प्रदर्शन में बहुत सी समानताएं हैं। तीनों ही जगहों पर आंदोलन शुरू हुआ, फिर उग्र हुआ और आंदोलनकारियों ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और संसद भवन को निशाना बनाया और अंदर घुस गए।

नेपाल प्रदर्शन के पीछे किसका हाथ?

साल 2017 में नेपाल ने अमेरिका के साथ मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन (MCC) के तहत 500 मिलियन डॉलर (लगभग 4,200 करोड़ रुपये) की अनुदान सहायता का समझौता किया था। हालांकि, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सभी विदेशी विकास सहायता को 90 दिनों के लिए रोक दिया था। इससे नेपाल में चल रहे कई प्रोजेक्ट बंद हो गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1951 से अब तक अमेरिका ने नेपाल को 791 मिलियन डॉलर से अधिक की द्विपक्षीय आर्थिक मदद दी है।

हालांकि, MCC समझौते को नेपाली कम्युनिस्ट पार्टियां अमेरिका की ‘इंडो-पैसिफिक रणनीति’ का हिस्सा मानती हैं, जो चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के जवाब में मानी जाती है।

वहीं, चीन कभी नहीं चाहता था कि अमेरिका नेपाल में निवेश करे, लेकिन नेपाल ने चीन की इस चिंता को दरकिनार करते हुए न सिर्फ अमेरिका से समझौता किया, बल्कि अमेरिकी मदद से कई बड़ी परियोजनाएं भी शुरू कर दीं। नेपाल के इस्तीफा देने वाले प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को चीन का समर्थक माना जाता रहा है। ऐसे में कहा जा रहा है कि नेपाल से चीन का प्रभाव खत्म करने के लिए अमेरिका द्वारा भी इस आंदोलन को बढ़ावा दिया गया हो सकता है। वहीं, अमेरिका पर से भरोसा तोड़ने के लिए नेपाल में फैली अशांति के लिए चीन पर भी सवाल उठ रहे हैं।

यह भी पढ़ें :  दुबई में छिपे हैं नेपाल के पूर्व पीएम ओली, देश में विद्रोह, कैसे रुकेगा आंदोलन?

नेपाल चीन के कर्ज तले दबा हुआ है और अमेरिका भी बड़ी संख्या में मदद कर रहा था। ऐसे में नेपाल सिर्फ एक मोहरा बनकर रह गया। चीन और अमेरिका के नेपाल में निवेश को लेकर भारत भी सतर्क हो गया था और इस पूरे घटनाक्रम पर बारीकी से नजर बनाए हुए था। अब सवाल उठ रहा है कि क्या नेपाल में हुए इतने उग्र प्रदर्शन के पीछे किसी विदेशी ताकत का भी हाथ है?

First published on: Sep 10, 2025 11:15 AM

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