अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 26% टैरिफ (रेसिप्रोकल टैरिफ) लगा दिया है, जो 9 अप्रैल से लागू हो जाएगा। राष्ट्रपति ट्रंप ने देररात टैरिफ चार्ट जारी किया और मीडिया को बताया कि अमेरिका ने किसी देश पर कितना टैरिफ लगाया है। चीन पर 34%, यूरोपीय यूनियन पर 20%, साउथ कोरिया पर 25%, जापान पर 24%, वियतनाम पर 46% और ताइवान पर 32% टैरिफ लगाया गया है। अमेरिका ने करीब 60 देशों पर टैरिफ लगाने का फैसला किया है और यह टैरिफ उनके टैरिफ की तुलना में आधा होगा।
अभी 16 देशों की सूची जारी की गई है, जिन पर टैरिफ लगाया गया है। 10 प्रतिशत बेसलाइन टैरिफ भी लगाया गया है, जो व्यापार नियमों के अनुसार आयात की गई चीजों पर लगाया जाता है, जबकि रेसिप्रोकल टैरिफ किसी दूसरे देश के टैरिफ के जवाब में उस देश से आने वाली चीजों पर लगाया जाता है, लेकिन ट्रंप के टैरिफ का लोगों की जेब पर क्या असर पड़ेगा और इससे अमेरिका को क्या फायदा होगा? आइए जानते हैं टैरिफ को लेकर पूछे गए 4 सवाल और उनके जवाब…
#WATCH | Washington | Speaking at the Make America Wealthy Again Event, US President Donald Trump says, “India very, very tough. The Prime Minister just left and is a great friend of mine, but you are not treating us right. They charge us 52 per cent and we charge them almost… pic.twitter.com/bQ1qH1OEfI
---विज्ञापन---— ANI (@ANI) April 2, 2025
1. क्या अमेरिका द्वारा कलेक्ट टैरिफ जनरल रेवेन्यू फंड में जाता है? क्या ट्रंप बिना निगरानी के उस फंड से पैसे निकाल सकते हैं?
टैरिफ आयात पर लगाया जाने वाला टैक्स है, जिसे विदेशों से आने वाली चीजों पर लगाकर वसूला जाता है। इस टैरिफ से पिछले साल लगभग 80 बिलियन डॉलर रेवेन्यू आया था और यह रेवेन्यू अमेरिका की संघीय सरकार के खर्चों का भुगतान करने में मदद करने के लिए अमेरिका के राजकोष में जाता है। कांग्रेस विपक्षी दल होने के नाते यह पूछने का अधिकार रखता है कि टैरिफ से आया पैसा कैसे खर्च किया जाएगा?
वहीं इस सवाल के जवाब में ट्रंप कहते हैं कि जिन्हें रिपब्लिकन सांसदों का समर्थन प्राप्त है और जो अमेरिकी सीनेट और प्रतिनिधि सभा को नियंत्रित करते हैं, वे बढ़े हुए टैरिफ से आने वाले फंड का इस्तेमाल उस सेक्टर में करेंगे, जहां करों में कटौती की गई है। इस बारे में विश्लेषकों का कहना है कि इससे अमीरों को असमान रूप से लाभ होगा। वाशिंगटन की थिंक टैंक टैक्स फाउंडेशन के अनुसार, ट्रंप की कर कटौती वाली पॉलिसी को आगे बढ़ाने से 2025 से 2034 तक संघीय राजस्व में 4.5 ट्रिलियन डॉलर की कमी आएगी, लेकिन ट्रंप चाहते हैं कि इस भरपाई के लिए टैरिफ बढ़ाए जाएं। एक अन्य थिंक टैंक टैक्स पॉलिसी सेंटर ने कहा है कि 2017 में की गई कर कटौती को आगे बढ़ाने से सभी स्तरों पर अमेरिकियों को कर राहत मिलती रहेगी, लेकिन उच्च आय वाले परिवारों को इसका ज्यादा फायदा मिलेगा।
2. टैरिफ के परिणामस्वरूप कीमतें कितनी जल्दी बढ़ेंगी?
टैरिफ के बाद कीमतें बढ़ना इस बात पर निर्भर करता है कि अमेरिका और विदेशों में टैरिफ पर किस तरह की प्रतिक्रिया आती है, लेकिन उपभोक्ताओं को टैरिफ लागू होने के एक या दो महीने के भीतर महंगाई का सामना करना पड़ सकता है। कीमतों में वृद्धि देखने को मिल सकती है। मैक्सिको से आने वाली चीजों के दाम टैरिफ लागू होने के बाद तेजी से बढ़ सकते हैं। कुछ अमेरिकी ट्रेडर्स और बिजनेसमैन टैरिफ की लागत को वहन कर सकते हैं और विदेशी इंपोर्टर्स अतिरिक्त शुल्क की भरपाई के लिए अपने प्रोडक्ट्स की कीमतें कम कर सकते हैं, लेकिन कई उद्यमियों के लिए ट्रंप द्वारा बुधवार को घोषित टैरिफ बहुत बड़ा और नुकसान पहुंचाने वाला है। खासकर यूरोपियन देशों पर इसका ज्यादा असर पड़ेगा।
कंपनियां टैरिफ का इस्तेमाल कीमतें बढ़ाने के लिए कर सकती हैं। साल 2018 में जब डोनाल्ड ट्रंप ने वॉशिंग मशीनों पर शुल्क लगाया था तो अध्ययन से पता चला कि वॉशर और ड्रायर दोनों की कीमतें बढ़ा दी गई थीं, भले ही ड्रायर पर कोई नया शुल्क नहीं लगाया गया था। आने वाले महीनों में एक अहम सवाल यह है कि क्या फिर से ऐसा ही कुछ होगा? अर्थशास्त्रियों को चिंता है कि उपभोक्ता 4 दशकों में सबसे बड़ी मुद्रास्फीति की मार झेल रहे हैं। कोरोना महामारी से पहले की तुलना में बढ़ती कीमतों के ज्यादा आदी हो गए हैं। फिर भी ऐसे संकेत भी हैं कि पहले से महंगाई झेल रहे अमेरिका के लोग कीमतों में नई वृद्धि को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं और अपनी खरीदारी में कटौती कर रहे हैं। इससे बिजनेस हतोत्साहित हो सकते हैं।
3. टैरिफ लागू करने की शक्तियां किसके पास हैं? क्या कांग्रेस इसमें कोई भूमिका नहीं निभाती है?
अमेरिका का संविधान कांग्रेस को टैरिफ निर्धारित करने की शक्ति प्रदान करता है, लेकिन पिछले कुछ सालों में कांग्रेस ने अलग-अलग कानूनों के जरिए उन सभी शक्तियों को राष्ट्रपति ट्रंप को सौंप दिया। वे कानून उन परिस्थितियों को कंट्रोल करते हैं, जिनके तहत व्हाइट हाउस टैरिफ लगा सकता है, जो आम तौर पर उन मामलों तक सीमित होते हैं, जहां आयात राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचाते हैं या किसी इंडस्ट्री को नुकसान पहुंचाते हैं। राष्ट्रपति आम तौर पर सार्वजनिक सुनवाई के बाद ही टैरिफ लगाते थे, ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में टैरिफ लगाते समय उसी तरीके का पालन किया।
लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप ने 1977 के कानून में निर्धारित आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल करके टैरिफ लगाने की कोशिश की है। उदाहरण के लिए, ट्रंप ने कहा है कि कनाडा और मैक्सिको से आने वाला फेंटेनाइल राष्ट्रीय आपातकाल है और उन्होंने इस बहाने का इस्तेमाल करके दोनों देशों से आने वाले सामानों पर 25% शुल्क लगाया है। कांग्रेस राष्ट्रपति द्वारा घोषित आपातकाल को रद्द करने की मांग कर सकती है और वर्जीनिया के डेमोक्रेट सीनेटर टिम केन ने कनाडा के मामले में ऐसा ही करने का प्रस्ताव रखा है। यह कानून सीनेट में पारित हो सकता है, लेकिन सदन में शायद ही पारित हो पाएगा।
4. क्या अन्य देश अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ लगा रहे हैं?
अमेरिका के टैरिफ आमतौर पर अन्य देशों द्वारा लगाए जाने वाले टैरिफ से कम होते हैं। विश्व व्यापार संगठन के अनुसार, अमेरिका में औसत टैरिफ सिर्फ 2.2% है, जबकि यूरोपीय संघ में यह 2.7%, चीन में 3% और भारत में 12% है। अन्य देश भी अपने किसानों को उच्च टैरिफ से बचाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के टैरिफ से ज्यादा टैरिफ लगाते हैं। उदाहरण के लिए, कृषि उत्पादों पर अमेरिका का टैरिफ 4% है, जबकि यूरोपीय संघ का 8.4%, जापान का 12.6%, चीन का 13.1% और भारत का 65% है।
ट्रंप प्रशासन ने उन टैरिफों को कहीं अधिक बताया है, जो अन्य देश अमेरिका पर लगाते हैं। उदाहरण के लिए, व्हाइट हाउस ने बुधवार को कहा कि यूरोपीय संघ द्वारा अमेरिका पर लगाए जाने वाले टैरिफ 39% के बराबर हैं, जो विश्व व्यापार संगठन के आंकड़ों से कहीं अधिक है। इसमें कहा गया है कि चीन द्वारा लगाए जाने वाले टैरिफ 67% के बराबर हैं। पिछले अमेरिकी प्रशासन ने उन टैरिफ पर सहमति जताई थी, जिन्हें अब ट्रंप ने अन्यायपूर्ण बताया है। वे 1986 से 1994 के बीच चली लंबी बातचीत का नतीजा थे।