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तनाव के बीच ताइवान में फिर दिखा ‘चीनी जासूस’, गुब्बारे से कैसे होती है निगरानी?

China Taiwan Tension: चीन और ताइवान के बीच तनाव चरम पर है। इसी बीच ड्रैगन की एक और हरकत सामने आई है। ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने इसकी पुष्टि की है। पहले भी चीन के खिलाफ ताइवान जासूसी करने के आरोप लगा चुका है। ताजा मामला क्या है, इसके बारे में जानते हैं?

Edited By : Parmod chaudhary | Updated: Nov 25, 2024 21:20
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China Taiwan tension
Photo-Reuters

China Taiwan Row: चीन और ताइवान के बीच तनाव चरम पर है। ड्रैगन ने फिर ताइवान की जासूसी में गुब्बारा छोड़ा है। ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने इसकी पुष्टि की है। गुब्बारा रविवार को दिखा। रक्षा मंत्रालय के अनुसार उत्तरी कीलुंग बंदरगाह से लगभग 111 किलोमीटर दूर यह ताइवान के वायु क्षेत्र में घुसा था। चीन लगातार ताइवान पर दबाव बनाए हुए है। बीजिंग ताइवान को आजाद देश नहीं मानने के बजाय उस पर अपना हक जताता रहा है। बता दें कि दशकों से गुब्बारे का इस्तेमाल जासूसी के लिए हो रहा है। 200 साल पहले इसका इस्तेमाल सबसे पहले हुआ था।

कभी इनका इस्तेमाल वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए होता था। लेकिन अब टूरिज्म, रेस्क्यू आदि कामों में भी गुब्बारों की मदद ली जाती है। ये गुब्बारे स्टेडियम के आकार जितने भी हो सकते हैं। जो जमीन से आसमान में लगभग 40-50 किलोमीटर तक ऊपर जा सकते हैं। ये गुब्बारे अपने साथ कई क्विंटल वजन भी ले जा सकते हैं। इन गुब्बारों को आम प्लास्टिक के थैलों की तरह पॉलीइथिलीन की पतली चादरों से बनाया जाता है। जिसमें हीलियम गैस का इस्तेमाल होता है।

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कई महीने उड़ान भर सकते हैं ऐसे गुब्बारे

ये गुब्बारे हवा में कई महीनों तक भी रह सकते हैं। जिन गुब्बारों को निगरानी के लिए बनाया जाता है, उसमें अत्याधुनिक सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। गुब्बारे के ऊपर टोकरी लगी होती है, जिसको गोंडोला कहा जाता है। ये पैराशूट से जुड़ी होती है। इसमें हाईटेक उपकरण लगाए जाते हैं। जब गुब्बारा अपना काम पूरा कर लेता है तो गोंडोला में खास उपकरण चालू होता है। इसके बाद यह गुब्बारे से अलग हो जाता है। गोंडोला इसके बाद धरती पर लैंड करता है। मौसम की स्थिति के हिसाब से पहले ही इसकी लैंडिंग का अनुमान लगाया जा सकता है।

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इन गुब्बारों का प्रयोग मौसम विभाग से जुड़ीं एजेंसियां भी करती हैं। गुब्बारों के जरिए हवा की गति, दिशा, तापमान, आर्द्रता आदि का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। अंतरिक्ष एजेंसियां भी इन गुब्बारों का प्रयोग करती हैं। इन गुब्बारों को पृथ्वी से लगभग 200 किलोमीटर दूर भी रखा जा सकता है। यहां आमतौर पर उपग्रह रखे जाते हैं। ये गुब्बारे धरती के विशिष्ट इलाकों का निरीक्षण करने में भी कारगर हैं। इन गुब्बारों को दोबारा भी यूज किया जा सकता है।

यूएस बना रहा हाईटेक रडार

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ऐसा गुब्बारा डेवलप कर चुकी है, जो हर साल 4-5 बार यूज होता है। कई यूनिवर्सिटीज में ऐसे गुब्बारों का प्रयोग शोध के लिए भी होता है। गुब्बारा आधारित प्रयोगों को 1936 और 2006 में भौतिकी के लिए दो नोबेल पुरस्कार भी मिल चुके हैं। बड़े गुब्बारे अपने साथ पेलोड ले जा सकते हैं, जो जासूसी में काम आता है। धीमी गति के कारण ये रडार की पकड़ में भी नहीं आते। यूएस ऐसे गुब्बारों को लेकर हाईटेक रडार बना रहा है।

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Edited By

Parmod chaudhary

First published on: Nov 25, 2024 09:20 PM

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