दक्षिण-पूर्व एशिया में थाईलैंड और कंबोडिया के बीच बढ़ते सैन्य संघर्ष वैश्विक चिंता को काफी अधिक बढ़ा दिया है। गुरुवार, 24 जुलाई 2025 को शुरू हुए इस संघर्ष में आधा दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गई और करीब एक दर्जन से ज्यादा लोग घायल हैं, जिनमें ज्यादातर आम नागरिक शामिल हैं। यह विवाद प्रीह विहार और ता मुएन थॉम मंदिरों के आसपास के क्षेत्रों को लेकर उपजा है। वहीं, थाईलैंड ने कंबोडिया पर रॉकेट हमले और ड्रोन तैनाती का आरोप लगाया है, जबकि कंबोडिया ने थाईलैंड पर ‘अनुचित और क्रूर’ सैन्य कार्रवाई का दोषी ठहराया है। इस संघर्ष ने दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों को निचले स्तर पर ला दिया है, जिससे दोनों देशों की सीमा सील कर दी गई है। वहीं, दूतावास के कर्मचारियों की वापसी कराई जा रही है और व्यापारिक प्रतिबंध भी लगे हैं।
भारत पर भी होगा असर?
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच यह संघर्ष 1907 के फ्रांसीसी औपनिवेशिक नक्शे से उत्पन्न हुआ है, जिसने सीमा रेखा को अस्पष्ट छोड़ दिया था। प्रीह विहार मंदिर को लेकर 1962 और 2013 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने कंबोडिया के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन आसपास के क्षेत्रों पर विवाद बना रहा। हाल की घटनाओं जैसे मई 2025 में एक कंबोडियाई सैनिक की मौत और जुलाई 2025 में थाई सैनिकों को घायल करने वाली बारूदी सुरंग ने तनाव को और बढ़ा दिया था।
अभी थाईलैंड ने छह F-16 जेट्स के साथ हवाई हमले किए, जबकि कंबोडिया ने भारी हथियारों और रॉकेट लॉन्चरों का उपयोग किया है। भारत दक्षिण-पूर्व एशिया में एक उभरती हुई शक्ति है और अन्य आसियन (ASEAN) देशों के साथ मजबूत संबंध रखता है, इस कारण भारत भी इस संघर्ष से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो सकता है। भारत का कंबोडिया और थाईलैंड दोनों के साथ सांस्कृतिक, आर्थिक और रणनीतिक संबंध है, और यह क्षेत्रीय स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
First global war over a Shiva temple? Thai artillery hits Cambodia. If it escalates, US v China tech face off. But we Hindus don’t want bloodshed may both nations choose peace.#Thailand #ThailandCambodia #Shivatemple #กองทัพบก #ไทยนี้รักสงบแต่ถึงรบไม่ขลาด #กองทัพอากาศ #ทหารไทย pic.twitter.com/L2QgRSFvLe
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क्या पड़ेगा प्रभाव?
भारत का थाईलैंड और कंबोडिया के साथ व्यापार संतुलित है, लेकिन यह संघर्ष भारत के निर्यात और निवेश को प्रभावित कर सकता है। 2024-25 में भारत का थाईलैंड के साथ व्यापार 1.25 लाख करोड़ रुपये और कंबोडिया के साथ लगभग 4,175 करोड़ रुपये था। थाईलैंड ने अपनी 817 किलोमीटर लंबी सीमा को बंद कर दिया है और कंबोडिया ने थाईलैंड से फल, सब्जियां, बिजली और इंटरनेट सेवाओं के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
वहीं, भारत थाईलैंड को ऑटोमोबाइल पार्ट्स, फार्मास्यूटिकल्स और रसायन का निर्यात करता है। अगर यह संघर्ष लंबा खिंचता है तो आपूर्ति चेन बाधित हो सकती है, जिससे भारतीय निर्यातकों को नुकसान हो सकता है। वहीं, कंबोडिया में फार्मा और कृषि क्षेत्र में भारतीय निवेश है। इस संघर्ष से इसपर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। ASEAN ‘एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस’ के साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौता (FTA) इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण है।
यदि यह संघर्ष आसियान की एकता को कमजोर करता है तो भारत के व्यापारिक हितों पर असर पड़ सकता है। इसके अलावा, थाईलैंड भारतीय पर्यटकों के लिए एक टूरिस्ट प्लेस है, जहां हर साल लगभग 18 लाख भारतीय पर्यटक जाते हैं। सीमा बंद होने और युद्ध की आशंका से पर्यटन उद्योग प्रभावित हो सकता है, जिससे भारत के ट्रैवल ऑपरेटर्स और एयरलाइंस को नुकसान होगा।
रणनीतिक और भू-राजनीतिक प्रभाव
भारत ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के तहत आसियान के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है। थाईलैंड और कंबोडिया दोनों आसियान सदस्यों के बीच यह संघर्ष क्षेत्रीय एकता को कमजोर कर सकता है, जिससे भारत की रणनीतिक योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं। आसियान की मौजूदा मलेशियाई नेतृत्व ने इस मामले में मध्यस्थता की पेशकश नहीं की है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है। कंबोडिया का चीन के साथ गहरा सैन्य और आर्थिक संबंध है, जबकि थाईलैंड अमेरिका का गैर-नाटो सहयोगी है। इस संघर्ष में चीन ने दोनों देशों से संयम बरतने और बातचीत के जरिए समाधान की अपील की है, लेकिन वह कंबोडिया का समर्थन करता है।
वहीं, भारत जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है, इस संघर्ष से उत्पन्न भू-राजनीतिक जटिलताओं का सामना कर सकता है। यदि कंबोडिया में चीन का प्रभाव और बढ़ता है तो भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और हिंद-प्रशांत रणनीति पर असर पड़ सकता है। दक्षिण-पूर्व एशिया में अस्थिरता भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह क्षेत्र भारत के समुद्री व्यापार मार्गों और इंडो-पैसिफिक रणनीति का हिस्सा है। इस संघर्ष से म्यांमार जैसे अन्य क्षेत्रीय संकटों के साथ मिलकर भारत की सुरक्षा रणनीति पर दबाव पड़ सकता है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध
प्रीह विहार और ता मुएन थॉम जैसे मंदिर खमेर साम्राज्य के हैं, जो भारत की हिंदू और बौद्ध सांस्कृतिक विरासत से जुड़े हैं। भारत ने अतीत में अंगकोर वाट जैसे स्मारकों के संरक्षण में योगदान दिया है। इस संघर्ष से इन सांस्कृतिक स्थलों को नुकसान पहुंच सकता है, जिसका भारत पर भावनात्मक और सांस्कृतिक प्रभाव होगा। थाईलैंड में लगभग 2.5 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं और कंबोडिया में भी छोटा लेकिन महत्वपूर्ण भारतीय समुदाय है। युद्ध की स्थिति में इन समुदायों की सुरक्षा और निकासी भारत के लिए प्राथमिकता होगी। थाईलैंड ने पहले ही अपने नागरिकों को कंबोडिया से निकलने की सलाह दी है और भारत को भी अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने पड़ सकते हैं।
A new war is approaching: Heavy fighting broke out on the border between Thailand and Cambodia, — CNN.
The Royal Cambodian Army shelled several Thai border towns with multiple rocket launchers.
In response, Thailand closed its border with Cambodia because of these attacks.… pic.twitter.com/HwJVxxfipp— Jürgen Nauditt 🇩🇪🇺🇦 (@jurgen_nauditt) July 24, 2025
पड़ेगा कूटनीतिक प्रभाव
इस संघर्ष में 40,000 से अधिक थाई नागरिकों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है, और कंबोडिया ने भी अपने नागरिकों को सीमावर्ती क्षेत्रों से हटाने की सलाह दी है। यदि यह संघर्ष बढ़ता है तो शरणार्थी संकट उत्पन्न हो सकता है, जिसका भारत पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा। भारत क्षेत्रीय मानवीय सहायता में सक्रिय रहा है। भारत ने ऐतिहासिक रूप से गैर-पक्षपातपूर्ण रुख अपनाया है। 1981 में जब इंदिरा गांधी ने थाईलैंड पर कंबोडियाई प्रतिरोध का समर्थन करने का आरोप लगाया था तो थाई मीडिया ने इसे सोवियत संघ के पक्ष में बताया था। वर्तमान में भारत के लिए इस संघर्ष में तटस्थ रहते हुए शांति वार्ता को बढ़ावा देने की कोशिश करनी होगी।
क्या होगा वैश्विक प्रभाव?
दक्षिण-पूर्व एशिया में म्यांमार का चल रहा गृहयुद्ध पहले ही क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर रहा है। थाईलैंड-कंबोडिया संघर्ष इसे और जटिल बना सकता है, जिससे भारत को अपनी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को फिर से समायोजित करना पड़ सकता है। इस संघर्ष में चीन और अमेरिका की परोक्ष भागीदारी भारत के लिए चुनौती पेश करती है। भारत को अपनी कूटनीति के माध्यम से क्षेत्र में संतुलन बनाए रखना होगा, ताकि वह न तो चीन के प्रभाव में आए और न ही अमेरिका के साथ अपने संबंधों को नुकसान पहुंचाए।
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