Arab-Islamic Summit: अरब और इस्लामी देशों के कई नेता सोमवार को दोहा पहुंचे, जहां पिछले हफ्ते कतर में हमास नेताओं पर इजरायल द्वारा किए गए हमले पर एकजुट प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए एक आपातकालीन बैठक हुई.
हालांकि नेताओं के बीच आगे की रणनीति पर मतभेद थे और वे इजरायल के खिलाफ केवल न्यूनतम कार्रवाई पर सहमत हुए, लेकिन दूसर ओर उन्होंने एक अरब सैन्य गठबंधन के उदय की शुरुआत कर दी है.
क्या NATO का हिस्सा होगा पाकिस्तान?
एकमात्र परमाणु-सशस्त्र मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान ने न केवल आपातकालीन शिखर सम्मेलन में भाग लिया, बल्कि “क्षेत्र में इजरायली योजनाओं पर नजर रखने” के लिए एक संयुक्त कार्य बल के गठन का भी आह्वान किया.
इराकी प्रधानमंत्री मोहम्मद अल-सुदानी ने भी नाटो-शैली के सामूहिक सुरक्षा ढांचे की वकालत की और इस बात पर जोर दिया कि “किसी भी अरब या इस्लामी देश की सुरक्षा और स्थिरता हमारी सामूहिक सुरक्षा का अभिन्न अंग है”.
सऊदी अरब द्वारा शुरू की गई एक दशक पुरानी पहल में आतंकवाद के खिलाफ 34 देशों के इस्लामी गठबंधन के गठन की घोषणा की गई थी. दोहा पर इजरायल के हवाई हमले के बाद अब इस योजना पर तेजी से काम किया जा रहा है.
तो ये देश करेगा अरब नाटो का नेतृत्व?
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को कतर की राजधानी दोहा में हुए एक आपातकालीन अरब-इस्लामी शिखर सम्मेलन में अरब देशों के संयुक्त सैन्य गठबंधन का प्रस्ताव भी पेश किया गया.
यह भी पढ़ें- India US Trade : कौन हैं ब्रेंडन लिंच, जिन पर है 15 देशों की ट्रेड डील की जिम्मेदारी? भारत पर कैसा असर
राजनयिक सूत्रों और अरब मीडिया ने बताया कि शिखर सम्मेलन सोमवार को एक संयुक्त सैन्य गठबंधन के निर्माण का समर्थन करने के लिए तैयार था. इस “अरब नाटो” गठबंधन के लिए सबसे ज्यादा दबाव मिस्र डाल रहा है. मिस्र अरब में सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है. हालांकि, मिस्र के अमेरिका से भी बहुत अच्छे संबंध हैं. मिस्र इजरायल के साथ भी सीमा साझा करता है. ऐसे में अगर “अरब नाटो” का निर्माण होता है तो इसका नेतृत्व मिस्र के हाथों में ही होगा.
रविवार को अरब-इस्लामी शिखर सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर कतर के प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल-थानी ने कहा, “जो हुआ वह केवल एक लक्षित हमला नहीं था, बल्कि मध्यस्थता के सिद्धांत पर और युद्ध व विनाश के विकल्प के रूप में कूटनीति द्वारा प्रस्तुत हर चीज पर हमला था.”