देश में तेजी से बढ़ रहे डिजिटल अरेस्ट के मामलों को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट खुद मैदान में उतर आया है. अदालत ने सोमवार को कहा कि इन मामलों की जांच सीबीआई को सौंपने पर विचार कर रही है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉय माला बागची की बेंच ने साफ कहा कि यह कोई आम साइबर अपराध नहीं है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर का संगठित अपराध है जिसमें म्यांमार, थाईलैंड और अन्य देशों के स्कैम नेटवर्क्स शामिल हैं. कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि इस जटिल नेटवर्क को खत्म करने के लिए इंटरपोल और संयुक्त राष्ट्र यानी यूएन जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की मदद ली जानी चाहिए.
अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी करते हुए आदेश दिया है कि वह अपने-अपने इलाकों में दर्ज डिजिटल अरेस्ट से जुड़ी सभी एफआईआर्स की जानकारी 3 नवंबर तक कोर्ट में पेश करें. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा हम इस पूरे मामले की एक समान और संगठित जांच चाहते हैं ताकि देश भर में फैले ऐसे साइबर नेटवर्क को तोड़ा जा सके. सुनवाई के दौरान सॉलसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि सीबीआई पहले से कुछ ऐसे मामलों की जांच कर रही है. उन्होंने यह भी बताया कि कई स्कैम्स म्यांमार और थाईलैंड के तथाकथित स्कैम कंपाउंड से चलाए जा रहे हैं. वहां भारतीयों को नौकरी का झांसा देकर ले जाया जाता है और उनसे ऑनलाइन ठगी करवाई जाती है. वो इंसानियत की हद तक मजबूर किए जाते हैं. जैसे डिजिटल दास.
जस्टिस बागची ने इस पर टिप्पणी की. सीबीआई के पास क्या इतने संसाधन हैं कि वह देश भर के सभी मामलों को संभाल सके. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जांच एजेंसी के पास पर्याप्त तकनीकी और मानक बल मौजूद है.









