नई दिल्ली: मादा चूजा ही पैदा हो। इसलिए फार्म हाउसों में अजब तरीका अपनाया जाता है। peta india की हालिया रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक नर चूजों को अधिक काम का नहीं माना जाता। पोल्ट्री फार्म चूजों के साथ अत्याचार हो रहा है। इसे लेकर #SaveChicks मुहिम सोशल मीडिया पर शुरू की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक हैचर आमतौर पर बिजली से चलने वाले इनक्यूबेटर में अंडे रखते हैं। जिससे चूजों को जन्म से अंग विकृति और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता है।
Respected @PRupala, male (as they can’t lay eggs) & other unwanted chicks in the meat & egg industry are drowned, crushed, ground up & fed alive to fish and dogs.
---विज्ञापन---Please make ovo-sexing tech available in India to #SaveChicks. pic.twitter.com/AYNghHpkJX
— PETA India (@PetaIndia) October 1, 2022
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संवेदनशील जननांगों पर जोर से दबाते हैं
इसके अलावा जब चूजे निकलते हैं फार्म हाउसों पर काम करने वाले श्रमिक उनके लिंग का निर्धारण करने के लिए पक्षियों के संवेदनशील जननांगों पर जोर से दबाते हैं। अंडा उद्योग में नर पक्षियों को बेकार माना जाता है क्योंकि वे अंडे का उत्पादन नहीं करते हैं। जबकि मांस और अंडा दोनों उद्योगों में कई चूजों को आकार या स्वास्थ्य के मुद्दों के कारण खारिज कर दिया जाता है और इसलिए उन्हें मार दिया जाता है।
चूजों को आग लगा दी जाती है
अवांछित नर और अन्य चूजों को आग लगा दी जाती है। जिंदा जमीन पर गिरा दिया जाता है। बड़े डिब्बे में फेंक दिया जाता है और मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। उन्हें जिंदा दफन कर दिया जाता है, या कुचल दिया जाता है। इतना ही नहीं कुछ को कुत्तों द्वारा खाने के लिए जमीन पर फेंक दिया जाता है और दूसरों को मछलियों को खिलाया जाता है। इस तरह के ‘निपटान’ तरीके न केवल क्रूर होते हैं वे पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनते हैं।
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा अंडा उत्पादक
बता दें भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा अंडे का उत्पादक और मांस का आठवां सबसे बड़ा उत्पादक है। आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना देश के शीर्ष अंडा उत्पादक हैं। उत्तर प्रदेश मांस का सबसे बड़ा उत्पादक और कुक्कुट मांस उत्पादन में अग्रणी है। पेटा इंडिया के मुताबिक जांच की गई कई कंपनियों की मौजूदगी दूसरे राज्यों में भी है। इस कारण से नवीनतम जांच के निष्कर्षों को देश भर में इन उद्योगों में चूजों की स्थिति का संकेत माना जा सकता है।
चूजों को अलग-अलग रंगों में रंगते हैं
कभी-कभी छोटे पोल्ट्री फार्मों को मांस के लिए या निजी एजेंटों को बेचा जाता है जो उन्हें फेरीवालों (हॉकर्स) पर बेचते हैं। ऐसे फेरी वाले आमतौर पर उन्हें अलग-अलग रंगों में रंगते हैं और उन्हें खिलौनों के रूप में खेलने के लिए बच्चों को बेचते हैं। ये रंग-बिरंगे, डरे हुए चूजे कभी-कभी एक दिन भी जीवित नहीं रहते।
यह है नियम
जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम (पीसीए) अधिनियम, 1960 की धारा 3 में कहा गया है, ‘किसी भी जानवर की देखभाल या प्रभार रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे जानवर की भलाई सुनिश्चित करने के लिए सभी उचित उपाय करे और अनावश्यक दर्द या पीड़ा के ऐसे जानवर पर प्रहार को रोकने के लिए।’ पीसीए अधिनियम, 1960 की धारा 11 (1) (एल) के अनुसार, यह एक अपराध है जब कोई भी मानव ‘किसी भी जानवर को काटता है या किसी जानवर को मारता है (आवारा कुत्तों सहित) … किसी अन्य अनावश्यक रूप से क्रूर तरीके से’। इस धारा के तहत अपराध एक संज्ञेय अपराध है।