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क्यों लगी थी कानून की देवी की आंखों पर पट्टी? अब कानून ‘अंधा’ नहीं रहा!

Supreme Court Of India : भारत में अक्सर न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी लगी होती थी, क्या आप जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता था? अब एक तस्वीर सामने आई है, जिसमे आंखों से पट्टी हटा दी गई और हाथ में संविधान की कॉपी दी गई है।

Edited By : Avinash Tiwari | Updated: Oct 17, 2024 11:49
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Supreme Court Of India

Supreme Court Of India : कोर्ट में अक्सर आपने एक महिला की मूर्ति जरूर देखी होगी। इसे न्याय की देवी कहा जाता है। न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू था और आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी लेकिन अब न्याय की देवी बदल गईं हैं। अब देवी की आंखों से पट्टी हटा ली गई है। हाथ में तराजू और आंखों पर पट्टी बांधने का क्या मतलब था? आइये जानते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में नई लेडी जस्टिस की प्रतिमा की आंखों पर से पट्टी हटा दी गई है। अब एक हाथ में तलवार की जगह संविधान की किताब है जो इस बात का प्रतीक है कि भारत में कानून अब अंधा नहीं है। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के आदेश पर इस प्रतिमा का निर्माण किया गया था।

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क्या आंखों पर लगी थी पट्टी?

इससे पहले, न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी और तराजू, तलवार पकड़ी हुई दिखाई देती थीं। आंखों पर पट्टी बांधने का मतलब था कि कानून सभी के लिए समान। मतलब जिसका अर्थ था कि न्याय धन, शक्ति या स्थिति की परवाह किए बिना दिया जाना चाहिए। तराजू संतुलन और निष्पक्षता का प्रतिनिधित्व करता था, जबकि तलवार कानून की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती थी।


अब नई प्रतिमा में बदलाव को लेकर सकारात्मक प्रभाव की बात कही जा रही है। मूर्ति की आंखों से पट्टी हटाने का मतलब है कि नए भारत में कानून अंधा नहीं है। बता दें कि यह प्रतिमा अब सुप्रीम कोर्ट के जजों की लाइब्रेरी में खड़ी है। दावा किया जा रहा है कि इस मूर्ति को अप्रैल 2023 में ही नई जज लाइब्रेरी के पास लगाया गया था लेकिन अब इसकी तस्वीरें सामने आई हैं जो वायरल हो रही हैं।

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NDTV की एक रिपोर्ट के अनुसार, CJI चंद्रचूड़ का मानना ​​है कि कानून अंधा नहीं है और इसके समक्ष सभी समान हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्याय की देवी का स्वरूप बदला जाना चाहिए। प्रतिमा के एक हाथ में संविधान होना चाहिए, न कि तलवार, ताकि देश में यह संदेश जाए कि वह संविधान के अनुसार न्याय करती हैं। तलवार हिंसा का प्रतीक है, लेकिन अदालतें संवैधानिक कानूनों के अनुसार न्याय करती हैं।

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Edited By

Avinash Tiwari

First published on: Oct 17, 2024 11:48 AM

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