MP News: मध्य प्रदेश में आज जननायक टंट्या मामा भील का बलिदान दिवस मनाया जा रहा है, इंदौर में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बड़ा ऐलान किया है, आज से इंदौर के भंवरकुआं चौराहे का नाम बदल जाएगा, अब भंवरकुआं चौराहे को टंट्या मामा भील के नाम से जाना जाएगा, इससे पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने टंट्या मामा की प्रतिमा का अनावरण भी किया।
भंवरकुआं चौराहे पर लगी टंट्या मामा की प्रतिमा
मध्य प्रदेश में टंट्या मामा भील का बलिदान दिवस जोरशोर से मनाया जा रहा है, बता दें कि पहले भी भंवरकुआं चौराहे का नाम टंट्या मामा के नाम पर रखने की मांग उठी थी, लेकिन अब नाम बदल दिया गया है, इससे पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भंवरकुआं चौराहे पर पहुंचकर टंट्या मामा की प्रतिमा का लोकार्पण किया, सीएम शिवराज ने कहा कि आज से ”भंवरकुआं चौराहे का नाम टंट्या मामा चौराहा होगा, सीएम ने कहा कि इस चौराहे का सौंदर्यीकरण भी किया जाएगा। इस दौरान उन्होंने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि अब तक एक परिवार के लोगों का नाम चल रहा था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, इंदौर आने से पहले मुख्यमंत्री टंट्या मामा की जन्मस्थली पातालपानी भी पहुंचे थे।
बता दें कि इंदौर के पास ही पातालपानी में टंट्या मामा का जन्म हुआ था, ऐसे में इंदौर में लंबे समय से किसी जगह का नाम उनके नाम पर करने की मांग उठ रही थी, जिसके लिए भंवरकुआं चौराहे को चुना गया, भंवरकुआं चौराहे पर अब टंट्या मामा की प्रतिमा भी लगा दी गई है।
इंदौर से 25 किलोमीटर दूर है पातालपानी
टंट्या मामा की जन्मस्थली पातालपानी इंदौर से करीब 25 किलोमीटर दूर है, इसी जगह पर टंट्या भील ने अंग्रेजों की रेलगाड़ियों को तीर कामठी और गोफन के दम पर अपने साथियों के साथ रोक लिया करते थे, इन रेलगाड़ियों में भरा धन ,जेवरात, अनाज, तेल, नमक लूट कर गरीबों में बांट दिया करते थे. टंट्या भील देवी के मंदिर में आराधना कर शक्ति प्राप्त करते थे और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर आस पास घने जंगलों में रहा करते थे। टंट्या भील 7 फीट 10 इंच के थे और काफी शक्तिशाली थे, उन्होंने अंग्रेजों से जमकर लड़ाई लड़ी थी।
कौन थे टंट्या मामा भील
टंट्या मामा भील को आदिवासियों का जननायक माना जाता है, बताया जाता है कि साल 1842 खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बडदा में भाऊसिंह के घर टंट्या का जन्म हुआ था, पिता ने ही टंट्या को लाठी-गोफन व तीर-कमान चलाने का प्रशिक्षण दिया, इसके अलावा वह धनुष बाण चलाने में भी माहिर थे, जब वह युवावस्था थे, तभी उन्होंने अंग्रेजों के सहयोगी साहूकारों की प्रताड़ना से तंग आकर वह अपने साथियों के साथ जंगल में कूद गया. टंट्या मामा भील ने आखिरी सांस तक अंग्रेजी सत्ता की ईंट से ईंट बजाने की मुहिम जारी रखी थी, जिसके चलते ही उन्हें आदिवासियों का जननायक माना जाता है।
बलिदान दिवस पर बड़ा आयोजन
बता दें कि टंट्या मामा भील के बलिदान दिवस पर बड़ा आयोजन किया जा रहा है, इंदौर में आयोजित कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के 30 से भी ज्यादा जिलों के आदिवासियों को बुलाया गया है, करीब 2300 बसों में आदिवासियों को इंदौर लाया जा रहा है, राजनीतिक जानकारों की माने तो पूरा मामला 2023 में होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है, क्योंकि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटबैंक सबसे ज्यादा अहम भूमिका निभाएगा, प्रदेश की 230 सीटों में एससी एसटी वर्ग के लिए 35 और आदिवासी वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. इतना ही नहीं करीब 84 सीटें ऐसी हैं, जिनपर आदिवासी वोट बैंक का खासा प्रभाव रहता है, इसलिए बीजेपी की आदिवासी वोटबैंक पर पूरी नजर है।