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Interview: सच्ची घटनाओं पर आधारित बिश्वजीत झा का नया उपन्यास ‘मॉडर्न बुद्धा’

News24 Literature: पत्रकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता, बिश्वजीत झा ने अपनी दूसरी पुस्तक, ‘मॉडर्न बुद्धा’ हाल ही रिलीज की है। बिश्वजीत की पहली किताब “बाइक एम्बुलेंस दादा,” जिसे पेंगुइन रैंडम हाउस द्वारा प्रकाशित किया गया था। इस पर जल्द ही बॉलीवुड बायोपिक के रूप में प्रदर्शित की जाएगी। भारत और भूटान दोनों की सांस्कृतिक एवम […]

Edited By : News24 हिंदी | Updated: Feb 3, 2024 02:19
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Biswajit Jha

News24 Literature: पत्रकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता, बिश्वजीत झा ने अपनी दूसरी पुस्तक, ‘मॉडर्न बुद्धा’ हाल ही रिलीज की है। बिश्वजीत की पहली किताब “बाइक एम्बुलेंस दादा,” जिसे पेंगुइन रैंडम हाउस द्वारा प्रकाशित किया गया था। इस पर जल्द ही बॉलीवुड बायोपिक के रूप में प्रदर्शित की जाएगी।

भारत और भूटान दोनों की सांस्कृतिक एवम भौगोलिक सुंदरता के बीच बसी, बिश्वजीत द्वारा लिखित यह कहानी, ‘मॉडर्न बुद्ध,’ अपने आप में अद्वितीय है। गर्व की बात यह है की पहले किसी भी भारतीय लेखक ने इस प्रकार भूटान की सकल राष्ट्रीय खुशी (जीएनएच) की असाधारण अवधारणा को एक उपन्यास में तलाशने का प्रयास नहीं किया है।

बिश्वजीत ने कहा कि ऐसे समय में जब दुनिया में शांति, पॉजिटिविटी और खुशी की सबसे ज्यादा ज़रूरत है, यह किताब बताती है कि कैसे भूटान के लोगों ने कुछ सरल और बुनियादी मूल्यों को अपनाकर अपना जीवन सरल बनाया है।

बिश्वजीत झा, दिल्ली में एक आलीशान जीवन को पीछे छोड़, पश्चिम बंगाल के उत्तरी भागों में अपने क्षेत्र के वंचित बच्चों के लिए काम करने से पहले 10 साल तक दिल्ली में राष्ट्रीय मीडिया में एक पत्रकार के रूप में काम किया करते थे। लेकिन अब वह अपने सपने को मूल्य रूप से जी रहे हैं। आज बिश्वजीत कई मुफ्त आदिवासी स्कूल चला रहे हैं। वंचित बच्चों के लिए एक फुटबॉल अकादमी और लगभग 50 वंचित बालिकाओं को गोद लेकर और उनका जीवन शिक्षा से प्रकाशित कर रहे हैं ।

बिश्वजीत का जन्म और पालन-पोषण पश्चिम बंगाल के उत्तरी क्षेत्र के एक छोटे से गाँव में एक बहुत ही विनम्र परिवार में हुआ था। उनका बचपन काफी संघर्षपूर्ण रहा और उन्हें पर्याप्त सहयोग भी नहीं मिला। उनके बचपन कि बात है, बिश्वजीत अंग्रेजी सीखना चाहते थे, लेकिन गांव के स्कूल में अंग्रेजी का शिक्षक नहीं था। जब वे आठवीं कक्षा में थे, एक दिन उनके पिता ने एक भूगोल शिक्षक से उन्हें अंग्रेजी पढ़ाने का अनुरोध किया, लेकिन शिक्षक ने मना कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि बिश्वजीत में अंग्रेजी सीखने और जीवन में कुछ भी करने की क्षमता नहीं थी।

लेकिन बिश्वजीत ने हार नहीं मानी और इसे एक चुनौती के रूप में लिया और अपने दम पर अंग्रेजी सीखना शुरू किया। उनकी लगन और मेहनत रंग लाई और वे महज आठ साल बाद एक अंग्रेजी अखबार में पत्रकार बन गए। दिलचस्प बात यह है कि जब वह ग्यारहवीं कक्षा में थे, तभी उन्होंने पहली बार किसी अंग्रेजी अखबार को देखा था।

दिल्ली के प्रतिष्ठित मीडिया नेटवर्क्स में काम करने के बावजूद बिश्वजीत का मन कहीं और ही था। अंतर्मन से वे हमेशा अपने मूल्य क्षेत्र के बच्चों के लिए कुछ करना चाहते थे। लेकिन दिल्ली में उनकी नियमित नौकरी, रोज मर्रा की चिंता उन्हें ऐसा करने से रोक रही थी। दिमाग की बजाय दिल को तवज्जो देते हुए, 2013 में, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने क्षेत्र के वंचित बच्चों की मदद करने के लिए अपनी जड़ों की ओर लौट आए।

हालांकि, उनकी ज़िंदगी का सबसे अनूठा मोड़ 2018 के अंत में आया, जब उन्होंने भूटान के पहले आईटी कॉलेज, जीसीआईटी के अध्यक्ष ल्हातो जंबा से मुलाकात की। जंबा ने उन्हें अपने कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया।

भूटान की यात्रा ने, इस छोटे से हिमालयी देश को जानने का सुनहरा अवसर खोल दिया, जो खुश मिज़ाज और शांतिप्रिय लोगों के लिए जाना जाता है। भूटान में बिताए गए समय में बिश्वजीत की जीवन की धारणा को पूरी तरह से बदल दिया। बौद्ध भिक्षुओं से उनकी मुलाकात ने भी बिश्वजीत पर अपनी आकर्षक छाप छोड़ी।

उन्होंने कहा, जब मार्च 2020 में दुनिया पर COVID-19 का प्रकोप हुआ और लॉकडाउन घोषित किया गया, तो मैंने ‘मॉडर्न बुद्धा’ के रूप में एक परिवर्तनकारी यात्रा के बारे में लिखने का निर्णय किया। जबकि देखा जाए तो ‘मॉडर्न बुद्धा काफी हद तक आत्मकथक है, कुछ अनुभव और घटनाएं मेरे किसी करीबी के साथ भी घटित हुई हैं। मेरा उपन्यास भी सच्ची घटनाओं पर आधारित है।

(Clonazepam)

First published on: May 27, 2023 11:58 AM

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