1965 CIA Secret Mission: आज हम आपको इतिहास की एक ऐसी घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे सबसे रहस्यमयी और खतरनाक ऑफरेशनों में गिना जाता है. ये कहानी एक ऐसे मिशन की है, जो किसी आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है और ना ही अब तक कोई इसके सच्चाई की तह तक पहुंच पाया है. तकरीबन 60 साल पहले अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी (CIA) और भारतीय खुफिया एजेंसियों ने मिलकर हिमालय की ऊंचाइयों में ऐसा उपकरण रखा था, जिसके बारे में कहा जाता है कि वो जापान के नागासाकी में गिरे परमाणु हम जितना खतकनाक हो सकता है. माना जात है कि आज भी वो उपकरण हिमालय में कही दफन है.
CIA ने हिमालय में खोया था परमाणु रहस्य!
साल था 1965, जब दुनिया ‘कोल्ड वॉर’ (शीत युद्ध) के भय और जासूसी की रेस में लगी हुई थी. चीन ने अभी-अभी अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था और अमेरिका को डर था कि बीजिंग मिसाइल परीक्षणों की गुप्त तैयारी कर रहा है. चीन पर नजर रखने के लिए CIA ने एक प्लान बनाया, जिसके तहत हिमालय की ऊंचाइयों पर एक परमाणु-संचालित जासूसी उपकरण (nuclear-powered listening device) लगाया जाना था ताकि चीन के परमाणु परीक्षणों की गतिविधि पर नजर रखी जा सके.
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अमेरिका ने मांगी भारत की मदद
इस खतरनाक मिशन के लिए भारत में हिमालय रेंज पर मौजूद नंदा देवी पर्वत को चुना गया. अपने प्लान को साकार करने के लिए अमेरिका ने भारत की मदद मांगी और भारतीय नौसेना के अधिकारी कैप्टन एमएस कोहली को इस सीक्रेट अभियान का नेतृत्व सौंपा गया. इस टीम में भारत और अमेरिका के कुछ बेहतरीन पर्वतारोही शामिल थे. उनके पास एक भारी ‘SNAP-19C जनरेटर’ था, जिसमें करीब 13 किलो प्लुटोनियम भरा हुआ था. प्लुटोनियम ये मात्रा नागासाकी पर गिरे बम के करीब एक-तिहाई के बराबर थी.
बर्फीले तूफान ने निगल लिया परमाणु उपकरण
प्लान की शुरुआत हुई और सीआईए और भारतीय जवान नंदा देवी के रास्ते पर बढ़ा. हाड़ कंपा देने वाली ठंड, ऊंचाई और बर्फ की मोटी चादर से जूझते हुए यूनिट अपने टार्गेट के करीब पहुंच गई, लेकिन तभी भयंकर बर्फीला तूफान आ गया. तेज हवाओं और जीरो विजिबिलटी के चलते कैप्टन कोहली ने रेडियो पर आदेश दिया कि ‘उपकरण वहीं छोड़ दो और तुरंत नीचे लौट आओ.’ टीम ने जनरेटर और एंटीना को एक दरार में छिपाया और अपनी जान बचाने के लिए नीचे उतर आई. लेकिन जब अगले साल टीम फिर से उसी जगह पहुंची तो उपकरण गायब था.
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डिवाइस में छिपी बड़ी तबाही
टीम ने देखा कि जहां उन्होंने डिवाइस रखा था वो पूरा इलाका बर्फ से ढह चुका था. वहां न प्लुटोनियम का कोई निशान था और न ही कोई उपकरण. दृश्य ऐसा था कि डिवाइस हिमालय की बर्फ में समा गई हो. डिवाइस की खोज के लिए गेयगर काउंटर, रेडिएशन डिटेक्टर और सेंसर डिटेक्टर सब भेजा गया, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. एक्सपर्ट्स को संदेह है कि उपकरण धीरे-धीरे बर्फ पिघलाकर नीचे ग्लेशियरों के साथ गंगा की ओर खिसक गया होगा. उस वक्त कैप्टन कोहली ने एक बयान में कहा था, ‘हमें नहीं पता था कि इसमें इतनी बड़ी तबाही छिपी है.’










