Delhi Food Series: गोलगप्पे, भल्ले और टिक्की से भरी दिल्ली की गलियां इतिहास की गवाह हैं, क्योंकि चाट का जन्म सिर्फ भूख नहीं, एक जरूरत से हुआ था। आज जिस चाट को हम बड़े चाव से खाते हैं, उसकी शुरुआत मुगलों के दौर में हुई थी। दरअसल, इसके पीछे भी एक कहानी है, जो बड़ी दिलचस्प है। जब भी स्ट्रीट फूड्स की बात आती है, तो माना जाता है कि यह हमारी सेहत के लिए अच्छे नहीं होते हैं। मगर क्या आप जानते हैं चाट का इजाद हैजा जैसी बीमारी से बचने के लिए ही किया गया था। इतिहासकारों की मानें, तो चाट मुगल सम्राट शाहजहां के शासन के समय बनाई गई थी। चाट को पहली बार दिल्ली में बनाया गया था, मगर इसकी कहानी आगरा से शुरू हुई थी। चलिए जानते हैं इस दिलचस्प और खट्टी-मीठी कहानी के बारे में।
आगरा से कैसे दिल्ली आई चाट?
डॉक्टर सोहेल हाश्मी, इतिहासकार एवं लेखक, बताते हैं कि दिल्ली की गलियों का इतिहास सालों पुराना है। वे कहते हैं कि दिल्ली में हर प्रदेश, हर राज्य, हर कस्बे और हर देश का खाना मिलता है क्योंकि दिल्ली में कोने-कोने से लोग आकर बसते हैं। जब मुगलों ने आगरा और दिल्ली के बीच सफर किया करते थे, तो वे लोग मुगलीय खाना खाया करते थे। मुगलीय खाना मांसाहारी होता था। इन्हें पकाने के लिए खूब सारे मसाले और घी का इस्तेमाल किया जाता था, जो इन्हें स्वादिष्ट तो बनाते थे मगर सेहत के मामले में ये ज्यादा फायदेमंद नहीं हुआ करते थे।
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बीमारी की दवा चाट!
वहीं, हैजा जैसी बीमारी भी उस समय फैली हुई थी। इस बीमारी में इंसान को दस्त और उल्टी की समस्या होती थी। शरीर में पानी की कमी हो जाती थी। ऐसे में किसी ऐसे भोजन की तलाश लोगों में थी, जो मरीजों के स्वाद को बदल सके और उन्हें फायदा भी पहुंचाए। अब मुगलों के पास अपना स्वादिष्ट मसालेदार मांसाहारी व्यंजन था, लेकिन शाकाहारियों के पास नहीं। इसलिए, शाकाहारी लोगों ने चाट का इजाद किया। चाट मूंग दाल, आलू, हल्के और लाभकारी मसालों की मदद से बनाए जाते थे। दही इसमें प्रोबायोटिक की तरह काम करती थी, जो मसालों की गर्माहट को कम करती थी।
4 दरवाजों ने दी चाट को पहचान
बावरचियों द्वारा चाट बनाई गई, लेकिन इसे पेश खास उत्सवों और कार्यक्रमों में ज्यादा किया जाने लगा। चाट को गली-गली पहुंचाने का काम छोटे व्यापारियों ने ही किया था। जिग्स कालरा, भारत के मशहूर रेस्टोरेंट कारोबारी हैं। वे बताते हैं कि मुगल काल में बावरची टोला हुआ करता था, जो अपने सिर पर खोम्चे रखकर खाने की चीजों जैसे मिठाइयों और चाट को लेकर गली-गली जाया करते थे। ये सभी छोटे व्यापारी दिल्ली के 4 दरवाजों पर ठहरा करते थे। इन ठिकानों पर चाट की बिक्री होती थी। ये दरवाजे हैं- तुर्कमान गेट, दिल्ली गेट, अजमेरी गेट और लाहौरी गेट। आज भी यहां चाट की सबसे प्रसिद्ध दुकानें मौजूद हैं। कहते हैं इन दरवाजों के सहारे ही पूरे देश में चाट मशहूर हुई।
दिल्ली में चाट की सबसे पुरानी दुकान
इस वक्त दिल्ली में चाट की सबसे पुरानी दुकान श्री बालाजी चाट भंडार है। यह दुकान 150 साल पुरानी है। चाट की ये पुरानी दुकान दिल्ली के चांदनी चौक, शीश गंज साहिब गुरुद्वारा के पास स्थित है। इसके अलावा, नटराज दही भल्ले, प्रभु चाट भंडार, हीरा लाल चाट कॉर्नर जैसी दुकानें भी दिल्ली में सालों पुरानी हैं।
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