Uniform Civil Code: देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लेकर समाजवादी पार्टी के सांसद डॉक्टर एसटी हसन ने भाजपा पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि यदि पहली पत्नी की रजामंदी हो तो दूसरी शादी करने में क्या है? उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि हमारे पर्सनल लॉ को खत्म किया गया तो हम विरोध करेंगे।
सभी धर्मों को मिली है उनकी आजादी
जानकारी के मुताबिक सपा सांसद ने एक मीडिया रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि भारत सभी धर्मों और मान्यताओं को मानने वाला देश है। यहां हर रंग का फूल है, इसलिए भारत को रंग-बिरंगा गुलदस्ता भी कहा जाता है। ऐसे में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि देश का जब संविधान और कानून बना तो कहा गया था सभी धर्मों के लोगों को उनकी आजादी है। उन्हें अपने धर्म को आगे बढ़ाने की स्वतंत्रता है।
"पत्नी अगर इजाजत देती है तो दूसरी शादी करने में क्या तकलीफ है"
◆ यूनिफॉर्म सिविल कोड पर सपा सांसद एसटी हसन का बयान
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— News24 (@news24tvchannel) June 20, 2023
मुरादाबाद से सपा सांसद हैं डॉ. हसन
इसी क्रम में सपा सांसदद डॉ. एसटी हसन ने कहा कि अगर किसी की पत्नी गंभीर बीमार है या फिर किसी की पत्नी को बच्चा नहीं हो रहा है, ऐसे में उसकी रजामंदी से कोई शख्स दूसरी शादी कर लेता है तो उन्हें (सरकार) को क्या दिक्कत है। उन्होंने कहा कि हम शरीयत कानून को मानते हैं तो इसमें क्या दिक्कत है। उन्होंने कहा कि इस्लाम ऐसा धर्म है, जिसमें महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार दिया गया है। बता दें कि डॉ. एसटी हसन उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से सपा के सांसद हैं।
आखिर क्या है यूनिफार्म सिविल कोड?
- संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग 4 में ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ शब्द का उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि भारत में हर नागरिक के लिए एक समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास होना चाहिए। संविधान निर्माता डॉक्टर बीआर अंबेडकर ने संविधान को बनाते समय कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड जरूरी है।
क्यों जरूरी है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
- भारत में जाति और धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून और मैरिज एक्ट हैं। अलग-अलग कानूनों के कारण न्यायिक प्रणाली पर भी असर पड़ता है। दुनिया में कोई भी ऐसा देश नहीं है, जहां जाति और धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून हों।
- इसे ऐसे समझें कि भारत में हिंदुओं के लिए हिंदू मैरिज एक्ट है, मुसलमानों के लिए पर्सनल लॉ बोर्ड है। शादी, तलाक, संपत्ति विवाद, गोद लेने और उत्तराधिकार आदि के मामलों में हिंदुओं के लिए अलग कानून हैं, जबकि मुसलमानों के लिए अलग।
क्या होगा अगर यूनिफार्म सिविल कोड लागू हो तो?
- UCC लागू हो गया तो हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून, पर्सनल लॉ बोर्ड समाप्त हो जाएंगे। धार्मिक स्थलों पर किसका अधिकार हो? जैसे प्रश्नों का उत्तर भी मिलेगा।
- उदाहरण के लिए अगर मंदिरों का प्रबंधन सरकार के हाथो में हैं, तो फिर मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारा आदि का प्रबंधन भी सरकार के हाथों में होगा। लेकिन अगर मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरिजाघर का प्रबंधन उनके अपनी-अपनी धार्मिक संस्थाएं करती हैं तो फिर मंदिर का प्रबंधन भी धार्मिक संस्थाओं को ही देना होगा।
- बहुविवाह पर रोक लगेगी। लड़कियों की शादी की आयु बढ़ाई जाएगी ताकि वे शादी से पहले ग्रेजुएट हो सकें। लिव इन रिलेशनशिप का डिक्लेरेशन जरूरी होगा। माता-पिता को सूचना जाएगी।
- उत्तराधिकार में लड़कियों को लड़कों का बराबर का हिस्सा मिलेगा, चाहे वो किसी भी जाति या धर्म के हों। एडॉप्शन सभी के लिए मान्य होगा। मुस्लिम महिलाओं को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार मिलेगा। गोद लेने की प्रक्रिया आसान की जाएगी।
- हलाला और इद्दत (भरण पोषण) पर रोक लगेगी। शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा। बगैर रजिस्ट्रेशन किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नहीं मिलेगा।
- पति-पत्नी दोनों को तलाक के समान आधार होंगे। तलाक का जो ग्राउंड पति के लिए लागू होगा, वही पत्नी के लिए भी लागू होगा। नौकरीशुदा बेटे की मौत पर पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में वृद्ध माता-पिता के भरण पोषण की भी जिम्मेदारी होगी। अगर पत्नी पुर्नविवाह करती है तो पति की मौत पर मिलने वाले कंपेंशेसन में माता-पिता का भी हिस्सा होगा।