Nameplate Controversy : उत्तर प्रदेश में नेमप्लेट को लेकर विवाद मचा हुआ है। खाने-पीने की दुकानों के सामने नाम और पहचान लिखने का आदेश दिया गया है। इसे लेकर विपक्ष ने विरोध जताया है। पहले यह आदेश सिर्फ मुजफ्फरनगर के लिए था, लेकिन बाद में इसे पूरे राज्य में लागू कर दिया गया। आइए जानते हैं कि नेमप्लेट को लेकर क्या कानून है?
जानें क्या है कानून?
नेमप्लेट को लेकर यूपीए की सरकार में कानून बना था। खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के मुताबिक, होटलों, रेस्टोरेंट, ढाबों और ठेलों समेत भी सभी भोजनालयों के मालिकों के लिए अपना नाम, फर्म का नाम और लाइसेंस नंबर लिखना अनिवार्य है। ‘जागो ग्राहक जागो’ योजना के तहत नोटिस बोर्ड पर मूल्य सूची भी लगाना जरूरी है।
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मुजफ्फरनगर में उठा था मुद्दा
आपको बता दें कि यूपी के मुजफ्फरनगर में सबसे पहले नेमप्लेट लगाने का मुद्दा उठा था। इसे लेकर वहां की पुलिस ने आदेश दिया कि कांवड़ मार्गों पर स्थित खाने-पीने की दुकानों के बाहर नेमप्लेट लगाना अनिवार्य है, ताकि तीर्थयात्रियों की आस्था की पवित्रता बनी रहे। अब सरकार इस नियम को पूरे प्रदेश में लागू करने की तैयारी कर रही है। इसे लेकर सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि नेमप्लेट लगाने को लेकर जल्द ही एक औपचारिक आदेश जारी कर दिया जाएगा।
उत्तराखंड में आया आदेश
यूपी के बाद अब उत्तराखंड में भी नेमप्लेट का आदेश जारी किया गया है। इसे लेकर हरिद्वार पुलिस प्रशासन ने निर्देश जारी कर कहा कि कांवड़ मार्गों पर स्थित होटल, ढाबे, रेस्तरां के आगे मालिक का नाम और पहचान लिखना जरूरी है।
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विपक्ष ने जताया विरोध
विपक्ष के नेताओं ने योगी सरकार के नेमप्लेट वाले फैसले का विरोध जताया। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी सामााजिक सद्भाव की दुश्मन है। बसपा की अध्यक्ष मायावती ने इस आदेश को असंवैधानिक बताया। यहां तक एनडीए के घटक दल जदयू, लोजपा (रामविलास) और रालोद ने आपत्ति जताई है।