राजस्थान की सियासत में इन दिनों एक नई बहस छिड़ी हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इस दावे ने सियासी हलचल बढ़ा दी है कि जयपुर से लेकर दिल्ली तक मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को हटाने की साजिश रची जा रही है। गहलोत का यह बयान केवल सत्ता पक्ष के भीतर संभावित असंतोष की ओर इशारा नहीं करता है। बल्कि यह कांग्रेस की उस राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी लगता है, जिसके तहत वह बीजेपी की आंतरिक खींचतान को सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है।
गहलोत का ‘षड्यंत्र’ बयान
अशोक गहलोत ने यह बयान उस समय दिया है जब भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बने करीब डेढ़ साल हो चुके हैं। बीजेपी सरकार पर अब तक अनुभवहीनता, योजनाओं को ठप करने और प्रशासनिक ढांचे में गड़बड़ियों के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब कांग्रेस ने सीधा हमला भाजपा के भीतर की सियासत पर बोला है। गहलोत ‘संभावित असंतोष’ को सार्वजनिक मंच से सामने लाकर उसे ठोस रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। जहां बीजेपी अंदरूनी मतभेदों को दबाकर चलती है। वहीं कांग्रेस उन्हीं मतभेदों को उभारकर उन्हें मुद्दा बनाना चाहती है।
बीजेपी की प्रतिक्रिया
इस बयान को लेकर जब भाजपा खेमे में भी हलचल शुरू होने लगी तो पुर्ण विराम देने के लिए पार्टी के राजस्थान प्रभारी आगे आए। राजस्थान भाजपा प्रभारी डॉ.राधा मोहन दास अग्रवाल ने इन दावों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने साफ कहा कि आज भी हमारे नेता भजन लाल हैं और कल भी वही रहेंगे। हम बार-बार मुख्यमंत्री नहीं बदलते। राधा मोहन दास का यह बयान एक ओर गहलोत के आरोपों का खंडन करता है, तो दूसरी ओर बीजेपी नेतृत्व की ओर से एकजुटता और स्थिरता का संदेश देने की कोशिश भी करता है। हालांकि, इतना जरूर है कि इस बयान से यह साफ होता है कि पार्टी ने इन कयासों को हल्के में नहीं लिया।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की शैली
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कांग्रेस को सीधे मंच पर बहस की चुनौती देकर दिखाया कि वे रक्षात्मक नहीं, बल्कि जवाबी हमले की मुद्रा में हैं। उनका यह रुख न केवल आत्मविश्वास को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि वे विपक्षी हमलों और पार्टी के भीतर संभावित असहमति को लेकर सजग हैं। पिछले डेढ़ साल में मुख्यमंत्री ने हर दिन दो-तीन प्रशासनिक बैठकें लेकर योजनाओं पर नजर रखी है, जो यह दिखाता है कि वे अनुभव की कमी को सक्रियता से भरने की कोशिश कर रहे हैं।
क्या है कांग्रेस की रणनीति?
उधर, आरएसएस और बीजेपी की बजाय अब सीधे-सीधे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा अपने आरोपों के कटघरे में लिए जाने राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, कांग्रेस अब बीजेपी सरकार के कामकाज पर सीधे हमला करने की बजाय पार्टी के भीतर की ‘डायनामिक्स’ को निशाना बना रही है। उन्हें लगता है कि डेढ़ साल बाद भी पार्टी के वरिष्ठ भाजपा नेताओं को संगठन में अपेक्षित स्थान नहीं मिला है। सत्ता और राजनीतिक नियुक्तियों में कुछ समूहों को अब तक दरकिनार किया गया है।
ऐसे में कांग्रेस एक नैरेटिव गढ़ रही है कि मुख्यमंत्री को लेकर भाजपा के भीतर असंतोष है। भले ही इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण सार्वजनिक रूप से न हो। बहरहाल, यह लड़ाई अब विकास की नहीं, धारणा की बन चुकी है। राजस्थान की मौजूदा सियासी जंग अब केवल विकास या प्रशासन तक सीमित नहीं है। यह अब “perception management” यानी जनता की धारणा को प्रभावित करने की लड़ाई बन गई है। कांग्रेस के मुताबिक, जनता को लगे कि भाजपा सरकार अस्थिर और बिखरी हुई है, जबकि भाजपा चाहती है कि वह स्थिर नेतृत्व और विकास के भरोसे की छवि बनाए रखे। फिलहाल, दोनों दल अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में लगे हैं, लेकिन असली फैसला भाजपा आलाकमान, जनता की धारणा और विश्वास पर ही निर्भर करेगा।
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