राजस्थान विधानसभा में गुरुवार को नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भजनलाल सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि ये नाम बदलने का जो अभियान आपकी सरकार ने जो शुरू किया है ,वो आज इस स्थिति में पहुंच गया है कि यह सनातन की परंपरा पर प्रहार कर रहा है। उन्होंने विधानसभा में कुलगुरु और कुलपति शब्द का शास्त्रों और संस्कृत के उदाहरणों के जरिए अंतर समझाया। यह बहस उस समय गरमा गई जब राजस्थान सरकार ने विश्वविद्यालयों में कुलपति के पदनाम को बदलकर कुलगुरु करने का विधेयक पेश किया।
नेता प्रतिपक्ष ने किया विधेयक का विरोध
टीकाराम जूली ने ‘राजस्थान के राजस्थान यूनिवर्सिटीज लॉ अमेंडमेंट बिल-2025’ को अनुचित बताते हुए इसे जनमत के लिए भेजने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ नाम बदलने की परंपरा शुरू कर रही है, जो व्यर्थ है।
शास्त्रों और संस्कृत के हवाले से बताया कुलपति और कुलगुरु का अंतर
विधानसभा में चर्चा के दौरान टीकाराम जूली ने संस्कृत और शास्त्रों का हवाला देकर समझाया कि कुलपति और कुलगुरु दो अलग-अलग शब्द हैं। उन्होंने कहा कि कुलपति का संस्कृत में अर्थ ‘कुल का रक्षक’ होता है, जैसे कि राष्ट्रपति, सभापति और न्यायाधिपति जैसे शब्दों में देखा जाता है, जबकि कुलगुरु शब्द शास्त्रों में राजपुरोहित, यज्ञ करने वाले वेदाचार्य या धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़े व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है। उन्होंने वाल्मीकि रामायण का उदाहरण देते हुए बताया कि ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ को भी कुलपति ही कहा गया है।
सरकार को बताया उद्देश्य में विफल
टीकाराम जूली ने कहा कि सरकार कुलपति का नाम बदलकर कुलगुरु करने के पीछे जो कारण दे रही है, उसमें वह विफल रही है। उन्होंने सरकार से विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में स्टाफ की भर्ती, अच्छे संस्कार, सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से छात्रों के विकास पर ध्यान देने की अपील की।
‘लाखों-करोड़ों रुपये नाम बदलने पर खर्च करना अनुचित’
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि लाखों-करोड़ों रुपये सिर्फ नाम बदलने पर खर्च करना अनुचित होगा। उन्होंने सरकार से विधेयक को वापस लेने और इसे जनमत के लिए भेजने की मांग की।
‘कुलगुरु पदनाम होने से गुरु परंपरा का अनुसरण’
देश में पुरातन काल में गुरुकुल परंपरा कायम रही थी। इसी का अनुसरण कर केंद्र सरकार ने पदनामों में बदलावों की मंशा जताई थी। जिसके बाद में एमपी सरकार ने पहल कर विश्वविद्यालयों में कुलपति का पदनाम बदलकर कुलगुरु किया था। इसके बाद में अब अन्य राज्यों में भी बदलाव किए जा रहे हैं। वहीं, जानकारों का कहना है कि कुलपति अगर महिला होती हैं तो उन्हें काफी असहज महसूस होता है। एक्सपर्ट का दावा है कि कुलगुरु पदनाम होने से गुरु परंपरा का अनुसरण हो पाएगा। राजस्थान में कुलगुरु की आयु सीमा में भी बदलाव करने की तैयारी है। फिलहाल अधिकतम आयु 70 वर्ष है जिसे घटाकर 65 साल किया जा सकता है।