Rajasthan BJP CM Candidates Latest Update: राजस्थान में भाजपा स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बना रही है, लेकिन अभी मुख्यमंत्री के नाम पर मोहर नहीं लगी है। बस अटकलों का बाज़ार गर्म है। पार्टी में भी अंदरूनी रस्सा-कस्सी जारी है। सभी की नज़रें दिल्ली पर टिकी हैं। ऐसे में कई नाम हैं, जो CM की कुर्सी की इस दौड़ में शामिल माने जाते हैं, लेकिन संशय इसलिए है, क्योंकि इस बार चुनाव में भाजपा ने वसुंधरा राजे या किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव नहीं लड़ा। यही कारण है कि बाबा बालक नाथ, दीया कुमारी से लेकर गजेंद्र सिंह शेखावत समेत कई बड़े चेहरों को इस रेस में माना जा रहा है, जिसके पीछे की बड़ी वजह भी है। हालांकि यह बात भी सही है कि BJP नेतृत्व हमेशा अपने फ़सलों से चौंकाता भी रहा है। 2023 में कमल खिलने के बाद अब BJP की नज़र 2024 पर भी है। लिहाज़ा लोकसभा चुनाव जीतने के लिए SCST-OBC पर पकड़ रखने वाले को CM बनाया जा सकता है तो वहीं डिप्टी CM का फॉर्मूला पार्टी अपना सकती है। पार्टी ने बालक नाथ और गजेन्द्र सिंह को रातों रात दिल्ली बुला लिया था। इसी बीच नजर डालते हैं, मुख्यमंत्री पद के दावेदारों पर…
बाबा बालक नाथ
अलवर से सांसद महंत बालक नाथ का नाम दावेदारों की रेस में सबसे आगे कहा जा सकता है। हिंदुत्व का चेहरा फायर ब्रांड नेता के रूप में इन्हें पेश किया गया है। अलवर से सांसद हैं और इस बार विधानसभा चुनाव में तिजारा से धमाकेदार जीत भी दर्ज की है। ओबीसी चेहरा भी हैं। जानकारों का मानना है कि अगर भाजपा उत्तर प्रदेश की तर्ज पर बाबा बालकनाथ को मुख्यमंत्री बना देती है तो आश्चर्य नहीं कहा जाएगा। यादव समुदाय से संबंध रखने वाले महंत योगी बालक नाथ मस्तनाथ मठ के 8वें महंत है। ऊपर से योगी आदित्यनाथ का पूरा समर्थन भी इनके साथ है, लेकिन केवल और केवल हिंदुत्व के आधार पर राजस्थान में इन्हें CM बनाना और बाकी नेताओं के अनुभव के सामने कम अनुभव होना, इनके खिलाफ रह सकता है।
वसुंधरा राजे
भले ही चुनाव में चेहरा नहीं बनाया गया, लेकिन अनुभव, जनता की नब्ज पर राजनीतिक पकड़ के चलते मुख्यमंत्री पद की सबसे प्रबल दावेदार वसुंधरा राजे मानी जा रही हैं। वसुंधरा राजे प्रदेश की दो बार CM रह चुकी हैं और लगातार चुनाव भी जीतती रही हैं। सभी जातियों को साधने की राजनीतिक कला भी जानती हैं। चुनाव प्रचार में अपने दम पर भीड़ जुटाकर राजनीतिक दमखम भी दिखा चुकी हैं। ऊपर से आज भी बाकी चेहरों की बजाय सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता हैं। उनके 20 से ज्यादा समर्थक चुनाव जीतकर आये हैं, लेकिन पार्टी हाई कमान की उनसे नाराजगी और अपने तरीके से काम करने की आदत उनकी राह में रोड़ा बन सकती है। वैसे साल 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर उन्हें प्रदेश की कमान दी जा सकती है।
दीया कुमारी
राजस्थान विधानसभा चुनाव में इस बार यदि वसुंधरा राजे के बाद सबसे ज्यादा अगर किसी की चर्चा रही तो वह दीया कुमारी की थी। जयपुर के पूर्व राजघराने से संबंध रखने वाली हैं। साल 2013 में पहली बार सवाई माधोपुर से विधायक और उसके बाद साल 2019 में राजसमन्द से सांसद बनीं। ऊपर से इस बार तो दीया कुमारी ने जयपुर की विद्याधर नगर सीट से सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से धमाकेदार जीत भी दर्ज कर ली है। इस सीट से वसुंधरा राजे के बेहद करीबी रह चुके और भेरोसिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह का टिकट काटकर दीया कुमारी को दिया गया था। जानकार भी काफी वक़्त से दीया कुमारी को वसुंधरा राजे का विकल्प बता रहे हैं। मोदी-शाह की गुड बुक में भी शामिल हैं, लेकिन सबको साधने कर काम करने का तरीका, ज़रा कम अनुभव के साथ उन्हें राजनीति में और बेहतर तरीके से परिपक्व करने की सोच उनके नाम पर ब्रेक लगा सकती है।
सीपी जोशी
इस वक़्त राजस्थान BJP के अध्यक्ष और चित्तौड़गढ़ के सांसद हैं। कभी भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष से बड़ी शुरुआत करने के साथ लगातार 29 सालों से पार्टी के प्रति पूरी तरह समर्पित नेताओं में इनका नाम शुमार है। सीपी जोशी को उस वक़्त राजस्थान BJP का अध्यक्ष बनाया गया था, जब पार्टी में गुटबाजी चरम पर थी। सबको साथ लेकर चले और उनके नेतृत्व में जबरदस्त जीत मिली। पीएम नरेंद्र मोदी के सभी रोड शो में भी जहां प्रत्याशियों तक को जगह नहीं मिली, वहीं सभी जगह यह प्रधानमंत्री के पास खड़े नज़र आए।
किरोड़ी लाल मीणा
पिछले 5 सालों में सक्रिय आन्दोलन, धरने प्रदर्शन करने वाले नेता और एसटी चेहरा हैं। सोशल मीडिया पर भी चर्चित हैं। राजनीति का भी अच्छा खासा अनुभव है और सभी को साथ लेकर चलना जानते हैं। बुजुर्ग नेता हैं, लेकिन युवाओ के बीच “बाबा” की फैन फोलोइंग भी बहुत अधिक है। बढ़ी हुई उम्र और केवल दलित वोट पर पकड़ इनकी बड़ी कमजोरी साबित हो सकती है। अपने आन्दोलनों से BJP की मजबूत पकड़ वाली कई जातियों को भी नाराज कर चुके हैं।
गजेंद्र सिंह शेखावत
केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत यूं तो विधानसभा चुनाव नहीं लड़े, लेकिन बागियों को मनाने और BJP के कोर राजपूत वोट बैंक को साधने के साथ कई जगह जीत की रणनीति तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। केंद्र में कद्दावर मंत्री भी हैं, यानी शेखावत को सरकार और संगठन में अहम भूमिका के चलते टिकट बंटवारे में भी तरजीह देकर केंद्र से राज्य की सत्ता में भेजने की अटकलों को हवा दी गई। सबसे बड़ा पहलू यही है कि अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर के मारवाड़ संभाग के बड़े नेता भी हैं और गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को साल 2019 के लोकसभा चुनाव में हराकर अपना दमखम भी दिखा चुके हैं, लेकिन शेखावत से वसुंधरा राजे की अदावत और सबको साथ लेकर आगे नहीं चलने के साथ गुटबाजी बढ़ाने वाले नेताओं के रूप में इनकी पहचान है।
अर्जुन राम मेघवाल
मजबूत दावेदार और कांग्रेस की लोक लुभावनी गारंटियों के बीच BJP का संतुलित घोषणा पत्र बनाने की बड़ी जिम्मेदारी भी इन्हें मिली थी। दलित समाज से हैं, जो डॉ आंबेडकर के बाद दलित समाज से देश के दूसरे कानून मंत्री बनाये गये। ब्यूरोक्रेट्स के रूप में कम का अनुभव भी है। पीएम मोदी के विश्वस्त नेताओं में शुमार हैं, लेकिन केवल बीकानेर संभाग में ही इनकी सबसे मजबूत पकड़, सर्वमान्य नेता नहीं होने और कई मौकों पर लग चुके आरोप इनके खिलाफ जा सकते हैं। BJP का कोर वोट बैंक, राजपूत, ब्राह्मण की नाराजगी का डर बरक़रार रहेगा।
ओम बिड़ला
लोकसभा स्पीकर के रूप में शानदार परफॉर्मेंस, दिल्ली दरबार में पीएम मोदी के करीबी और BJP के सबसे मजबूत नेता हैं। BJP के गढ़ कोटा-हाड़ौती संभाग में मजबूत पकड़ इनके सकारात्मक पहलु भी हैं। चुनाव में लोकसभा अध्यक्ष की संवैधानिक मर्यादाओं का पूरा ख्याल रखकर BJP के पक्ष में समीकरणों को साधे रखा। वसुंधरा के सबसे नजदीक प्रहलाद गुंजल को टिकट इसलिए मिला। बागी होकर चुनाव लड़ने वाले भवानी सिंह राजावत को भी मनाकर चुनाव मैदान से हटवाया था, लेकिन वसुंधरा और उनके समर्थक ओम बिड़ला के नाम पर शायद ही राजी हो।
अश्विनी वैष्णव
रेल मंत्री और BJP हाईकमान के सबसे नजदीकी, साफ़ सुथरे छवि वाले मारवाड़ी नेता हैं। पूर्व आईएएस के रूप में बेहतरीन काम का अच्छा अनुभव, किसी भी नेता के साथ गुटबाजी में उनका नाम नहीं आता है। 19 मार्च को जयपुर में हुई ब्राह्मण महापंचायत में जोरदार तरीके से पीएम मोदी के अंदाज़ में दिए भाषण से धमक दिखाई। अपने कोर वोट बैंक अपर कास्ट को खुश करने के लिए 33 साल बाद राजस्थान में इनके नाम के रूप में BJP दाव खेल सकती है, लेकिन जनता के बीच सीधी पकड़ या कहें कि राज्यभर में जनाधार की कमी BJP हाईकमान को दोबारा सोचने पर मजबूर कर सकती है।
वैसे राजनीति में कयासों की अपनी एक जगह होती है, लेकिन जब बात CM की कुर्सी की हो तो लोगों की निगाहें BJP में केंद्र की तरफ ज्यादा रहती हैं। ऐसे में कोई नया चेहरा लाकर भी चौंकाया जा सकता है। यही वजह है कि इस पूरे मामले पर BJP नेता बोलने से बच रहे हैं तो कोई कह रहा है कि पार्लियामेंट बोर्ड तय करेगा। बहरहाल राजस्थान की जनता ने पीएम के कहे अनुसार उम्मीद और कमल को खिला दिया है। कार्यकर्ता जश्न में डूबे हैं और नेता उलझन में कि आखिर कौन होगा, राजस्थान का मुख्यमंत्री। क्योंकि दिल्ली के दिल में छिपा है यह राज, जो रिवाज़ कायम रखने वाले राजस्थान को नया मुख्यमंत्री देगा।