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पंजाब-हरियाणा के बीच क्यों छिड़ा विवाद; क्या है SYL नहर प्रोजेक्ट? आगे क्या ऑप्शन

पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को लेकर विवाद गहरा गया है। गर्मियों में पानी की किल्लत को देखते हुए हरियाणा ने अतिरिक्त पानी की मांग की है। जिसे पंजाब ने कम बर्फबारी का हवाला देते हुए ठुकरा दिया है। दोनों राज्यों में इस विवाद को लेकर सियासत गरमाई हुई है।

Author Edited By : Rakesh Choudhary Updated: May 3, 2025 14:19
Punjab Haryana Water Dispute
Punjab Haryana Water Dispute

पंजाब और हरियाणा के बीच जल संकट विवाद और गहरा गया है। हरियाणा सरकार ने आज सर्वदलीय बैठक बुलाई है। उधर पंजाब सरकार ने नांगल बांध पर सुरक्षा बढ़ा दी है। पिछले 3 दिनों से जारी इस विवाद पर केंद्रीय गृह मंत्रालय में शुक्रवार को इस मुद्दे पर बड़ी बैठक हुई। बैठक में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और राजस्थान के अधिकारी शामिल हुए। बता दें कि एक दिन पहले भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड ने हरियाणा के लिए 8500 क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया था। जिसका पंजाब सरकार ने कड़ा विरोध किया था।

पंजाब-हरियाणा के बीच विवाद क्यों?

पंजाब और हरियाणा के बीच यह विवाद तब हुआ जब भाखड़ा ब्यास प्रबंधन की बैठक के दौरान हरियाणा ने 8500 क्यूसेक पानी मांगा। हरियाणा को फिलहाल रोजाना 4000 क्यूसेक पानी मिल रहा है लेकिन अब उसने 8500 क्यूसेक पानी मांगा है। सीएम नायब सिंह सैनी ने कहा कि उन्होंने पंजाब के सीएम भगवंत सिंह मान को फोन करके हरियाणा की जरूरतों का हवाला दिया। इसके बाद पंजाब के सीएम भगवंत मान ने कहा कि पहले से ही जल संकट से जूझ रहे पंजाब के पास पानी की एक बूंद नहीं है।

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हरियाणा के पक्ष में हुई वोटिंग

बीबीएमबी चेयरमैन मनोज त्रिपाठी की अध्यक्षता में 30 अप्रैल को एक बैठक हुई। बैठक में पांच सदस्य राज्यों में से भाजपा शासित हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली ने हरियाणा को पानी छोड़ने के पक्ष में वोटिंग की। इस दौरान पंजाब अलग-थलग पड़ गया क्योंकि कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश ने किसी के पक्ष में वोटिंग नहीं की। बता दें कि भाखड़ा और नांगल अलग-अलग बांध है। भाखड़ा बांध हिमाचल प्रदेश में है जबकि नांगल बांध पंजाब में है।

हरियाणा ने मांगा अतिरिक्त पानी

पंजाब का दावा है कि हर लेखा वर्ष की शुरुआत में बीबीएमबी प्रत्येक राज्य को उसके जल का हिस्सा निर्धारित करता है। चालू वर्ष के लिए पंजाब को 5.512 मिलियन एकड़ फुट, हरियाणा को 2.987 मिलियन, राजस्थान को 3.318 मिलियन एकड़ फुट पानी आवंटित किया। इस आवंटन के खिलाफ हरियाणा ने पहले ही 3.110 मिलियन फुट पानी वापस ले लिया। इसके पीछे उसने तर्क दिया कि उसे पीने के पानी जरूरत ज्यादा है।

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आगे क्या ऑप्शन?

इस पर पंजाब ने कहा कि बर्फबारी के मौसम में कम बर्फबारी होने के कारण पोंग और रंजीत सागर बांधों में जल स्तर औसत से कम है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार सत्ता में आई तो हमने भूजल के दोहन को कम करने के लिए सिचांई के लिए नहर के पानी को प्राथमिकता दी। इस मामले में जल विशेषज्ञों की मानें हरियाणा को पीने के पानी की आपूर्ति करनें में फिलहाल कोई समस्या नहीं है। अगर हरियाणा को पीने के पानी की जरूरत है तो उसे पानी दिया जा सकता है। वह भी तब जब पंजाब को पानी की जरूरत नहीं है। फिलहाल पंजाब अतिरिक्त पानी छोड़े जाने के खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है।

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जानें SYL नहर प्रोजेक्ट क्या है?

एसवाईएल नहर प्रोजेक्ट की शुरुआत रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के जल बंटवारे को लेकर हुई थी। एसवाईएल प्रोजेक्ट के तहत हरियाणा को सतलुज और उसकी सहायक नदियों का जल देने के लिए सतलुज और यमुना को जोड़ने वाली एक नहर की योजना तैयार की गई। जिसे एसवाईएल कहा जाता है। इस परियोजना के तहत 214 किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण होना था, जिसमें से 122 किलोमीटर पंजाब में और 92 किलोमीटर हरियाणा में बनाई जानी थी। हरियाणा ने अपने हिस्से की नहर का निर्माण पूरा कर लिया है जबकि पंजाब ने 1982 में इस पर निर्माण कार्य शुरू किया था लेकिन बाद में इसे रोक दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश

साल 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी और तत्कालीन SAD के प्रमुख और सीएम प्रकाश सिंह बादल के बीच एसवाईएल नहर को लेकर एक समझौता हुआ। जल की उपलब्धता और बंटवारे के लिए सर्वोच्च न्यायालय के जज वी. बालकृष्ण इराडी की अध्यक्षता में इराडी प्राधिकरण की स्थापना की गई। 1996 में जब हरियाणा ने अपने हिस्से की नहर का निर्माण पूरा किया तो उसने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की कि अब पंजाब को नहर का निर्माण जल्द से जल्द करने को कहा जाए। वर्षों तक हुई सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पंजाब को अपने क्षेत्र में नहर का निर्माण कार्य पूरा करने का आदेश दिया।

पंजाब विधानसभा में पारित हुआ आदेश

2004 में पंजाब विधानसभा ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट पारित किया। जिसमें जल समझौते को निरस्त कर दिया गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी पंजाब विधानसभा के फैसले को अंसवैधानिक करार दिया।

साल 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों राज्यों के सीएम को केंद्र की मध्यस्थता में एसवाईएल मुद्दे को बातचीत के जरिए सुलझाने का आदेश दिया। इसके बाद पंजाब ने जल की उपलब्धता को लेकर एक न्यायाधिकरण बनाने की मांग की। पंजाब ने तर्क देते हुए कहा कि रावी ब्यास जल की उपलब्धता साल 1981 में अनुमानित 17.17 एमएएफ से घटकर 2013 में 13.38 एमएएफ हो गई। ऐसे में एक नया न्यायाधिकरण दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे पर काम करेगा।

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Edited By

Rakesh Choudhary

First published on: May 03, 2025 02:16 PM

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