महाराष्ट्र सरकार की ‘मुख्यमंत्री मेरी लाडली बहन’ योजना के लिए एक बार फिर आदिवासी विकास विभाग का 335.70 करोड़ का फंड महिला एवं बाल कल्याण विभाग को ट्रांसफर किया गया है। यह राशि मई माह की किश्त के रूप में पात्र महिलाओं को बांटी जाएगी। इस संदर्भ में शुक्रवार को एक आधिकारिक शासनादेश (GR) जारी किया गया। सरकार हर पात्र लाड़ली बहन को हर महीने 1500 की सहायता राशि दे रही है। लेकिन लगातार दूसरी बार आदिवासी समुदाय के लिए निर्धारित बजट से यह राशि ली गई है। अप्रैल में भी इतनी ही रकम इसी योजना के लिए डाइवर्ट की गई थी।
अनुसूचित जनजातियों के लिए कितना प्रावधान था?
2025-26 के बजट में अनुसूचित जनजातियों के लिए कुल 21,495 करोड़ का प्रावधान था, जिसमें से आदिवासी विभाग को 3,420 करोड़ आवंटित किए गए। इसी फंड से अब मई माह की किश्त निकाली गई है, जिससे आदिवासी विकास पर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। इस फैसले का विरोध सामाजिक न्याय मंत्री संजय शिरसाट ने किया। जबकि आदिवासी विकास मंत्री अशोक उइके ने इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
फंड डायवर्जन पर क्यों उठे सवाल?
तेलंगाना और कर्नाटक की तर्ज पर महाराष्ट्र में भी अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए निर्धारित फंड को सुरक्षित रखने के लिए कानून बनाने की मांग फिर जोर पकड़ने लगी है। सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार, जब तक ऐसा कानून नहीं बनता, तब तक हाशिए पर मौजूद समुदायों के लिए तय की गई योजनाओं को बार-बार झटका लगता रहेगा।
योजना में कितना पैसा मिलता है?
पिछले असेंबली इलेक्शन से पहले महायुति सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मेरी लाडली बहना योजना शुरू की थी। इसके तहत योग्य महिलाओं को 1500 रुपये हर महीने दिए गए। विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार ने 5 महीने की किस्तों का भुगतान पात्र लाभार्थियों को किया। चुनाव प्रचार के दौरान महायुति के नेता जोर-शोर से प्रचार कर रहे थे कि अगर फिर से महायुति की सरकार बनी तो 1500 की राशि को बढ़ाकर 2100 रुपये कर देंगे। इलेक्शन के बाद महायुति सरकार की सत्ता में वापसी हुई, लेकिन सरकार ने पैसा नहीं बढ़ाया। अब यह योजना सरकार के गले की हड्डी बन गई है। लाडली बहनों को हर महीने पैसा देने के लिए राज्य सरकार को कई तरह के उपाय करने पड़ रहे हैं। दूसरे विभाग से पैसे ट्रांसफर करना पड़ रहा है।
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