Bombay high court decision: महाराष्ट्र की बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अधिकारी को रिश्वत के मामले में बरी किया है। न्यायालय ने कहा कि 100 रुपये की रिश्वत काफी छोटी है। रिश्वतखोरी का ये आरोप एक सरकारी चिकित्सा अधिकारी पर था। मामला 2007 का है। कोर्ट ने कहा कि अब तो 100 रुपये कि रिश्वत काफी चोटी लगती है। न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की सिंगल पीठ ने कहा कि यह एक मामूली मामला है। चिकित्सा अधिकारी को ट्रायल कोर्ट से छोड़ने के फैसले को उन्होंने बरकरार रखा।
2007 में अधिकारी के खिलाफ लगा था आरोप
पुणे जिले के पौड इलाके में 2007 में एलटी पिंगले नाम के व्यक्ति ने आरोप लगाया था। जिसके मुताबिक ग्रामीण अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डॉ. अनिल शिंदे को रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया था। पिंगले के भतीजे पर हमले के बाद चोटों को प्रमाणित करने के लिए 100 रुपये मांगे जाने का आरोप था।
जिसकी शिकायत एंटी करप्शन ब्यूरो को की गई थी। लेकिन 2012 में एक स्पेशल कोर्ट ने शिंदे को बरी कर दिया था। जिसके बाद मामले को हाई कोर्ट में दायर किया गया था। लेकिन राज्य की अपील में कोर्ट को कोई योग्यता नहीं दिखी।
न्यायमूर्ति ने कहा कि 2007 में 100 रुपये रिश्वत ली गई थी। लेकिन तब यह राशि काफी मामूली थी। अब जब 2023 में आरोपी को बरी करने पर सुनवाई हो रही है। अब तो यह राशि बेहद मामूली है। इसलिए शिकायतकर्ता और अपीलकर्ता दोनों को आरोपों को साबित करने में सक्षम मानते हुए भी यह विचार का विषय है।
बरी करने के आदेशों को बरकरार रखना कोई बड़ी बात नहीं है। यदि संतुष्टि के लिए रिश्वत की राशि तुच्छ है, तो हम भ्रष्टाचार को लेकर कोई निष्कर्ष पर नहीं जा सकते हैं। इसलिए कोर्ट आरोपी को भ्रष्ट मानने से इन्कार करती है।