Chandipura Virus In Madhya Pradesh: गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में चांदीपुरा वायरस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के मामले बढ़ रहे हैं। चांदीपुरा वायरस के मामले सामने आने के बाद मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के स्टाफ को सतर्क कर दिया गया है। उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने कहा है कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा चांदीपुरा वायरस की कंडीशन पर कड़ी नजर रखी जा रही है। हम स्थिति की लगातार निगरानी कर रहे हैं।
अभी तक प्रदेश में चांदीपुरा वायरस का कोई मामला नहीं आया है। एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (Integrated Disease Surveillance Programme) पोर्टल पर सभी विवरण अपडेट कर रहे हैं। हमारे पास वायरस की पहचान के लिए सभी जरूरी उपकरण और सुविधाएं उपलब्ध हैं। आपको बता दें, गुजरात में जिन रोगियों में इस बीमारी की पुष्टि हुई है, उनमें एक मध्य प्रदेश का भी है।
चांदीपुरा वायरस बीमारी की स्थिति पर समीक्षा
स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने शनिवार को गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीमारी की स्थिति की एक्सपर्ट की टीम के साथ समीक्षा की। गोयल ने बताया कि 20 जुलाई तक एईएस के (एक्यूट एन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम) के 78 मामले सामने आए हैं, जिनमें से 75 गुजरात, दो राजस्थान और एक मध्य प्रदेश से है। इनमें से 28 मामलों में मौत हो चुकी है। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि एईएस के संदिग्ध सैंपल नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलाजी (National Institute of Virology) पुणे भेजे जा रहे हैं, पर अभी तक किसी में इस वायरस की पुष्टि नहीं हुई है।
कैसे दिखते हैं लक्षण
यह बीमारी मच्छर या मक्खी के काटने से होती है। इसके शुरुआत लक्षण फ्लू जैसे दिखते हैं। पीड़ित को बुखार आता है। दिमाग में सूजन होने पर मरीज की मौत भी हो सकती है।
कैसे रहें चांदीपुरा वायरस से सेफ
हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं, बच्चों को इस संक्रामक रोग से सेफ रखने के लिए प्रयास पर जोर देना चाहिए। प्रभावित क्षेत्रों में खेतों या झाड़ियों में जाने से बचें। मच्छरों, टिक्स और मक्खियों से बचाव करें। संक्रमण के लक्षणों के बारे में जानना और समय रहते इलाज करना सबसे जरूरी हो जाता है। सफाई और जागरूकता ही इस बीमारी के खिलाफ उपलब्ध एकमात्र उपाय है।
चांदीपुरा वायरस का संक्रमण काफी दुर्लभ है इसलिए अभी तक इसका कोई सटीक इलाज नहीं है। संक्रमण का समय पर पता लगने और सहायक उपचार शुरू हो जाने से इसके गंभीर रूप लेने और दिमाग से जुड़े डिसऑर्डर के खतरे को कम किया जा सकता है।
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