मध्यप्रदेश के इंदौर से 55 किलोमीटर दूर गौतमपुरा में दीपावली के दूसरे दिन याने आज धोक पड़वा पर एक अनोखी परंपरा निभाई जाएगी. जहां परम्परा के रूप में कलंगी व तुर्रा दो दल के योद्धाओं के बीच फिर हिंगोट युद्ध होगा जहां अग्निबाण बरसेंगे जिसके साक्षी करीब 15 से 20 हजार लोग होते हैं. यह युद्ध लड़ाई नही बल्कि परंपरा की दृष्टि से भी देखा जाता है जिसमें आपसी भाईचारे से यह युद्ध रूपी परंपरा निभाई जाती है. जिसमें न किसी की हार होती है न किसी की जीत होती है.
इस आयोजन की खूबी यह है कि इस आयोजन का न कोई आयोजक होता है न प्रायोजक. फिर भी प्रशासन यहां पूरी व्यवस्था करता है जिसमें करीब 200 से ज्यादा पुलिस बल, तीन से चार एम्बुलेंस, करीब 50 से ज्यादा स्वास्थ विभाग के डाक्टर कर्मचारी, फायर ब्रिगेड की गाड़ियां, नगरीय प्रसाशन के अधिकारी कर्मचारी मौजूद रहते हैं.
हालांकि देपालपुर में हिंगोट युद्ध पर रोक को लेकर जनहित याचिका दायर हो चुकी है, 2017 में एक व्यक्ति की मौत, करीब 38 लोग हिंगोट युद्ध में घायल हुए थे जिसके बाद इंदौर हाई कोर्ट में जनहित याचिका लगाई गई थी. इंदौर हाई कोर्ट में सुनवाई होने के बावजूद अब तक हिंगोट युद्ध पर रोक नहीं लग पाई है.
इस हिंगोट युद्ध को लेकर अब तैयारी अंतिम चरणों में है. जिसको लेकर योद्धा अब हिंगोट बना कर युद्ध लड़ने के लिए तैय्यार हैं. युद्ध में जाने वाले योध्दा जंगल से हिंगोनिया नाम के पेड़ से फल तोड़कर लाते हैं फिर इनको छीलते हैं फिर सुराख कर अंदर से गुदा निकालते हैं. ये फल ऊपर से कठोर और अंदर से मुलायम होता है. इसको सुखाने के बाद बारूद भरते हैं. बड़े सुराख पर पीली मिट्टी से डॉट लगाते हैं व दूसरे छोर पर गंधक लगाते हैं फिर हिंगोट पर तीर नुमा लकड़ी बांधते हैं जो निशाने को बेधती है.
योद्धा के एक हाथ मे ढाल, कंधे पर हिंगोट से भरा झोला और जलती लकड़ी के साथ युद्ध के मैदान में 100 फिट की दूरी के बीच दोनों दल के 40 से ज्यादा योद्धा युद्ध के मैदान में उतरते हैं. सिंगनल मिलते ही युद्ध शुरू हो जाता है और करीब डेढ़ धंटे युद्ध चलता है जिसमें काफी लोग घायल होते हैं फिर भी युद्ध को देश प्रदेश के कोने कोने के साथ ही इंदौर, उज्जैन, धार, देवास, महू, बड़नगर शहित आस-पास गांव से हजारों लोग इस युद्ध का आनन्द लेने आते हैं जिसमें काफी लोग भी घायल होते हैं. इस युद्ध के लिए योद्धा और युद्ध मैदान पर नगरीय प्रशासन द्वारा तैयारी शुरू कर दी है जिसके चलते युद्ध मैदान में बेरिकेटिंग्स के साथ ही जालियां वाली बैठक व्यवस्था भी की गई है.
दीपावली के दूसरे दिन धूप पड़वा पर होने वाले इस परंपरागत युद्ध को देखने जनप्रतिनिधि भी पहुंचते है. जहां युद्ध होता है वहां मेला भी लगता है. कलंगी और तुर्रा दल के योद्धाओं को ढाल को घर पर तिलक लगाकर और आरती उतारकर युद्ध के मैदान में पूरा दल ढोल ढमाके के साथ निकलता है और युद्ध के मैदान के पास स्थित देवनारायण मन्दिर पर दर्शन कर युद्ध के मैदान में जाते हैं.