Bhopal Bullock Cart Race: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक अनोखी रेस का आयोजन हुआ। जिसे देखने के लिए लोगों की जमकर भीड़ जुटी। दरअसल, यह रेस बैलगाड़ी की थी। जिसमें 36 जोड़ी बैलों ने भाग लिया। इस रेस में कुछ नियम भी बनाए गए थे। जो अपने आप में अनोखे थे।
बेल को नहीं मार सकते थे चाबुक
दरअसल, भोपाल के कटारा हिल्स में हुई इस पारंपरिक बैल गाड़ी दौड़ में बैलों को चाबुक नहीं मारा जा सकता था। केवल हुर्र की आवाज में ही बैलों को दौड़ाकर जीत हासिल करनी थी। ऐसे में रेस और भी दिलचस्प रही। हालांकि चालक जरूरत के मुताबिक बैल की लगाम को खींच और छोड़ सकते थे। ताकि वह जल्द से जल्द जीत सके।
विजेता को मिला 21 हजार का ईनाम
कटारा रोड के पास आयोजित 700 मीटर की इस बैलगाड़ी दौड़ में 35 बैलगाड़ियों ने भाग लिया। समाजसेवी जिवन राजपूत और ज्ञान सिंह राजपूत ने दौड़ की शुरुआत कराई। इस दौरान जीवन राजपूत ने कहा कि ऐेसे आयोजनों से गोवंश पालने की पुरानी परंपरा को बढ़ावा मिलेगा। जीवन राजपूत ने कहा कि युवा पीढ़ी में गोवंश के प्रति लगाव पैदा होगा। जीवन राजपूत ने पुरस्कार कमेटी को 21 हजार रुपये और ज्ञान सिंह राजपूत ने 11 हज़ार रुपये दिए। संचालन नरेंद्र राजपूत ने किया।
यह नजारा सोमवार को शहर में पहली बार हुई अनूठी बैलगाड़ी दौड़ प्रतियोगिता का रहा। इसका आयोजन 11 मील रापड़िया चौराहा के पास स्थित राजपूत कृषि फार्म में किया गया। इसमें 36 जोड़ी बैलों ने हिस्सा लिया। भोपाल के कटारा हिल्स निवासी नरेंद्र सिंह राजपूत की बैलजोड़ी ने 350 मीटर की दूरी 8.5 सेकंड में पूरी करके पहला स्थान प्राप्त किया। उन्हें 21 हजार रुपए का नगद इनाम दिया गया।
प्रथम स्थान पर नरेंद्र राजपूत की बैलगाड़ी रही। दूसरा स्थान पर करतार सिंह और तीसरे स्थान पर मुन्ना भैया की गाड़ी रही। पहले स्थान वाले को 21000 रुपये द्वितीय स्थान वाले बैलगाड़ी मालिका को 15000 रुपये और तृतीय स्थान पर 11000 रुपये का पुरस्कार दिया गया। अन्य प्रतिभागियों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
रेस देखने जुटी लोगों की भीड़
इस रेस की खास बात यह थी कि इसमें बेलों के साथ किसी भी प्रकार की क्रूरता करना बिल्कुल भी वर्जित था। इस आयोजन में 2 से 12 साल तक के बैल शामिल हुए थे। ऐसे में राजधानी भोपाल में हुए इस आयोजन को देखने के लिए लोगों की जमकर भीड़ जुटी थी।