Haryana Assembly Elections: पंजाब से अलग हुए हरियाणा को 58 साल हो चुके हैं। लेकिन कई ऐसे मुद्दे हैं, जो राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के चलते आज तक अनसुलझे हैं। पंजाब-हरियाणा के बीच एसवाईएल नहर और हाई कोर्ट अलग बनाने का विवाद लंबे समय से है। लेकिन अभी तक हल नहीं निकल पाया है। दोनों के बीच राजधानी चंडीगढ़ को लेकर भी वर्चस्व की लड़ाई है। पंजाब विधानसभा में कई बार चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपे जाने का प्रस्ताव पारित किया जा चुका है। इन विवादों का हल होने की कोई नजदीकी संभावना नहीं दिख रही है। लेकिन एक अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में ये मुद्दे फिर से जीवंत हो गए हैं।
#WATCH | Panipat: On water crisis in Delhi, former Haryana CM and Congress leader Bhupinder Singh Hooda says, “Haryana is not stopping anyone’s share of water. The SYL Canal should have opened as per the order of the Supreme Court…” pic.twitter.com/NGHlDM4jlJ
---विज्ञापन---— ANI (@ANI) June 21, 2024
1953 में चंडीगढ़ को बनाया गया था राजधानी
चंडीगढ़ के प्रशासक के पद पर हरियाणा के राज्यपाल की नियुक्ति न होना भी बड़ा मुद्दा है। बता दें कि आजादी से पहले पंजाब की राजधानी लाहौर थी। लेकिन बंटवारे के बाद जवाहर लाल नेहरू ने मार्च 1948 में चंडीगढ़ को राजधानी बनाने के लिए चुना। 7 अक्टबूर 1953 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसका औपचारिक उद्घाटन किया। 1966 में हरियाणा जब अलग हुआ तो चंडीगढ़ को पंजाब-हरियाणा की संयुक्त राजधानी बना दिया गया। तभी से विवाद जारी है।
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पंजाब को चंडीगढ़ के संसाधनों का 60 फीसदी हिस्सा मिला, जबकि हरियाणा को 40 फीसदी। सरकार ने इसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया था। तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने कहा था कि चंडीगढ़ कुछ ही समय संयुक्त राजधानी रहेगी। हरियाणा को अपनी राजधानी विकसित करने के लिए 5 साल का समय दिया गया था। केंद्र ने 10 करोड़ का अनुदान भी दिया था। जिसके तहत चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपा जाना था। लेकिन बात सिरे नहीं चढ़ सकी।
Since the High Court of Punjab and Haryana is in Chandigarh, there’s a space constraint. So we raised the long-pending demand to have a separate High Court for Haryana. The good thing is, the Punjab CM (Bhagwant Mann) also agreed on this: Haryana CM Manohar Lal Khattar pic.twitter.com/0JbV8gLLqv
— ANI (@ANI) April 30, 2022
बंसीलाल ने किया था राजीव-लोंगोवाल समझौते का विरोध
1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौते के तहत चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपा जाना था। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने इसका विरोध किया। जिसके बाद इस मामले को 26 जनवरी 1986 को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। शहर को आधा-आधा बांटने की बात भी हुई। लेकिन मामला सिरे नहीं चढ़ा। भाषायी आधार पर हरियाणा अबोहर और फाजिल्का के 109 गांवों पर अपना हक जताता है। डेराबस्सी और लालड़ू पर भी दावा करता है। लेकिन विवाद आज भी बरकरार है। एसवाईएल से हरियाणा को पानी दिए जाने की कवायद कई बार शुरू हुई है। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया। लेकिन कोई हल नहीं निकला।
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