केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में अधिकारों को लेकर एलजी विनय कुमार सक्सेना और पिछली दिल्ली सरकार के बीच चल रही अदालती लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट में नजर नहीं आएगी। सुप्रीम कोर्ट ने एलजी के अधिकार को चुनौती देने वाले 7 केस को वापस लेने की रेखा गुप्ता सरकार की मांग को मंजूर कर लिया है। यह केस इससे पहले सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किए थे। मौजूदा रेखा गुप्ता सरकार ने इन केस को वापस लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की थी, जिसे अदालत ने मंजूरी दे दी है।
एलजी के खिलाफ AAP पहुंची थी सुप्रीम कोर्ट
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद एलजी के साथ उनके विवाद के कई मामले सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। तत्कालीन आम आदमी पार्टी की सरकार ने यमुना सफाई, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट समेत कई कमेटी में एलजी के अधिकार क्षेत्र से लेकर प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर एलजी के अधिकार क्षेत्र पर आए कानून को चुनौती दी थी। 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने आप सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए जीएनसीटीडी एक्ट को चुनौती देने वाली अर्जी पर केंद्र को नोटिस भी जारी किया था। इस एक्ट के तहत सरकार ने अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए अथॉरिटी का गठन किया था। अब इन सभी केस की अदालती लड़ाई पर विराम लग जाएगा।
अदालत ने रेखा गुप्ता सरकार की मांग को मंजूरी दी
ये मामले लंबे समय से अदालत में लंबित थे। साथ ही केंद्र और उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) के बीच टकराव का मुद्दा बन गए थे।रेखा गुप्ता सरकार की ओर से दायर की याचिका पर आज सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस अगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने भाजपा नीत सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की दलीलों पर गौर किया और याचिका में की गई मांग को स्वीकार कर लिया। सुनवाई के दौरान एक वकील ने यह मुद्दा भी उठाया कि आम आदमी पार्टी सरकार के दौरान जिन वरिष्ठ अधिवक्ताओं को केस में लगाया गया था, उनका अब तक भुगतान नहीं हुआ है। इस पर सरकारी पक्ष ने आश्वासन दिया कि सभी लंबित फीस का भुगतान किया जाएगा।
दिल्ली सरकार ने दायर की थी याचिका
बता दें कि 22 मई को दिल्ली की मौजूदा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इन 7 मुकदमों को वापस लेने की याचिका दायर की थी। ये केस AAP सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान केंद्र और उपराज्यपाल के खिलाफ संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई के तहत दाखिल किए थे। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ हो गया है कि भाजपा सरकार पुराने विवादों को समाप्त कर प्रशासनिक स्थिरता की दिशा में आगे बढ़ना चाहती है।