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छत्तीसगढ़

भूपेश बघेल सरकार ने आदिवासियों को बनाया आत्मनिर्भर; कम लागत पर हो रही बेहतरीन कमाई

Chhattisgarh News: आत्मनिर्भरता के राह पर अगर आप बढ़ना चाहते हैं, तो सरकार भी आपके साथ खड़ी है। जी हां, कुछ ऐसी ही प्रेरित कहानी छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र ओड़गी में रहने वाले परिवारों की हैं। यहां के ग्रामीण परिवार खेती और वनों पर निर्भर हैं। संसाधनों के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है, […]

Author Edited By : Naresh Chaudhary Updated: Jun 11, 2023 19:13
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प्रतीकात्मक तस्वीर।

Chhattisgarh News: आत्मनिर्भरता के राह पर अगर आप बढ़ना चाहते हैं, तो सरकार भी आपके साथ खड़ी है। जी हां, कुछ ऐसी ही प्रेरित कहानी छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र ओड़गी में रहने वाले परिवारों की हैं। यहां के ग्रामीण परिवार खेती और वनों पर निर्भर हैं। संसाधनों के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है, लेकिन आदिवासी क्षेत्र के ग्रामीण परिवारों ने इसे ही अपनी आजीविका का साधन बनाया और महुआ, हर्रा, बहेरा, तेंदू पत्ता, नागरमोथा एवं अन्य वन्य उत्पादों का संग्रहण और बेचने का काम रही हैं।

इन्हीं में से कुछ परिवार वन क्षेत्र में पैदा होने वाली जंगली घास से सींक और फूल झाड़ू बनाते हैं। इसके बाद ने स्थानीय बाजारों में इन्हें बेच कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। झाड़ू बनाने के लिए कच्चे माल की उपलब्धता को देखते हुए, सूरजपुर के कलेक्टर संजय अग्रवाल और मुख्य कार्यपालन अधिकारी लीना कोसम के निर्देशन में एक बड़ा कदम उठाया गया है। ओड़गी विकासखंड की ग्राम पंचायत खर्रा में महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क (रीपा) में झाडू बनाने के काम की शुरुआत की गई है। इसमें बिहान योजना से बने सरस्वती महिला स्व-सहायता समूह की 8 महिलाएं झाड़ू बनाने का काम कर रही हैं।

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कम समय में ज्यादा झाड़ू निर्माण

इस योजना से जुड़ी समूह की सदस्य मीना राजवाड़े ने बताया कि हम पहले हाथ से झाड़ू की बुनाई करते थे, जिसमें बहुत समय लगता था। अब रीपा की ओर से मिली आर्थिक सहायता से झाडू बनाने के लिए मशीन खरीदी हैं। मीना ने बताया कि अब पहले के मुकाबले एक चौथाई से भी कम समय लगता है। साथ ही झाड़ू की क्वालिटी में भी फर्क आया है। इसका मूल्य भी बाजार में पहले से ज्यादा मिलता है।

रीपा से मिले पैसों से हम लोग प्लास्टिक हैंडल भी खरीदते हैं। इससे बाजार में बिकने वाले फूल झाडू की क्वालिटी का झाड़ू बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले हाथ से बनी झाड़ू 15 से 20 रुपये में बिकती थी, लेकिन मशीन से बनी झाड़ू 30 से 40 रुपये (थोक) में बिकती है। समूह के आठ महिलाओं ने बहुत कम समय में ही अब तक 1500 से ज्यादा यानी करीब 50 हजार रुपये की झाड़ू बनाई हैं। वहीं 25000 रुपए से ज्यादा की झा़ड़ू बेची जा चुकी हैं।

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रुरल इंडस्ट्रियल पार्क हो रहे विकसित

छत्तीसगढ़ सरकार आदिवासी क्षेत्र के लोगों के आर्थिक सुधार के लिए युद्ध स्तर पर काम कर रही है। बिहान योजना के विकासखंड परियोजना प्रबंधक संतोष राजवाड़े ने बताया कि ग्राम पंचायत खर्रा में रुरल इंडस्ट्रियल पार्क विकसित किए जा रहे हैं। इसमें झाड़ू निर्माण के साथ-साथ जिले का पहला कोदो प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाया जा रहा है।

विकासखंड के कई गांवों में माइनर मिलेट्स कोदो, कुटकी, सामा ज्यादा मात्रा में होता है, लेकिन इसके प्रोसेसिंग के लिए जिले में कोई भी यूनिट नहीं थी। न ही इसके प्रोसेसिंग के लिए यहां की दुकानों में कोई मशीन थी। इस कारण कच्चा कोदो बेचना ग्रामीणो की मजबूरी थी। छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वकांक्षी रुरल इंडस्ट्रियल पार्क के निर्माण से कोदो प्रॉसेसिंग यूनिट बनने का रास्ता खुल गया है।

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First published on: Jun 11, 2023 07:13 PM

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