बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। पार्टी सुप्रीमो मायावती के निर्देश पर बसपा ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अकेले सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। दिल्ली में 18 मई को बसपा सुप्रीमो मायावती के इस ऐलान ने बिहार की राजनीति को और गरमा दिया है। इसके लिए नेशनल को-ऑर्डिनेटर और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम और बिहार प्रभारी अनिल कुमार को मजबूत प्रत्याशियों के चयन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। आइए जानते हैं कि बसपा के इस निर्णय से बिहार की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? बसपा के चुनाव लड़ने से एनडीए या इंडी गठबंधन में किसका समीकरण बिगड़ेगा? क्या आकाश आनंद अपनी पहली परीक्षा में पास हो पाएंगे?
243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान
दिल्ली में 18 मई को बसपा की ऑल इंडिया मीटिंग में मायावती ने आकाश आनंद को चीफ कोऑर्डिनेटर बनाने का ऐलान किया था। साथ ही मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) बिहार में सभी 243 विधानसभा सीटों पर लड़ने का एलान किया। मायावती ने यह भी कहा है कि वह आगामी विधानसभा चुनाव में किसी के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी। शनिवार (18 मई) को पार्टी पदाधिकारियों की बैठक में बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर विस्तृत चर्चा की गई। बसपा इस बार बिहार विधानसभा के चुनावी मैदान में पूरी ताकत से उतरने की तैयारी में जुटी है। मायावती की नजर खासतौर पर बिहार के पश्चिमी हिस्से यानी यूपी बॉर्डर से सटे जिलों बक्सर, कैमूर और रोहतास पर है, जहां बसपा का परंपरागत दलित वोट बैंक पहले से मौजूद है। यहां की 25-30 सीटों पर बसपा की नजर है।
बिहार चुनाव बसपा के लिए अहम
बिहार की कुछ सीमाएं यूपी से सटी हैं और इन सीमावर्ती जिलों में बसपा का मजबूत कैडर है। बिहार में दलितों की आबादी 16 फीसदी के लगभग हैं। इसमें जाटव करीब 4.50 फीसदी हैं। बसपा की इस वोटबैंक पर काफी मजबूत पकड़ है। बिहार विधानसभा चुनाव में 2010 और 2015 को छोड़ दें तो बसपा अपना खाता खोलने में सफल रही है। साल-2000 में बसपा के 5 विधायक विधानसभा में पहुंचे थे। 2020 में भी बसपा के मो. जमा खान चैनपुर से जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे, जबकि कैमूर जिले की रामगढ़ सीट से बसपा प्रत्याशी अंबिका प्रसाद त्रिकोणीय संघर्ष में आरजेडी प्रत्याशी से सिर्फ 189 वोट से हारे थे।
2024 के लोकसभा चुनाव में क्या थी स्थिति?
लोकसभा 2024 के चुनाव में बसपा को बिहार में कुल 1.75 फीसदी वोट मिले थे। उस समय बसपा 37 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। 7 सीटों औरंगाबाद, भागलपुर, बक्सर, गया, जहानाबाद, कटिहार, सासाराम पर तीसरे स्थान पर रही थी। वहीं, 6 सीटों अररिया, दरभंगा, गोपालगंज, हाजीपुर, जमुई, झंझारपुर, काराकाट, मधेपुरा, मधुबनी, महाराजगंज, पश्चिमी चंपारण, पाटलिपुत्र, पटना साहिब, पूर्णिया, उजियारपुर और वैशाली में चौथे स्थान पर थी।
बुरे दौर से गुजर रही है बसपा
हालांकि, बसपा वर्तमान में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यूपी जैसे राज्य, जहां से बीएसपी उभरी, वहां उसका अब सिर्फ एक विधायक है। लोकसभा में कोई सांसद नहीं है। 2024 लोकसभा में पूरे देश में बसपा को सिर्फ 2 फीसदी ही वोट मिला था। यूपी में उसका वोट शेयर गिरकर 9.35 फीसदी परआ गया है। वहीं, लोकसभा के बाद महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी बसपा खाता नहीं खोल पाई। ऐसे में बिहार का चुनाव बसपा के लिए अहम है।
नीतीश के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश
बसपा बिहार में जेडीयू के वोट वैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। बिहार में कुर्मी और कोइरी जदयू के कोर वोटर माने जाते हैं। लेकिन, बसपा इस बार चुनाव में बड़ी संख्या में कुर्मी-कोइरी जाति के प्रत्याशियों उतारने की योजना बना रही है। इसके अलावा मुसलमान करीब 17 फीसदी हैं। मायावती मुस्लिमों को भी पर्याप्त संंख्या में प्रतिनिधित्व देने जा रही हैं। बसपा ने इस बार कुर्मी समाज से आने वाले अनिल चौधरी को प्रदेश प्रभारी बनाया है। वे चुनाव में काफी पैसा खर्च कर रहे हैं। अनिल चौधरी की वजह से बसपा को कुर्मी वोट भी मिलने की संभावना है।
बिहार तय करेगा आकाश आनंद का भविष्य
मायावती ने आकाश आनंद को एक बार फिर बड़ी जिम्मेदारी दी है। आकाश आनंद के लिए बिहार चुनाव काफी अहम है। सही मायने में बिहार चुनाव आकाश आनंद के लिए अग्नि परीक्षा की तरह है। उन्हें संगठन के स्तर पर साबित करना होगा कि वे मायावती की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने की काबिलियत रखते हैं। बिहार में मिली सफलता ही उन्हें बसपा में भविष्य का नेता साबित करेगी। आकाश आनंद को बिहार में रामजी गौतम और बिहार प्रभारी अनिल कुमार से तालमेल बैठाकर चलना होगा। साथ ही उन्हें पार्टी के अंदर आंतरिक कलह से भी निपटना होगा। सूत्रों के मुताबिक, बसपा को बिहार में तभी फायदा मिलेगा जब वह अपनी आंतरिक कलह को समय रहते सुलझा लेगी। प्रत्याशियों के चयन से लेकर पार्टी की रणनीति को फाइनल करने का जिम्मा आकाश पर होगा। ऐसे में तालमेल की कमी में बसपा को बिहार में धक्का भी लग सकता है।
2020 में बसपा ने किया था गठबंधन
अगर पिछले विधानसभा चुनाव (2020) की बता करें तो मायावती की बसपा ने उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के साथ गठबंधन कर 80 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। बसपा को उनमें से सिर्फ एक सीट कैमूर जिले की चैनपुर पर जीत मिली थी। वहां से बसपा के टिकट पर जमा खान ने जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद में वे जेडीयू में शामिल हो गए थे और फिर नीतीश सरकार में मंत्री भी बने।
किसे नुकसान पहुंचा सकती है BSP?
यूपी से सटे बिहार के जिलों में 4 फीसदी से अधिक जाटव बीएसपी के कोर वोटर रहे हैं। बीएसपी के सभी सीटों पर लड़ने से थोड़ा-बहुत नुकसान दोनों गठबंधनों को होगा, लेकिन एनडीए पर इसका असर अधिक हो सकता है, क्योंकि बसपा का वोट बैंक दलित वोटर ही हैं, जबकि एनडीए के दो सहयोगी चिराग पासवान की लोजपा और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की हम पार्टी का आधार भी दलित वोटर ही हैं। पासवान वोटर जहां चिराग के साथ लामबंद हैं, वहीं मुसहर सहित महादलित जीतन राम मांझी के कोर वोटर हैं। बसपा के मजबूती से लड़ने पर पासवान और महादलित वोटरों में यदि 1 फीसदी भी सेंधमारी करती है तो सीधे तौर पर एनडीए का समीकरण गड़बड़ा सकता है, खासकर उन सीटों पर जहां लोजपा और हम की बजाय भाजपा और जदयू के प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे।