Bihar voter list review 2025: बिहार में इन दिनों वोटर लिस्ट के रिव्यू को लेकर सियासत गरमाई हुई है। एक और विपक्ष लगातार इस प्रैक्टिस का विरोध कर रहा है। उसका कहना है कि इस प्रकिया के जरिए वंचित और अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाता को सूची से हटाया जा रहा है। तो दूसरी ओर सत्ता पक्ष और चुनाव आयोग कह रहे हैं कि इससे ये पता चलेगा कि कोई वोटर छूट तो नहीं रहा है। कुल मिलाकर अब इस पर जमकर सियासत हो रही है।
चुनाव आयोग के आदेशानुसार 1 जनवरी 2003 के बाद पंजीकृत हुए मतदाताओं को एन्यमूरेशन फॉर्म भरना होगा। इसके बाद एक मसौदा सूची प्रकाशित होगी। 2 अगस्त 2025 को मसौदा सूची के प्रकाशन के बाद ही मतदाता और विभिन्न दल इस पर आपत्ति दर्ज करा सकेंगे। उधर विरोध में उतरी पार्टियों ने तर्क दिया कि इतने कम समय में चुनाव आयोग द्वारा मांगे जा रहे दस्तावेजों को पूरा कर पाना संभव नहीं है। ऐसे में करीब 2 करोड़ वोटर इस बार वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं। ये अंदेशा विपक्ष की ओर से जताया जा रहा है। इसको लेकर अभी चुनाव आयोग की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
चुनाव आयोग की ओर से वोटर लिस्ट सत्यापन के लिए मांगे जा रहे दस्तावेजों को लेकर विवाद शुरू हो गया है। जानकारी के अनुसार चुनाव आयोग ने निम्न दस्तावेज मतदाताओं की पहचान के लिए मांगे हैं।
1.पासपोर्ट
2.बैंक, डाकघर या एलआईसी द्वारा जारी किया गया 1987 से पहले का प्रमाण पत्र
3.स्थाई निवास प्रमाण पत्र
4.जाति प्रमाण पत्र
5.मान्यता प्राप्त बोर्ड या विवि की डिग्री
6.मकान आवंटन पत्र
7.राज्य सरकार द्वारा तैयार रजिस्टर
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अवैध विदेशी प्रवासियों को हटाना चाहता है आयोग
बता दें कि इस सत्यापन प्रकिया में आधार कार्ड या वोटर आईडी कार्ड जैसे दस्तावेज नहीं मांगे जा रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह सामने आई है। आयोग का मकसद बिहार की मतदाता सूची से अवैध विदेश नागरिकों को हटाना है। गौरतलब है कि भारत के सामान्य पहचान पत्र जैसे आधार, वोटर आई और राशन कार्ड विभिन्न राजनीतिक दलों के सहयोग से बनवाए जाते रहे हैं। ऐसे में चुनाव आयोग 2003 से वोटर लिस्ट कर रिव्यू कर रहा है।
इन 6 राज्यों में भी होगा रिव्यू
चुनाव आयोग यह प्रकिया केवल बिहार में नहीं बल्कि अगले साल होने वाले कई राज्यों में होने वाले चुनाव में भी लागू करेगा। इसमें असम, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी शामिल हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि वह यह प्रकिया पहली बार नहीं अपना रहा है। इससे पहले वोटर लिस्ट रिवीजन 1952-56, 1957, 1961, 1965, 1966, 1983-84, 1987-89, 1992, 1993, 1995, 2002-2003, और 2004 में कर चुका है। बता दें कि चुनाव आयोग को यह अधिकार 1950 में बने रिप्रेंजेटेशन ऑफ पीपुल एक्ट 21 (3) के तहत मिला है। ऐसे में अब देखना यह है कि मसौदा सूची प्रकाशित होने के बाद कितने लोग मतदाता सूची से बाहर होते हैं।
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