Age of Moon: भारत में चन्द्रमा का बहुत महत्व है। जहां इसकी अपनी एक धार्मिक महत्ता है, वहीं सैकड़ों गाने और कविताएं है, जो चांद की सुंदरता पर लिखे गए हैं। हालांकि चंद्रमा, साइंस और स्पेस सेक्टर में भी अध्ययन का एक बड़ा विषय बना रहता है। अगर धार्मिक ग्रंथों और पुराणों की मानें तो चांद का अस्तित्व बहुत पुराना है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सांइस ने इसको लेकर एक नया खुलासा किया है? जी हां, हाल ही में एक स्टडी में पता चला है कि चंद्रमा की उम्र अपनी बताई आयु से बहुत अधिक हो सकता है। आइए इसका क्या कारण है।
चांद की आयु ?
स्टडी में पता चला है कि चांद की सतह पर ज्वालामुखीय बदलाव हुआ होगा, जो यह बता सकता है कि यह वास्तव में जितना पुराना है, उससे कम उम्र का क्यों दिखाई देता है। इसके साथ ही चंद्रमा उपस्थित दुर्लभ लूनर जिक्रोन मिनरल भी इसकी तरफ इशारा करना है, क्योंकि यह मिनिरल लगभग 4.5 बिलियन साल ( 450 करोड़ साल ) पहले हुआ करता था।
इसके अलावा प्लेनेटरी सिमुलेशन भी इसके साक्ष्य माना जाते हैं, जो संकेत देते हैं कि सौरमंडल के निर्माण के 25 करोड़ साल के एक बड़े कोलेजन से चंद्रमा का फॉर्मेशन हुआ था। ये मॉडल बताते हैं कि इस तरह के विशाल टकरावों के लिए जिम्मेदार अधिकांश बड़े ऑब्जेक्ट लगभग 440 करोड़ साल पहले ही बड़े ऑब्जेक्ट में बदल गए थे।
सामने आया नया अध्ययन
हालांकि एक स्टडी में चांद की उम्र क लेकर एक नई व्याख्या पेश की गई है। बताया जा रहा है कि चंद्रमा की सतह लगभग 4.35 बिलियन वर्ष पहले फिर से मेल्ट हुई होगी, जिससे चंद्रमा की चट्टानों की आयु पर रीसेट हो गई है. ऐसे में इसकी वास्तविक आयु छिप गई।
आपको बता दें कि चंद्रमा की आयु निर्धारित करने के लिए वैज्ञानिकों ने पहले अपोलो मिशन द्वारा वापस लाए गए चंद्र नमूनों का अध्ययन किया था। माना जाता है कि ये चट्टानें मैग्मा महासागर से क्रिस्टलाइजेशन से बनी हुई हैं, जो अंतिम प्रभाव के बाद चंद्रमा पर बनी थीं। इसे ये परिणाम सामने आए, जिससे संकेत मिलता है कि चंद्रमा लगभग 4.35 बिलियन वर्ष पुराना था।
स्पेस डॉट कॉम के साथ एक इंटरव्यू में स्टडी के मुख्य लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सांताक्रूज के प्लेनेटरी साइंटिस्ट फ्रांसिस निम्मो ने कहा कि चट्टानों द्वारा दर्ज की गई आयु का उपयोग यह बताने के लिए नहीं किया जा सकता कि चंद्रमा कब बना।
उन्होंने बताया कि चंद्रमा के रीमेल्टिंग का कारण एक फोर्स है, जो पृथ्वी के महासागरों के बढ़ने और गिरने( ज्वार भाटा) के लिए जिम्मेदार टाइडल फोर्स के समान होता है। जिस तरह चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी को प्रभावित करता है, उसी तरह हमारे ग्रह का गुरुत्वाकर्षण भी चंद्रमा को खींचता है।
जब चंद्रमा पहली बार बना था, तो यह पृथ्वी की परिक्रमा अब की तुलना में बहुत करीब से करता था। यानी चंद्रमा पर पृथ्वी के टाइडल फोर्स कहीं अधिक शक्तिशाली रहे होंगे। नए अध्ययन से पता चलता है कि टाइडल फोर्स चंद्रमा पर उथल-पुथल और बहुत अधिक हीट का कारण बना, जिससे बड़े स्तर पर रीमेल्टिंग हुई।