---विज्ञापन---

Science Tech: ISRO के इन छह मिशन से भारत बनेगा अंतरिक्ष महाशक्ति

लेख: डॉ. आशीष कुमार। इसरो (ISRO) ने अपना सफर साइकिल और बैलगाड़ी शुरू किया था। राकेट को साइकिल पर और सैटेलाइट को बैलगाड़ी पर ढोया गया था। इसरो (ISRO Mission) की मेहनत का नतीजा है कि अब भारत अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में दुनिया के टॉप देशों में शामिल है। इसरो भविष्य की कई महत्वपूर्ण […]

Edited By : News24 हिंदी | Updated: Jul 11, 2023 13:02
Share :
ISRO 6 Mission

लेख: डॉ. आशीष कुमार। इसरो (ISRO) ने अपना सफर साइकिल और बैलगाड़ी शुरू किया था। राकेट को साइकिल पर और सैटेलाइट को बैलगाड़ी पर ढोया गया था। इसरो (ISRO Mission) की मेहनत का नतीजा है कि अब भारत अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में दुनिया के टॉप देशों में शामिल है। इसरो भविष्य की कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इनमें छह ऐसे प्रोजेक्ट हैं, जिनके सफल होने पर भारत स्वयं को अंतरिक्ष महाशक्ति (space superpower) के रूप में स्थापित कर लेगा।

आदित्य एल-1 मिशन (aditya L1 mission)

ISRO aditya L1 Mission

---विज्ञापन---

आदित्य एल-1 सूर्य के अध्ययन के लिए भेजा जाने वाला भारत का पहला स्पेश मिशन होगा। भारत इससे पहले चंद्रमा के अध्ययन के लिए चंद्रयान और मंगल ग्रह के अध्ययन के लिए मंगल मिशन भेज चुका है।

आदित्य शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ होता है सूर्य। ‘एल1’ का अर्थ ‘लेंगरेंज पाइंट’ से है, जोकि सोलर सिस्टम में पृथ्वी और सूर्य के बीच के एक स्थान के बारे में बताता है। पृथ्वी से लेंगरेंज पॉइट की दूरी करीब 15 लाख किलोमीटर है। आदित्य एल-1 मिशन में भेजे जाने वाली सैटेलाइट को अंतरिक्ष के एल1 स्थान पर स्थापित किया जाएगा। इस मिशन को इसरों द्वारा 2019 में भेजा जाना था, लेकिन कोविड महामारी के दौरान हार्डवेयर हासिल करने में हुई दिक्कतों के कारण इसमें देरी हुई है। अब इस मिशन को जून 2023 में संपन्न होने की संभावना है।

---विज्ञापन---

सूर्य के बाहरी क्षेत्र ‘कोरोना’ के अध्ययन के लिए भेजे जाने वाले इस मिशन का नाम पहले आदित्य-1 था, जिसमें 400 किलोग्राम सैटेलाइट पैलोड को भेजा जाना था। अब इस मिशन का नाम बदलकर आदित्य एल-1 कर दिया गया है।

सूर्य के ‘फोटोस्फीयर’ का तापमान लगभग 6 हजार डिग्री सेल्यिस होता है, लेकिन इस फोटीस्फीयर से करीब 10 हजार किलोमीटर की उंचाई पर तापमान 10 लाख डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इसी रहस्य को जानने के लिए इसरो ने आदित्य एल-1 मिशन भेजने की योजना बनाई। मिशन में देरी के साथ इसे अपडेट भी किया गया है। अब इस मिशन में 7 पैलोड भेजे जाएंगे। जिनके द्वारा ‘सोलर इमिशन’, ‘सोलर विंड’, ‘सोलर मास इजेक्शन’ आदि का अध्ययन किया जाएगा। इन वैज्ञानिक अध्ययनों का उद्देश्य ‘अंतरिक्ष मौसम’ की जानकारी जुटाना है। सूर्य के फोटोस्फीयर में होने वाले बदलाव पृथ्वी के मौसम को गहराई से प्रभावित करते हैं।

आदित्य एल-1 मिशन में भेजे जाने वाले सात पैलोड में दो महत्वपूर्ण पैलोड ‘एसयूआईटी – सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप पैलोड’, और वीईएलसी पैलोड – विजिवल इमिशन लाइन कोरोनाग्राफ है। इनके द्वारा सूर्य भौतिकी को समझने में मदद मिलेगी। सूर्य से संबंधित इन पहलुओं को अध्ययन करने वाला भारत पहला देश होगा। इस मिशन की सफलता अंतरिक्ष का अध्ययन करने वाली बिरादरी में भारत को विशेष स्थान दिलाएगी।

स्पेडेक्स (SPADEX)

ISRO SPADEX Mission

केंद्रीय परमाणु उर्जा और अंतरिक्ष मंत्री जितेन्द्र सिंह ने संसद में बयान दिया था कि वर्ष 2030 तक भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन होगा। इसी की तैयारियों के तहत भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिक ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट’ के लिए काम कर रहे हैं।

स्पेस डॉकिंग का अर्थ अंतरिक्ष में दो यानों या वस्तुओं को आपस में जोड़ना, पदार्थ को एक अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान में भेजना, अंतरिक्ष में चहकदमी करना, अंतरिक्ष में सैटेलाइट या अंतरिक्ष यान की मरम्मत का कार्य करने से संबंधित है। इस तकनीक की आवश्यकता अंतरिक्ष स्टेशन से अंतरिक्ष यान को जोड़ने व अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष स्टेशन के अंदर पहुंचाने में किया जाएगा।

स्पेस स्टेशन का निर्माण भी इसी तकनीक के संपन्न किया जाता है। इस तकनीक पर इसरो गंभीरता से काम करा है। स्पेडेक्स प्रोजेक्ट के प्रयोग पहले ही किए जाने थे, लेकिन कोविड महामारी के कारण इसमें देरी हुई है, अब इसकी संभावना इस साल के अंत तक लांच होने की है। अभी तक रूस, अमेरिका और चीन अपने स्पेस स्टेशन बनाने में सफल हो पाए हैं, भारत ऐसा करने वाला चौथा देश होगा।

चंद्रयान-3 मिशन (chandrayaan-3 mission)

ISRO chandrayaan-3 Mission

चंद्रमा के अध्ययन के लिए भारत अब तक दो अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 भेज चुका है। चंद्रयान-1 मिशन के द्वारा भारत ने बताया था कि चंद्रमा के धुव्रों पर जल उपस्थित है। चंद्रयान-2 मिशन आंशिक रूप से असफल रहा था, जिसके ‘लैंडर’ और ‘रोवर’ की लैंडिग चंद्रमा पर सफलता पूर्वक नहीं हो पायी थी।

चंद्रयान-2 का ‘ऑर्बिटर’ आज भी सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है और चंद्रमा के अध्ययन में सहायता कर रहा है। चंद्रयान-3 भारत का बहुत ही महत्वाकांक्षी मिशन है। इस मिशन में भारत केवल लैंडर और रोवर को भेजगा। इस मिशन में आर्बिटर को नहीं भेजा जाएगा।

इस मिशन में लैंडर और रोवर को चंद्रमा के दक्षिणी क्षेत्र मे भेजा जाएगा। चंद्रमा का दक्षिणी धुव्र रहस्यों से भरा हुआ है। दुनिया का कोई भी देश अभी तक चंद्रमा के दक्षिणी क्षेत्र में अपना अंतरिक्ष मिशन नहीं भेज पाया है। भारत ने मौजूदा साल 2023 के मध्य तक चंद्रयान मिशन को लांच करने की योजना बनाई है। यदि यह मिशन कामयाब रहता है तो भारत चंद्रमा के दक्षिणी क्षेत्र में पहुंचने वाला पहला देश होगा।

चंद्रमा के दक्षिणी क्षेत्र में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की उत्सुकता का कारण उस क्षेत्र में स्थित विशाल क्रेटर में अंतरिक्ष जीवाश्मों के पाए जाने की संभावना है, जिनके अध्ययन से सौर मंडल और अंतरिक्ष के अनेक रहस्यों से पर्दा उठाया जा सकता है। चीन और अमेरिका में भी चंद्रमा के दक्षिणी क्षेत्र पर पहुंचने की होड़ लगी हुई है।

गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission)

ISRO Gaganyaan Mission

गगनयान मिशन भारत का मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन है। गगनयान मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजा जाएगा। इस मिशन के तहत प्रारंभ में तीन अभियान किए जाएगा। पहले दो अभियान मानव रहित प्रायोगिक अभियान होंगे। तीसरे अभियान में तीन अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी से 300-400 किलोमीटर की उंचाई पर अंतरिक्ष में 5-7 दिनों तक रखा जाएगा। इन तीन यात्रियों में एक महिला अंतरिक्ष यात्री भी शामिल रहेगी।

इसरो ने तय किया गया है कि भारत के अंतरिक्ष यात्रियों को ‘व्योमनॉट’ कहा जाएगा। ‘व्योम‘ एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ‘आकाश’ है। मानव रहित गगनयान मिशन में जिस रोबोट को भेजा जाएगा, उसे ‘व्योममित्र’ कहा जाएगा। इस मिशन के लांच के साथ ही भारत अमेरिका, चीन, रूस देशों के क्लब में शामिल हो जाएगा।

एक्पोसेट (Xposat)

ISRO Xposat Mission

एक्पोसेट यानी एक्सरे पोलेराइजेशन सैटेलाइट। यह इसरो का कॉस्मिक एक्सरे का अध्ययन करने वाला महत्वाकांक्षी मिशन है। इसे उच्च उर्जा वाले अंतरिक्षीय पदार्थों को अनेक तरंगदैर्ध्यों में अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है। इससे पल्सर, ब्लैक होल, एक्सरे बाइनरिज, एक्टिव गैलक्टिक न्यूकलाई, नॉन थर्मल सुपरनोवा का अध्ययन किया जाएगा। यह अंतरिक्ष शोध क्षेत्र में इसलिए महत्वपूर्ण है कि तमाम अंतरिक्ष तकनीक विकास के बावजूद एस्ट्रोफिजिक्स एक्सरे पोलेराइजेशन के क्षेत्र में विकास नहीं हुआ है। भारत का इस क्षेत्र में प्रयास अंतरिक्ष के नए आयाम खोलेगा, जोकि भारत के लिए ही नहीं बल्कि विश्व के लिए बड़ी उपलब्धता होगी।

निसार (nisar)

ISRO nisar Mission

निसार अमेरिका के नासा और भारत के इसरो की संयुक्त योजना है। ‘निसार’ का मतलब नासा इसरो सिंथेटिक अपरचर रडार है। जो डयूअल फ्रिक्वेंसी ‘एल बैंड’ और ‘एस बैंड’ पर काम करेगी। यह पृथ्वी अवलोकन का प्रोजेक्ट है। इसमें एसयूवी कार साइज की सैटेलाइट शामिल होगी, जिसका वजन करीब 2400 किलो होगा।

निसार को आंध्र प्रदेश के सतीश धवन केंद्र से 2024 में लांच होने की संभावना है। इसके द्वारा पूरी पृथ्वी की भौगालिक स्थितियों की मैपिंग की जाएगी। पृथ्वी की सतह पर होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों को भी इस सैटेलाइट के जरिए देखा जा सकेगा। प्राकृतिक घटनाओं के कारण और परिणामों को समझने में मदद मिलेगी। यह वन क्षेत्रों की निगरानी, ग्लेशियरों में आ रहे बदलाव, ज्वालामुखी विस्फोट, भूंकप, सुनामी, भूस्खलन के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान देगी।

इस सैटेलाइट से उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें प्राप्त होंगी। यह सैटेलाइट किसी भी मौसम में कार्य करने में सक्षम होगी। यह रात में तस्वीर लेने और बादलों को भेदकर मैपिंग करने में समर्थ होगी। यह 12 दिनों में पूरी पृथ्वी की मैपिंग करने में समक्ष होगी।

(लेखक इंटरनेशनल स्कूल ऑफ मीडिया एंड एंटरटेनमेंट स्टडीज (ISOMES) में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)

HISTORY

Edited By

News24 हिंदी

First published on: Mar 29, 2023 03:40 PM
संबंधित खबरें