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ISRO रचने जा रहा इतिहास! अंतरिक्ष में रोबोटिक आर्म्स से सैटेलाइट पकड़ने की टेक्नोलॉजी करेगा टेस्ट

ISRO Servicer Mission: इसरो एक नई टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है। जिसके जरिए सैटेलाइट को रोबोटिक आर्म से पकड़ा जा सकेगा।

Edited By : Pushpendra Sharma | Updated: Oct 25, 2024 23:25
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ISRO Servicer Mission
इसरो चीफ एस सोमनाथ।

ISRO Servicer Mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) नित-नए कीर्तिमान छू रहा है। मून मिशन और सोलर मिशन जैसे कई सफल अभियानों के बाद इसरो ने अद्भुत कारनामा करने का बीड़ा उठाया है। दरअसल, इसरो भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने 2030 तक जीरो डेबरिस (शून्य मलबा) प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है।

इस साल दो प्रमुख मिशन लॉन्च करने की प्लानिंग 

जिसके तहत सैटेलाइट सर्विसिंग और डेब्रिस कैप्चर टेक्नोलॉजी पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है। इसके लिए कई नए मिशन चलाए जा रहे हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इसरो इस साल कम से कम दो प्रमुख मिशन लॉन्च करने की योजना बना रहा है। खास बात यह है कि इसरो मलबा-मुक्त अंतरिक्ष की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने के लिए पूरी तरह तैयार है।

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SPADEX मिशन करेगी लॉन्च

इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि अंतरिक्ष एजेंसी अगले महीने SPADEX मिशन लॉन्च करेगी। इस मिशन के जरिए डॉकिंग तकनीक का परीक्षण किया जाएगा। जिससे उपग्रहों के बीच कम्यूनिकेशन संभव हो सकेगा। इसके साथ ही इस तकनीक के जरिए उपग्रहों के दो अलग-अलग हिस्सों को सुरक्षित रूप से जोड़ा जा सकता है।

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इसरो सर्विसर मिशन

इसके अलावा एजेंसी इसरो सर्विसर मिशन का टेस्ट करने जा रही है। जिसमें ‘टेथर्ड डेब्री कैप्चर’ टेक्नीक का उपयोग किया जाएगा। इसके तहत एक रोबोटिक आर्म मूव कर रहे सैटेलाइट को पकड़ सकता है। यह मिशन ऑन-ऑर्बिट सर्विसिंग, सैटेलाइट लाइफ एक्सटेंशन और इंस्पेक्शन की क्षमताओं को शोकेस करेगा।

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एक्सपेरिमेंट के लिए तैयार

सोमनाथ ने कहा- अंतरिक्ष की कई समस्याओं का अभी तक कोई समाधान नहीं है। अंतरिक्ष के मलबे के प्रबंधन को लेकर खास तौर पर कोई समाधान नहीं निकला है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम नई तकनीकों को विकसित करने से कतराएंगे। हम नई चुनौतियों और एक्सपेरिमेंट के लिए तैयार हैं।

‘मेक इन इंडिया’ पर जोर

इसरो के अध्यक्ष डॉ. एस ने एक कार्यक्रम में ‘मेक इन इंडिया’ पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि 95% रॉकेट भारत में बनाए जा रहे हैं, जबकि 5% बाहर से आते हैं। इन 5% में ज्यादातर इलेक्ट्रॉनिक हिस्से होते हैं। दूसरी ओर अंतरिक्ष यान की बात की जाए तो लगभग 60% निर्माण भारत में किया जाता है, जबकि 40% बाहर से आता है या फिर 40%, इलेक्ट्रॉनिक हिस्से के रूप में हैं। अंतरिक्ष यान के लिए हाई क्वालिटी इलेक्ट्रॉनिक्स पर निर्भरता बहुत अधिक है। रॉकेट के लिए हमारे पास अच्छी खासी क्षमता है। जिसके जरिए हम भारत में भी 100% इंडिजिनियस रॉकेट बना सकते हैं।

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Edited By

Pushpendra Sharma

First published on: Oct 25, 2024 11:21 PM

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