Chandrayaan-3 Updates India’s Moon Mission: भारत के मून मिशन के लिए बुधवार का दिन ऐतिहासिक रहा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की ओर से भेजे गए चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंड करते ही इतिहास रच दिया। भारत साउथ पोल पर लैंड करने वाला पहला देश बन गया। इसी के साथ चांद की सतह पर लैंड करने वाला चौथा देश भी बन गया।
इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन ऐसा कर चुके हैं। चंद्रयान-1 से लेकर चंद्रयान-2 तक भारत ने टेक्नोलॉजी के मामले में खूब तरक्की की है। ऐसे में लैंडिंग के सफल होने पर दुनियाभर में न सिर्फ हमारा नाम होगा, बल्कि टेक्नोलॉजी के मामले में हम पर दूसरे देशों का भरोसा भी बढ़ जाएगा। भारत ने चंद्रयान-1 से लेकर चंद्रयान-3 तक खूब तरक्की की है। ऐसे में जानते हैं चंद्रयान-1 से लेकर चंद्रयान- 3 तक का सफर…
चंद्रयान-1
इसरो के अनुसार, भारत का पहला मून मिशन, 22 अक्टूबर 2008 को एसडीएससी शार, श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। इस अंतरिक्ष यान में भारत, जर्मनी, स्वीडन, बुल्गारिया, अमेरिका और ब्रिटेन में बनाए गए 11 वैज्ञानिक उपकरण शामिल थे। अंतरिक्ष यान चंद्रमा के कैमिकल, मिनरल्स और फोटो जियोलॉजिकल मैपिंग के लिए चंद्रमा की सतह से 100 किमी की ऊंचाई पर चारों ओर परिक्रमा कर रहा था। सभी प्रमुख मिशन उद्देश्यों के सफल समापन के बाद मई 2009 के दौरान कक्षा को 200 किमी तक बढ़ा दिया गया। इसके बाद उपग्रह ने चंद्रमा के चारों ओर 3400 से अधिक परिक्रमाएं कीं। यह चंद्रमा की कक्षा में 312 दिन रहा और डेटा भेजता रहा। यान ने 70 से ज्यादा तस्वीरें भेजीं। तब कुछ पहाड़ों जैसे दृश्य भी नजर आए थे। चंद्रयान-1 से खनिज और रासायनिक तत्त्वों का पता लगाने के साथ चंद्रमा के दोनों ओर की 3-डी तस्वीर तैयार की गई। फिर जब 29 अगस्त 2009 को अंतरिक्ष यान के साथ संचार खो गया तब इस मिशन को खत्म कर दिया गया।
Chandrayaan-3 Mission:
All set to initiate the Automatic Landing Sequence (ALS).
Awaiting the arrival of Lander Module (LM) at the designated point, around 17:44 Hrs. IST.---विज्ञापन---Upon receiving the ALS command, the LM activates the throttleable engines for powered descent.
The… pic.twitter.com/x59DskcKUV— ISRO (@isro) August 23, 2023
चंद्रयान-2
वहीं दूसरी ओर चंद्रयान-2 को लगभग 4 साल पहले 22 जुलाई 2019 को भेजा गया। हालांकि यह चांद की सतह पर सफल लैंडिंग करने में कामयाब नहीं हो पाया। दरअसल, जब लैंडर चंद्रमा की सतह से सिर्फ 2 किलोमीटर दूर था, तब उसका संपर्क कंट्रोल रूम से टूट गया। चंद्रयान-2 में चंद्रमा के अज्ञात दक्षिणी ध्रुव का पता लगाने के लिए एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल थे। मिशन को भूकंप विज्ञान, खनिज पहचान, सतह की रासायनिक संरचना, मिट्टी की भौतिक विशेषताओं समेत चांद के वातावरण की संरचना के विस्तृत अध्ययन के लिए भेजा गया था।
20 अगस्त, 2019 को चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया गया। जबकि 2 सितंबर, 2019 को 100 किमी चंद्र ध्रुवीय कक्षा में चंद्रमा की परिक्रमा करते समय विक्रम लैंडर लैंडिंग के वक्त ऑर्बिटर से अलग हो गया था। बाद में, विक्रम लैंडर पर दो डी-ऑर्बिट अभ्यास किए गए ताकि इसकी कक्षा को बदला जा सके। विक्रम लैंडर का उतरना योजना के अनुसार था और 2.1 किमी की ऊंचाई तक सामान्य प्रदर्शन देखा गया। इसके बाद लैंडर का ग्राउंड स्टेशन से संपर्क टूट गया। इसके बावजूद ऑर्बिटर अपना काम करते हुए महत्वपूर्ण डेटा भेजता रहा।
चंद्रयान-3
चंद्रयान-3 के जरिए भारत ने सॉफ्ट लैंडिंग को सफल बनाया है। इसके जरिए भारत को चांद पर आने वाले भूकंपों, थर्मल प्रॉपर्टीज और चांद व धरती के बीच की सटीक दूरी मापने समेत चांद के विस्तृत अध्ययन का मौका मिलेगा। चांद की सतह पर रासायनिक और खनिजों की भी डीटेल स्टडी की जा सकेगी। खास बात यह है कि चंद्रयान 3 पूरी तरह स्वदेशी है। इसके उपकरण भारत की कंपनियों ने बनाए हैं।
क्या है सॉफ्ट लैंडिंग?
सॉफ्ट लैंडिंग का अर्थ किसी भी सैटलाइट को किसी लैंडर से सुरक्षित उतारना होता है। ताकि वो अपना काम ठीक से कर सके। चंद्रयान-2 को भी इसी तरह चन्द्रमा की सतह पर उतारना था, लेकिन आखिरी क्षणों में ऐसा नहीं हो पाया और भारत को झटका लगा। इस बार वैज्ञानिक आश्वस्त थे कि भारत इतिहास रचेगा। खास बात यह है कि दुनियाभर के 50 फीसदी से भी कम मिशन सॉफ्ट लैंडिंग में कामयाब रहे हैं।