Supernova: जैसा कि हम जानते हैं कि इस यूनिवर्स में हम अकेले नहीं है। यहां करोड़ों तारे और अन्य दूसरे ग्रह है। ऐसे में हमें कोई न कोई दुर्लभ घटना दिखाई या सुनाई देती है, जो हमारा ध्यान खींचती है। ऐसी ही एक घटना सुपरनोवा है। बता दें कि अगले 100,000 सालों में एक दुर्लभ ब्रह्मांडीय घटना हो सकती हैं, मगर क्या हमारी पृथ्वी इसके लिए तैयार है। हम एक ऐसे सुपरनोवा की बात कर रहे है, जो एक लाल सुपरजाइंट तारा बेटेलगेस के ओरियन नक्षत्र में विस्फोट से होगा। अब सवाल उठता है कि ये सुपरनोवा कैसे पृथ्वी को प्रभावित कर सकता है और इसके लिए क्या-क्या फैक्टर जरूरी है। आइए इसके बारे में जानते हैं।
क्या है सुपरनोवा?
सुपरनोवा के प्रभाव को समझने से पहले हमें ये समझना होगा की सुपरनोवा क्या होता है। सुपरनोवा एक बड़ा विस्फोट होता है जो एक स्टार के जीवन काल के अंत में होता है। हालांकि ये घटना काफी दुर्लभ हैं। ‘सुपरनोवा’ लैटिन के नए ( नोवा ) और ऊपर ( सुपर ) से मिलकर बना है, क्योंकि सुपरनोवा रात के आसमान में नए सितारों के रूप में दिखाई देते हैं।
सुपरनोवा किसी बाइनरी स्टार सिस्टम में भी हो सकता है। बाइनरी स्टार सिस्टम में दो तारें एक सेंट्रल प्वॉइट के चारों ओर ऑर्बिट करते हैं। इस सिस्टम में एक तारा दूसरे तारे से मैटेरियल को जमा करता है, जिससे इसका द्रव्यमान (Mass) बढ़ने लगता है। जब यह एक निश्चित द्रव्यमान पर पहुंच जाता है तो यह विस्फोट कर जाता है। इसके बाद केवल एक डेंस कोर रह जाता है, जिसे न्यूट्रॉन स्टार कहते हैं। वहीं अगर स्टार बहुत बड़ा होता है तो यह ब्लैक होस क्रिएट कर सकता है। हालांकि हमारी गैलेक्सी में होने वाले सुपरनोवा को देखना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि यह डस्ट में छुप जाता है। आखिरी बार जो सुपर नोवा देखा गया था, वो 1604 में हुआ था।
बेटेलगेस का पृथ्वी पर होगा असर?
जैसा कि हम जान चुके हैं कि सुपरनोवा एक विस्फोटक घटना है, ऐसे में ये कभी-कभी सूरज जितना चमकीला हो सकता है। इसकी चमक इतनी तेज हो सकती है कि यह दिन के उजाले में भी दिखाई देगी और आधी रात को भी इसकी रोशनी में किताबें पढ़ी जा सकती हैं। हालांकि कुछ महीनों के बाद इसकी चमक धीरे-धीरे कम हो जाएगी। अब सवाल यह है कि क्या बेटेलगेस के विस्फोट से हमारी पृथ्वी को कोई नुकसान होगा? ऐसे में हमें ये देखना होगा कि सुपरनोवा और पृथ्वी के बीच की दूरी कितना है।
सुपरनोवा का प्रभाव
बता दें कि बेटेलगेस पृथ्वी से लगभग 650 प्रकाश वर्ष दूर है, इसलिए पृथ्वी पर इसके प्रभाव होने की संभावना बहुत कम है। हालांकि स्पेस डॉट कॉम ने बताया कि इस विस्फोट से शॉक वेव निकल सकती है, लेकिन इसका प्रभाव हमारे ग्रह तक नहीं होगा। पृथ्वी को प्रभावित करने के लिए सुपरनोवा को कम से कम 30 प्रकाश वर्ष दूर होना होगा। अगर ऐसा होता है तो रेडिएशन के कारण धरती की सुरक्षात्मक वायुमंडलीय परतें फट सकती हैं। सुपरनोवा से निकलने वाली तेज रोशनी से लोगों से लोग अंधे भी हो सकते हैं।
सुपरनोवा से कुछ किरणों निकलती है ,जो लाइट की स्पीड से यात्रा करती हैं। इन किरणों में एटमिक नाइट्रोजन और ऑक्सीजन को तोड़ने की क्षमता होती है। ये तत्व ज्यादातर अणुओं के रूप में रहना पसंद करते हैं। हालांकि जब वे टूट जाते हैं तो रिजल्ट खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इससे एक रिएक्शन होता है, जिससे लाफिंग गैस (नाइट्रस ऑक्साइड) सहित कई नाइट्रोजन ऑक्साइड बनेंगे। यह गैस ओजोन परत को काफी नुकसान पहुंचा सकती हैं।
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