सनातन धर्म के लोगों के लिए साल में आने वाली प्रत्येक अमावस्या, पूर्णिमा और एकादशी तिथियों का खास महत्व है। इन तीनों तिथियों पर पूजा-पाठ, व्रत, स्नान और दान करने से साधक को विशेष लाभ होता है। साल में 24 बार यानी एक माह में दो बार एकादशी का व्रत रखा जाता है। हर माह पहला एकादशी का व्रत कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष की तिथि के दिन रखा जाता है। मान्यता है कि एकादशी तिथि के दिन चंद्र ग्रह की जो स्थिति होती है, उसी के अनुरूप व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए चंद्रमा की स्थिति और ग्रहों के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए एकादशी का व्रत रखा जाता है।
24 एकादशी में से एक वरुथिनी एकादशी को बेहद खास माना जाता है, जिस दिन श्री हरि विष्णु के मधुसूदन स्वरूप की पूजा की जाती है। साथ ही उपवास रखा जाता है और रात के समय जागरण किया जाता है। इस दिन उपवास रखने से साधक को सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के लिए भी वरुथिनी एकादशी का खास महत्व है, क्योंकि इसी दिन श्री वल्लभाचार्य का जन्म हुआ था। चलिए धर्म की अच्छी खासी जानकारी रखने वाली नम्रता पुरोहित कांडपाल से जानते हैं इस साल अप्रैल माह में किस दिन वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा।
2025 में कब है वरुथिनी एकादशी?
वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार, हर साल वैशाख माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस बार एकादशी तिथि की शुरुआत 23 अप्रैल 2025, वार बुधवार को शाम 4:45 से हो रही है, जिसका समापन अगले दिन 24 अप्रैल 2025, वार गुरुवार को दोपहर 2 बजकर 32 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर वरुथिनी एकादशी का उपवास 24 अप्रैल 2025, दिन गुरुवार को रखा जाएगा।
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वरुथिनी एकादशी व्रत के पारण का समय
वरुथिनी एकादशी के व्रत का पारण 25 अप्रैल 2025, दिन शुक्रवार को किया जाएगा। इस दिन व्रत के पारण का शुभ मुहूर्त प्रात: काल 5 बजकर 46 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 23 मिनट तक है। बता दें कि इस बार वरुथिनी एकादशी तिथि पर ब्रह्म योग, शिववास योग और इंद्र योग जैसे शुभ संयोग बन रहे हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि जो लोग किसी कारण वरुथिनी एकादशी का उपवास नहीं रख पा रहे हैं, वो एक समय सात्विक भोजन कर सकते हैं। लेकिन अन्न न खाएं। इससे उन्हें विष्णु जी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है।
वरुथिनी एकादशी की पूजा विधि
- व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें। पवित्र नदी में स्नान करना संभव नहीं है तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल या किसी पवित्र नदी के जल को मिला लें।
- नहाने के बाद साफ कपड़े धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान भास्कर यानी सूर्य देव को अर्घ दें।
- भगवान नारायण की पूजा करें। उन्हें पीले पुष्प, फल, चंदन, तुलसी दल, मखाने की खीर और पंचामृत अर्पित करें।
- दक्षिणावर्ती शंख में दूध और जल भरें। फिर उससे विष्णु जी का अभिषेक करें।
- भगवान को नारियल अर्पित करें। माता लक्ष्मी को पान अपर्ण करें। इस दिन कृष्ण जी के मधुसूदन रूप की पूजा करना शुभ माना जाता है।
- मधुराष्टक, श्रीमद्भागवत गीता के ग्यारहवें अध्याय और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। पाठ करना संभव नहीं है तो “ॐ क्लीं कृष्णाय नमः, श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
- देवी तुलसी की पूजा करें। लेकिन तुलसी के पौधे में जल न चढ़ाएं और न ही तुलसी के पत्तों को तोड़ें।
- पीपल के वृक्ष की पूजा करें। एक लोटे में कच्चा दूध और जल मिलाएं। फिर उसे पीपल की जड़ में अर्पित करें।
- केले के पेड़ की पूजा करें।
- अंत में देवी-देवताओं की आरती करके पूजा का समापन करें।
- शाम को घर के मुख्य दरवाजे पर, घर के मंदिर में, घर की तिजोरी में, घर के ईशान कोण और तुलसी के पौधे के पास एक-एक घी का दीपक जलाएं। साथ ही शिवलिंग पर काले तिल अर्पित करें।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है।News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।