Varaha Purana: भारत की सनातन सभ्यता और संस्कृति में तन और मन की शुद्धता और शुचिता यानी सफाई और पवित्रता बेहद जोड़ दिया गया है। सनातन संस्कृति इसलिए शाश्वत और सतत है, क्योंकि इसके नियम-कायदे आज भी प्रासंगिक और उपयोगी हैं। यहां चर्चा का विषय टॉयलेट जाने और शौच करने के बाद नहाने की आवश्यकता क्यों है? आइए जानते हैं, वराह पुराण में इस मुद्दे पर क्या कहा गया है?
क्या कहता है वराह पुराण?
वराह पुराण के अनुसार, मल त्याग यानी पाखाना करने के बाद सवस्त्र स्नान करना जरूरी है। यदि आप मूत्र त्याग यानी पेशाब करते हैं, तो अच्छे से हाथ-पांव और मुंह धोना जरूरी है। वहीं यदि आप बाल या दाढ़ी बनाते यानी शेविंग करते हैं, तब भी सवस्त्र स्नान करना जरूरी है। यहां सवस्त्र का मतलब कपड़े पहने-पहने नहाना नहीं है, बल्कि इसका तात्पर्य उन कपड़ों को स्नान के बाद दोबारा नहीं पहनने से है।
बता दें, आज भी पूरे भारत में कई परिवारों और खानदानों में इस रिवाज का दृढ़ता से पालन किया जाता है। इसके पीछे कोई दकियानूसी सोच या अंध विश्वास नहीं है, बल्कि विज्ञान और धर्म का संगम है। साइंस और अध्यात्म कैसे इस बिन्दु पर एक हो जाते हैं, उसका बेस्ट उदाहरण वराह पुराण में मिलता है।
क्या कहता है विज्ञान?
पैनडेमिक के दौरान कोरोना के कहर को दुनिया अभी भूली नहीं है। जिस प्रकार से कोरोना के वायरस शरीर के बाहरी अंगों और कपड़ों पर चिपक दूसरों को संक्रमित करते थे। ठीक उसे प्रकार शौच करने के बाद हानिकारक जीवाणु और कीटाणु के संक्रमण की संभावना रहती है, जिसके संक्रमण से न केवल शौच करने वाला व्यक्ति बल्कि दूसरे लोग भी प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए जिस प्रकार कोरोना से बचने के लिए हर बार सारे कपड़े त्याग कर और भलीभांति सैनेटाइज होकर ही लोगों से मिलते थे या घर मे प्रवेश करते थे। ठीक वैसे ही टॉयलेट जाने और शौच करने के बाद सही खुद को शुद्ध कर लेना चाहिए।
क्या कहता है धर्म?
वराह पुराण के अनुसार, टॉयलेट जाने और शौच करने के बाद नहाना या खुद को साफ रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि इससे नित्य कर्म के बाद मल, मूत्र, बाल, त्वचा के विकार, दुर्गंध, अशुद्ध पदार्थ के अंश आदि धुल जाते हैं। शारीरिक शुद्धि से मानसिक शुद्धि का रास्ता बनता है। वराह पुराण में लिखा है कि शौच करने के बाद शुद्धि का विशेष ध्यान नहीं रखने से जीवन और व्यवहार में तमोगुण की मात्रा बढ़ती है। जो अंधकार और अज्ञान की ओर धकेलता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति अहंकारी, स्वार्थी और प्रमाद करने वाला बन जाता है। प्रमाद का अर्थ मिथ्या और भ्रम से गसित होना, जिसे जीवन की सभी बुराइयां, लोभ, मोह, मद, बुरी वासनाएं आदि जन्म लेती हैं। इनसे बचाव के लिए ही वराह पुराण मे शौच करने के बाद नहाने या खुद को साफ रखने पर जोर दिया गया है।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धमिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।