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Tulsi Vivah 2024: जलंधर कौन था, भगवान विष्णु ने क्यों किया वृंदा से छल, जानें तुलसी विवाह की असली कथा

Tulsi Vivah ki Asli Katha: कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को भगवान रूपी शालिग्राम का विवाह माता तुलसी से करवाया जाता है। तुलसी विवाह के इस शुभ मौके पर आइए जानते हैं, जलंधर कौन था, वृंदा कैसे बनी तुलसी और तुलसी विवाह की असली कथा।

Edited By : Shyam Nandan | Updated: Nov 13, 2024 14:14
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Tulsi Vivah ki Asli Katha: हिन्दू धर्म में तुलसी सर्वाधिक पवित्र पौधा है, जिसकी पूजा सबसे अधिक की जाती है। माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहां यम के दूत प्रवेश नहीं कर सकते। तुलसी के पूजन को गंगा स्नान करने के बराबर माना जाता है। मान्यता है कि मनुष्य चाहे कितना भी पापी क्यों न हो, मृत्यु के समय यदि उसके मुख में तुलसी और गंगाजल दिया जाता है, तो वह सभी पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है।

इसी पवित्र तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से करवाया जाता है, जो कि कार्तिक शुक्ल द्वादशी के मौके पर आज 13 नवंबर, 2024 को है। श्रीमद देवीभागवत पुराण में माता तुलसी के अवतरण की कथा का बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है। तुलसी विवाह के इस शुभ अवसर पर आइए जानते हैं, जलंधर कौन था, वृंदा कैसे बनी तुलसी और तुलसी विवाह की असली कथा क्या है?

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जलंधर कौन था?

श्रीमद देवी भागवत पुराण के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने अपने तेज को समुद्र में फेंक दिया था। उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। यह बालक आगे चलकर जलंधर के नाम से दैत्य राजा बना, जो बेहद पराक्रमी था। इसकी राजधानी का नाम जलंधर नगरी था।

जलंधर का विवाह दैत्यराज कालनेमि की कन्या वृंदा हुआ। जलंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहां से पराजित होकर वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया।

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भगवान देवाधिदेव शिव का ही रूप धर कर माता पार्वती के समीप गया, लेकिन मां पार्वती ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया और वे वहां से अंतर्ध्यान हो गईं। देवी पार्वती ने क्रुद्ध होकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया।

उधर, जलंधर की ललकार पर कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और जलंधर के बीच महायुद्ध आरंभ हो गया। जलंधर की पत्नी वृंदा अत्यंत पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रता धर्म की शक्ति से जलंधर न तो मारा जाता था और न ही पराजित होता था। इसीलिए जलंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत आवश्यक था।

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Tulsi Vivah 2022

तुलसी अवतरण और तुलसी विवाह की कथा

जलंधर का अंत आवश्यक था। इस कारण से भगवान विष्णु एक ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुंचे, जहां वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गईं। ऋषि ने वृंदा के सामने पल में दोनों को भस्म कर दिया।

उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जलंधर के बारे में पूछा, “हे ऋषिवर! मेरे पति परमेश्वर देवाधिदेव शिव से युद्ध कर रहे हैं, कृपाकर उनके बारे में कुछ ज्ञात हो तो मुझे अवश्य बताएं।”

ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जलंधर का सिर था और दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्छित हो कर गिर पड़ीं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की, “हे ऋषि श्रेष्ठ, कृपा कर मेरे प्राणप्रिय को जीवित करें, अन्यथा मैं मृत्यु का वरण कर लूंगी।”

भगवान ने अपनी माया से फिर से जलंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया और वे स्वयं भी वह उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का थोड़ा भी आभास नहीं हुआ। जलंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जलंधर युद्ध में हार गया।

इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को पत्थर होने का श्राप दे दिया और स्वयं उसने आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उग आया।

भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा, “हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा, उसे इस लोक और परलोक में महान यश और विपुल धन प्राप्त होगा।”

देवी वृंदा का मंदिर

कहते हैं कि आज पंजाब राज्य में स्थित विख्यात जालंधर नगरी, वृंदा के पति उसी दैत्य जलंधर के नाम पर पड़ा है। आज भी सती वृंदा का मंदिर इस नगर के मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है। कहते हैं इस स्थान पर एक प्राचीन गुफ़ा थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी। मान्यता है कि जोव्यक्ति सच्चे मन से 40 दिन तक सती वृंदा देवी के मंदिर में पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Edited By

Shyam Nandan

First published on: Nov 13, 2024 08:24 AM

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