Sindoor: भारतीय संस्कृति में सिंदूर सिर्फ एक लाल रंग का पाउडर नहीं, बल्कि सुहाग, प्रेम और वैवाहिक जीवन की पवित्रता का प्रतीक है। मांग में सिंदूर लगाना हर सुहागिन का गहना है, जो न केवल उसकी शादीशुदा जिंदगी की निशानी है, बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी खास महत्व रखता है। इसका चटक लाल रंग शक्ति, सौभाग्य और जीवन की ऊर्जा का प्रतीक है। शास्त्रों में इसे माता पार्वती और मंगल ग्रह से जोड़ा गया है, तो विज्ञान इसे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद मानता है।
हजारों साल पुराना है सिंदूर का इतिहास
सिंदूर का चलन भारत में हजारों साल पुराना है। सिंधु घाटी सभ्यता (2600-1900 ईसा पूर्व) के अवशेषों से पता चलता है कि लाल रंग के पदार्थ सौंदर्य और पूजा-पाठ में इस्तेमाल होते थे। वैदिक काल से ही विवाह की रस्मों में सिंदूर का जिक्र मिलता है, जहां दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरकर उनके रिश्ते को पवित्र करता था।
मध्यकाल में भक्ति आंदोलन ने सिंदूर को और खास बना दिया, क्योंकि इसे माता पार्वती और अन्य देवियों से जोड़ा गया। स्कंद पुराण और पद्म पुराण जैसे ग्रंथों में सिंदूर को सौभाग्य और शक्ति का प्रतीक बताया गया है। आज भी, चाहे उत्तर भारत हो या दक्षिण, सिंदूर सुहागिन स्त्री की पहचान और विवाह का अटूट हिस्सा है। बंगाल में ‘सिंदूर खेला’ और दक्षिण में ‘कुमकुम’ का चलन है।
शास्त्रों में भी मिलता है इसका जिक्र
हिंदू शास्त्रों में सिंदूर को सौभाग्य और आध्यात्मिकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव के साथ अपने वैवाहिक बंधन को मजबूत करने के लिए सिंदूर लगाया था। यही वजह है कि सुहागिनें इसे सुहाग के प्रतीक के रूप में मांग में सजाती हैं। पद्म पुराण में लाल रंग के सिंदूर को शक्ति, समृद्धि और वैवाहिक स्थिरता का प्रतीक माना गया है। महाभारत में द्रौपदी के संदर्भ में सिंदूर का जिक्र मिलता है, जहां इसे उनके सुहाग और सम्मान से जोड़ा गयाल है। आयुर्वेद के ग्रंथ, जैसे चरक संहिता, सिंदूर को औषधीय गुणों वाला बताते हैं, जो दिमाग को शांति और शरीर को ताकत देता है। ज्योतिष में सिंदूर को मंगल ग्रह से जोड़ा जाता है, जो साहस और ऊर्जा का कारक है।
सिंदूर लगाने से मिलते हैं ये आध्यात्मिक लाभ
सिंदूर का धार्मिक महत्व हिंदू धर्म में गहरा है, और इसे शास्त्रों में माता पार्वती, मंगल ग्रह और सौभाग्य से जोड़ा गया है। धार्मिक रूप से, मांग में सिंदूर लगाना सुहागिन के लिए पति के प्रति प्रेम, वफादारी और समर्पण का प्रतीक है।स्कंद पुराण के अनुसार, माता पार्वती ने सिंदूर को अपने सुहाग की रक्षा का साधन माना, इसलिए इसे लगाने से पति की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना पूरी होती है। ज्योतिष में, सिंदूर मंगल ग्रह से जुड़ा है, और इसे लगाने से मंगल दोष का प्रभाव कम होता है, जो वैवाहिक जीवन में सुख-शांति लाता है।
यह माना जाता है कि सिंदूर बुरी नजर और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है। धार्मिक अनुष्ठानों में, जैसे करवा चौथ और तीज, सिंदूर लगाना अनिवार्य है, क्योंकि यह सुहाग की मंगल कामना को मजबूत करता है।इसके अलावा, मांग में सिंदूर लगाने से आध्यात्मिक ऊर्जा जागृत होती है, जो मन को शांति और आत्मविश्वास देती है। इस तरह, सिंदूर न केवल वैवाहिक बंधन को पवित्र करता है, बल्कि परिवार की खुशहाली और सौभाग्य को भी बढ़ाता है।
क्या है वैज्ञानिक कारण?
सिंदूर के पीछे वैज्ञानिक आधार भी हैं, जो इसे स्वास्थ्य और मनोविज्ञान की दृष्टि से खास बनाते हैं। पारंपरिक सिंदूर में हल्दी, चूना और पारा (मरकरी) का मिश्रण होता था। पारा त्वचा के जरिए अवशोषित होकर दिमाग की नसों को शांत करता है, जिससे तनाव और चिंता कम होती है। मांग का मध्य भाग, जहां सिंदूर लगाया जाता है, आयुर्वेद और एक्यूप्रेशर में महत्वपूर्ण बिंदु माना जाता है। इस जगह हल्का दबाव या स्पर्श ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करता है और दिमाग को रिलैक्स रखता है।
लाल रंग मनोवैज्ञानिक रूप से ऊर्जा, आत्मविश्वास और सकारात्मकता को बूस्ट करता है, जिससे डोपामाइन का स्तर बढ़ता है और खुशी का अहसास होता है। हल्दी से बना सिंदूर एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से युक्त होता है, जो त्वचा को स्वस्थ रखता है।
लाल रंग सूर्य की किरणों को सोखता है, जिससे मस्तक का तापमान नियंत्रित रहता है और सिरदर्द या तनाव से राहत मिलती है। हालांकि, आजकल केमिकल युक्त सिंदूर से बचना चाहिए, क्योंकि लेड और अन्य हानिकारक तत्व त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं आयुर्वेदिक ग्रंथों पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
ये भी पढ़ें- Budh Gochar 2025: इन 7 राशियों का डायमंड टाइम स्टार्ट, बुध ने किया राशि और नक्षत्र परिवर्तन