Puja Tips: हिंदू धर्म में भगवान की पूजा में आरती एक महत्वपूर्ण कार्य है, जिसको हमेशा पूजा के अंत किया जाता है। यह भगवान के प्रति प्रेम और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है, जो भक्त और ईश्वर के बीच आध्यात्मिक संबंध को और गहरा करता है। आरती शब्द संस्कृत के “आरात्रिक” से आया है, जिसका अर्थ ‘अंधकार को दूर करने वाला प्रकाश’ है। आरती में घी, तेल के दीपक अथवा कपूर को जलाकर भगवान की मूर्ति या चित्र के सामने दक्षिणावर्त घुमाया जाता है। इस दौरान भगवान की महिमा का गुणगान किया जाता है, जिसे आरती कहा जाता है। यह प्रक्रिया नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है और सकारात्मकता को बढ़ाती है। आरती मन को शांत और आत्मा को पवित्र बनाती है। आरती वहां मौजूद लोगों के जीवन से भी अंधकार को दूर करती है। पूजा के बाद आरती इस कारण भी जरूरी होती है, क्यों कि इसके बिना पूजा पूर्ण नहीं होती है।
क्या कहते हैं शास्त्र?
हिंदू शास्त्रों में आरती को पूजा के पंचोपचार (पांच उपचार) या षोडशोपचार (सोलह उपचार) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया गया है। अग्नि पुराण में दीपक को ज्ञान और पवित्रता का प्रतीक माना गया है, जो अज्ञानता और अंधकार को दूर करता है।
वहीं, स्कंद पुराण में आरती को भक्त के मन को शुद्ध करने और भगवान के करीब लाने का साधन माना गया है। विष्णु पुराण के अनुसार, दीपक जलाना भगवान विष्णु की पूजा का हिस्सा है, जो भक्त को सुख और समृद्धि प्रदान करता है।
पद्म पुराण में आरती को भगवान के प्रति श्रद्धा और समर्पण की अभिव्यक्ति बताया गया है। शास्त्रों में दीपक को आत्मा का प्रतीक माना गया है, जो भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रकाश फैलाता है। यह प्रक्रिया आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है।
क्या है आरती करने का सही तरीका?
शास्त्रों के अनुसार, आरती करने की एक विशेष विधि है, जिसका पालन करने से यह पूजा शुभ और प्रभावी होती है। आरती के लिए एक धातु की थाली में घी या तेल का दीपक तैयार करें, जिसमें 2, 5 या 7 बत्तियां हो सकती हैं। इसमें कपूर भी जलाया जा सकता है। इसके साथ रोली, चंदन, फूल और अगरबत्ती जैसी पूजा सामग्री तैयार रखें। पूजा शुरू करने से पहले अपने हाथ-पैर धोकर और आचमन करके स्वयं को शुद्ध करें।
अब दीपक जलाएं और इसे अपने दाएं तरफ रख दें। इसके बाद पूरी पूजा करें। इसके बाद खड़े होकर भगवान की आरती करें। आरती करते समय एक ही स्थान पर खड़े रहें। आरती करते समय थोड़ा झुक जाएं। दरअसल आरती हल्का सा झुककर की जाती है। आरती को भगवान के चरणों से शुरू करें। इसमें चार बार दक्षिणावर्त दिशा (घड़ी की सुई की दिशा) में भगवान के चरणों में आरती घुमाएं। दो बार नाभि और एक बार प्रभु के मुखमंडल पर आरती घुमाएं। इसके बार सात बार प्रभु के सभी अंगों की आरती उतारें। इस तरह करीब 14 बार आरती घुमाएं। इसके पीछे का कारण यह है कि भगवान के अंदर 14 भुवन समाएं हैं और आपका प्रणाम इन सभी जगहों पर पहुंचता है।
इस दौरान भगवान की विशेष आरती गाएं। अगर आरती नहीं आती है तो कोई मंत्र की जपें। आरती में शंख और घंटी बजाना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह वातावरण को और पवित्र बनाता है। याद रहे कि भगवान शिव की आरती में शंख का प्रयोग न करें। आरती के बाद दीपक की लौ को दोनों हाथों से पहले भगवान और सभी देवी-देवाताओं को दें। इसके बाद दीपक के चारों ओर तीन बार जल डालें। इसके बार आरती भगवान की ओर देते हुए अपने स्थान पर ही पूरा 360 डिग्री तक घूम जाएं। इस दौरान (‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या द्रविड़ त्वमेव, त्वामि सर्वं मम देव देवा’) मंत्र बोलें। इसके बाद खुद आरती लें और फिर सभी को दें।
कितने प्रकार की होती है आरती?
आरती 7 प्रकार की होती है। इसमें मंगला आरती, पूजा आरती, श्रृंगार आरती, भोग आरती, धूप आरती, संध्या आरती और शयन आरती की जाती हैं। इसके साथ ही आरती देसी घी या तेल के दीपक में एक या अधिक बत्तियां जलाकर की जा सकती है। दूसरी आप कपूर से भी आरती कर सकते हैं। इसके साथ ही पांच दीपकों वाली थाली से भी आरती कर सकते हैं। इसके साथ ही कुछ सामूहिक आरती भी होती हैं। जैसे किसी नदी या मंदिर में होने वाली है आती सामूहिक रूप से की जाती हैं।
आरती करने के क्या हैं लाभ?
आरती करने से सकारात्मक ऊर्जा आती है। मन में शांति उत्पन्न होती है। घर का वातावरण पवित्र होता है और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। पूजा पूर्ण होती है और मनोकामना भी पूरी होती है।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्रों पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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