Radha Ram Story: रामायण में बताया गया है कि देवी सीता का प्रभु श्री राम ने त्याग कर दिया था। हालांकि इस विषय को लेकर धर्म के जानकारों विचार अलग-अलग हैं, कई लोग कहते हैं कि प्रभु श्री राम ने माता सीता का त्याग कभी नहीं किया, जबकि कुछ जानकारों का मानना है कि माता सीता को प्रभु श्री राम ने त्याग दिया था। माता सीता ही द्वापर युग में देवी राधा के रूप में अवतरित हुई थी। श्री राम के त्यागने के बाद माता सीता जितने दिनों तक वन में रही, उतने ही दिन श्री कृष्ण ने देवी राधा के साथ समय बिताया।
माता सीता का त्याग
धर्मग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार रावण वध के बाद प्रभु श्री राम, माता सीता को लेकर अयोध्या वापस लौट आए थे। कुछ दिनों तक माता सीता और प्रभु श्री राम ने सुख पूर्वक जीवन बिताया। उसके बाद एक धोबी के कहने पर प्रभु श्री राम ने माता सीता को त्याग दिया। श्री राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण जी से माता सीता को वन में छोड़ आने को कहा। प्रभु श्री राम के आदेश का पालन करते हुए, लक्ष्मण जी ने माता सीता को वन में जाकर छोड़ दिया। उसके बाद माता सीता महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में रहने लगी।
राजसु यज्ञ
माता सीता के वन में चले जाने के कुछ साल बाद, महर्षि वशिष्ठ ने प्रभु राम से राजसु यज्ञ करने को कहा। महर्षि वशिष्ठ की आज्ञा पर श्री राम राजसु यज्ञ की तैयारी करने लगे। इसी दौरान प्रभु श्री राम को पता कि कोई भी विवाहित पुरुष, बिना पत्नी के यज्ञ नहीं कर सकता तो वह चिंतित हो उठे। श्री राम मन ही मन सोचने लगे कि मैंने तो देवी सीता को त्याग रखा है, अब यज्ञ कैसे करूंगा? इस कारण राजसु यज्ञ का पूरा होना असंभव लग रहा था। ऐसे में महर्षि वशिष्ठ जो ये यज्ञ करवा रहे थे, उनके कहने पर सोने की माता सीता बनवाई गई और फिर इस तरह राजसु यज्ञ को पूरा करवाया गया।
सोने की सीता और देवी राधा
यज्ञ तो पूरा हो गया लेकिन सोने की सीता पभु श्री राम को देवी सीता की याद दिलाने लगी। ऐसे में प्रभु श्री राम ने सोचा कि, क्यों न इस सोने की सीता को सरयू नदी में विसर्जित करवा दिया जाए। फिर जब सोने की सीता को सरयू नदी में ले जाया जा रहा था तो, सोने की सीता बोल पड़ीं, प्रभु आपने तो मुझे पूरी तरह ही त्याग दिया। मैं साढ़े ग्यारह सालों से आपके वियोग में जी रही हूं। कम से कम इस सोने की मूरत के रूप में ही मुझे अपने पास रख लें। तब प्रभु श्री राम ने कहा, हे सीते! इस जन्म में तुमने जितने वियोग मेरे लिए सहा है, अगले जन्म में मैं इतने ही दिन तुम्हारे साथ बिताउंगा।
ऐसा माना जाता है कि श्री राधा यही सोने की सीता थी। फिर द्वापरयुग में जब विष्णु जी ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया तो, वे देवी राधा के साथ साढ़े ग्यारह सालों तक रहे थे। इसलिए ऐसा कहा जाता है श्री राधा और कोई नहीं माता लक्ष्मी का ही अंश अवतार थी। श्री राधा को आत्मिक लक्ष्मी भी कहा जाता है।
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