Rath Yatra 2025: ओडिशा के पुरी जिले को चमत्कारों की नगरी कहा जाता है। इस जिले में भगवान जगन्नाथ का विशालकाय मंदिर है। इन्हें कलियुग का विष्णु अवतार कहा जाता है। यहां भगवान अपने सबसे अनोखे स्वरूप में विराजमान हैं। अगर आपने इस मंदिर के दर्शन नहीं किए हैं, तो भी उनकी तस्वीर तो देखी ही होगी। भगवान जगन्नाथ यहां अपने बड़े भाई बलभद्र और छोटी बहन सुभद्रा के साथ मौजूद हैं। आपको बता दें कि इन तीनों भाई-बहनों की मूर्तियां आधी-अधूरी हैं, जैसे प्रभु के पास आधे हाथ हैं और पैर नहीं हैं, वैसे ही बहन सुभद्रा के पास भी दोनों ही नहीं हैं। हर साल प्रभु जगन्नाथ अपने सभी भक्तों को दर्शन देने के लिए गर्भगृह से बाहर आते हैं।
इस पर्व को रथयात्रा के नाम से जाना जाता है। कहते हैं रथयात्रा ऐसी यात्रा है, जिसमें हर जाति, हर वर्ग और हर तबके का मनुष्य शामिल हो सकता है। भगवान के दर्शन कर सकता है, उन्हें देख सकता है, उन्हें और उनके रथ को छू भी सकता है। रथयात्रा का यह पर्व पूरे 9 दिनों तक मनाया जाता है। हालांकि, इसकी शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से होती है, जब रथ निर्माण के लिए लकड़ियों का चुनाव किया जाता है और पूजा-अर्चना कर निर्माण कार्य शुरू होता है। इस रस्म को “रोथो काठो अणुकुलो” कहते हैं।
स्नान पूर्णिमा से पर्व की शुरुआत
11 जून को स्नान पूर्णिमा मनाई जाएगी। इस दिन भगवान जगन्नाथ को 108 पवित्र कलश के जलों से स्नान करवाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इन घड़ों का पानी 7 पवित्र नदियों से लाया जाता है। प्रभु को सुबह से ही इन कलश के पानी से नहलाया जाता है, जिसके बाद वह बीमार हो जाते हैं। उनके बीमार होने के बाद प्रभु पूरे 14 दिनों के लिए विश्राम पर चले जाते हैं क्योंकि वे बीमार होते हैं और इस दौरान वे अनासार काल में रहते हैं।
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क्या है अनासार काल?
अनासार काल में भगवान जगन्नाथ और भाई-बहन तीनों ही श्रीमंदिर में बंद हो जाते हैं और किसी को दर्शन नहीं देते हैं। वे 14 दिनों के लिए अपना उपचार करवाते हैं। इस दौरान भगवान को भोग में तुलसी के पत्ते, औषधीय काढ़ा और हल्के-फुल्के भोजन जैसे कि खिचड़ी और फलों का रस दिया जाता है। कथाओं के अनुसार, जब भगवान दर्शन नहीं देते हैं, तो उनके सभी भक्तजन उन्हें देखने के लिए व्याकुल हो जाते हैं। ऐसे में जब वह ठीक होते हैं, तो सभी को दर्शन देने के लिए रथ पर सवार होकर शहर में निकलते हैं और अपने मौसी के घर जाते हैं।
वे श्रीमंदिर से निकलकर अपनी मौसी के घर जाते हैं, जिसे माउसी मां मंदिर कहते हैं। वहां जाकर कुछ दिन बिताते हैं। भगवान रथ पर ही सवार रहते हैं और अगले 14 दिनों तक भक्तों को दर्शन देते हैं। कहते हैं कि उनके दर्शन के लिए इंसान ही नहीं, भूत-प्रेत, गण, राक्षस, गंधर्व से लेकर सभी देवी-देवता धरती पर आते हैं।
घर के बड़े बच्चे होते हैं बीमार!
कुछ मान्यताओं के अनुसार, ओडिशा के ग्रामीण इलाकों में यह भी माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ घर-परिवार की जो भी बड़ी यानी ज्येष्ठ औलाद होती है, वह भी कुछ दिनों के लिए हल्का-फुल्का बीमार होती है। हालांकि, इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, परंतु लोगों के बीच सदियों से ये प्रथाएं मौजूद हैं। स्नान पूर्णिमा पर ज्येष्ठ पूर्णिमा भी मनाई जाती है। इस दिन ओडिशा के सभी हिंदू घरों में बड़े बच्चे यानी जिनका विवाह नहीं हुआ होता है, उन्हें नए कपड़े भी पहनने होते हैं।
कब है रथयात्रा?
इस साल रथयात्रा 27 जून, 2025 को मनाई जाने वाली है। यह आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि होती है। रथयात्रा कभी जून तो कभी जुलाई के महीने में मनाई जाती है। रथयात्रा सिर्फ ओडिशा के पुरी नहीं बल्कि देश के कई राज्यों समेत अन्य देशों में भी मनाई जाती है। इन देशों में मुस्लिम देश जैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ओमान और बहरीन भी शामिल हैं।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।