Mahabharat Katha: महाभारत का युद्ध दुनिया के सबसे विध्वंसक युद्धों में से एक माना जाता है। इस युद्ध में पांडवों ने अधर्म को हराकर धर्म का साम्राज्य स्थापित किया था। पांडवों को राजा पांडु का पुत्र माना जाता है। हालांकि ये पूरी तरह से सत्य नहीं है। महाभारत के आदिपर्व में पांडवों के जन्म की कथा सामने आती है, जिससे पता चलता है कि पांडवों के पिता पांडु नहीं थे!
पांचों पांडवों को पांडव इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनकी माता राजा पांडु की पत्नियां कुंती और माद्री थीं। एक कथा के अनुसार, पांचों पांडव देवताओं के पुत्र हैं। राजा पांडु ऋषि वेदव्यास और अंबालिका के पुत्र थे। वहीं उनके बड़े भाई धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे। इस कारण पांडु को ही हस्तिनापुर का राजा बनाया गया था। पांडु का विवाह राजा शूरसेन की पुत्री कुंती और मद्र राज्य की राजकुमारी माद्री से हुआ था। विवाह के बाद भी राजा पांडु और उनकी रानियों के कोई संतान नहीं थी। इसका मुख्य कारण एक श्राप था।
ऋषि ने दिया था श्राप
एक बार राजा पांडु अपनी पत्नियों कुंती और माद्री के साथ जंगल में विचरण कर रहे थे तभी उन्होंने एक हिरण के जोड़े को अठखेलियां करते हुए देखा। इस पर राजा पांडु ने हिरण के जोड़े पर तीर चला दिया। तीर लगते ही हिरण का जोड़ा अपने असली रूप में आ गया। वो हिरण का जोड़ा ऋषि किंदम और उनकी पत्नी थीं, जो इस रूप में सहवास कर रहे थे। जब उन्होंने तीर चलाने वाले पांडु को देखा तो क्रोध में आकर उन्होंने पांडु को श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार हमारी मृत्यु हो रही है उसी प्रकार अगर तुम अपनी पत्नियों के पास जाओगे तो तुम्हारी भी मृत्यु हो जाएगी। इसी के बाद से पांडु अपनी पत्नियों कुंती और माद्री के पास नहीं जाते थे।
कुंती को मिला था मंत्र
श्राप के बाद पांडु अपना राजपाट छोड़कर जंगलों में रहने लगे तभी कुंती ने राजा पांडु को बताया कि ऋषि दुर्वासा ने उन्हें एक मंत्र दिया था, जिससे वे किसी भी देवता को बुलाकर नियोग विधि से संतान प्राप्ति कर सकती हैं। नियोग विधि एक ऐसी विधि होती है, जिसमें किसी दंपति को संतान न होने के चलते किसी देवता की कृपा से पुत्र प्राप्ति की जा सकती थी।
ऐसे हुआ पांडवों का जन्म
राजा पांडु कुंती की नियोग विधि से संतान प्राप्ति की बात से सहमत हो गए। इसके चलते कुंती ने मंत्र से पहले धर्मराज को बुलाया तो उनसे युधिष्ठिर का जन्म हुआ। वहीं, वायुदेव से भीम और इंद्र से अर्जुन का जन्म हुआ था। कुंती ने ये मंत्र राजा पांडु की दूसरी पत्नी माद्री को भी दिया था। माद्री ने अश्विनीकुमारों का आह्वान किया, जिससे उनको नकुल और सहदेव की प्राप्ति हुई। विवाह से पूर्व भी कुंती को सूर्यदेव से एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी, जिसका नाम कर्ण पड़ा था। इस कारण पांडव देवताओं के पुत्र थे। वहीं, राजा पांडु की पत्नियों की संतान होने के कारण इन्हें पांडु पुत्र पांडव भी कहा गया।
कैसे हुई पांडु की मृत्यु?
इस श्राप के बाद एक बार पांडु और उनकी दूसरी पत्नी माद्री जंगल में थे तभी बारिश होने लगी। ऐसे में पांडु खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाए और माद्री के पास चले गए, जिससे ऋषि के श्राप के चलते उनकी मृत्यु हो गई। माद्री भी पति से विरह सह नहीं पाईं और उनके साथ ही सती हो गईं। वहीं, कुंती पर पांचों पुत्रों को पालने की जिम्मेदारी आ गई।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्रों पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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