हर साल की तरह इस बार भी मां दुर्गा की आराधना का पावन पर्व नवरात्रि शुरू होने जा रहा है। नवरात्रि में नौ दिनों तक मां के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। लेकिन समय के साथ पूजा-पद्धति में भी कुछ बदलाव देखने को मिल रहे हैं। पहले जहां यह पर्व पूरी तरह से पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता था, वहीं आजकल आधुनिक जीवनशैली का असर पूजा की विधियों पर भी पड़ता नजर आ रहा है। आइए जानते हैं कि पहले और अब की नवरात्रि की पूजा में क्या बदलाव आए हैं।
पहले की नवरात्रि: परंपराओं की गूंज
पहले नवरात्रि का माहौल कुछ और ही हुआ करता था। सुबह होते ही घर में घंटी और शंख की ध्वनि गूंजने लगती थी। घर-घर में मिट्टी के कलश स्थापित किए जाते थे और अखंड ज्योति जलाने की परंपरा थी। मां की मूर्तियों या तस्वीरों के सामने बैठकर परिवार के सभी सदस्य मिलकर दुर्गा सप्तशती या रामचरितमानस का पाठ करते थे। उपवास का भी बड़ा महत्व था। लोग बिना अनाज खाए नौ दिनों तक फलाहार करते थे और ध्यान और साधना पर जोर दिया जाता था। गांवों और शहरों में सार्वजनिक पंडालों में मां दुर्गा की विशाल प्रतिमाएं स्थापित की जाती थीं और वहां भजन-कीर्तन और जगराते का आयोजन होता था। चौकी और माता की आरती के दौरान भक्त पूरी श्रद्धा से शामिल होते थे।
अब की नवरात्रि: आधुनिकता के साथ परंपरा का मेल
अब नवरात्रि की पूजा में थोड़ा आधुनिक रंग भी घुल गया है। लोगों की व्यस्त दिनचर्या के कारण पूजा के तरीकों में बदलाव आया है। अब घर में अखंड ज्योति जलाने की बजाय कुछ लोग सिर्फ सुबह और शाम दीपक जलाते हैं। दुर्गा सप्तशती या अन्य धार्मिक ग्रंथों के लंबे पाठ की जगह भक्त ऑनलाइन मंत्र सुनते हैं या मोबाइल ऐप्स पर आरती करना प्रेफर करते हैं। फिटनेस के बढ़ते ट्रेंड के कारण अब उपवास का तरीका भी बदल गया है। पहले जहां फल, दूध और साधारण भोजन लिया जाता था, अब व्रत में लोग व्रत के चिप्स और साबूदाने की टिक्की जैसी चीजों को प्राथमिकता देने लगे हैं।
पंडालों की चमक-धमक और ई-भक्ति का चलन
पंडालों में भी पहले की तुलना में बड़ा बदलाव आया है। अब थीम आधारित पंडाल बनते हैं, जिनमें किसी ऐतिहासिक स्थल या धार्मिक कथा का चित्रण होता है। LED लाइटिंग, ध्वनि प्रभाव और सजावट में हाई-टेक तकनीक का इस्तेमाल बढ़ गया है। साथ ही अब कई भक्त ऑनलाइन पूजा और लाइव आरती में भी शामिल होते हैं जो खासकर उन लोगों के लिए सुविधाजनक है जो किसी कारणवश मंदिर या पंडाल नहीं जा पाते।
संस्कार और भावनाएं आज भी वही हैं
हालांकि पूजा की विधियों में बदलाव जरूर हुआ है, लेकिन मां दुर्गा के प्रति श्रद्धा और भक्ति की भावना में कोई कमी नहीं आई है। आज भी भक्त उसी सच्चे मन से मां की आराधना करते हैं और उनसे अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।