14 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के पाडर क्षेत्र में स्थित मचैल चंडी माता मंदिर मार्ग पर बादल फटने से अचानक तबाही का मंजर देखने को मिला। इस घटना में कई लोगों के हताहत होने की आशंका जताई जा रही है। जब यह घटना हुई तब कई श्रद्धालु भी मंदिर में दर्शन को जा रहे थे। मचैल चंडी माता मंदिर एक प्राचीन और पवित्र तीर्थ स्थल है। यह मंदिर मां चंडी को समर्पित है और लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मंदिर की प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व इसे एक विशेष स्थान प्रदान करते हैं।
मचैल चंडी माता मंदिर का इतिहास
मचैल माता मंदिर का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। यहां माता दुर्गा के उग्र स्वरूप मचैल माता को मां चंडी या मां रणचंडी के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर किश्तवाड़ जिले के मचैल गांव में, समुद्र तल से लगभग 9,705 फीट की ऊंचाई पर, दुर्गम पहाड़ियों और प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बसा हुआ है।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, मां चंडी इस क्षेत्र में पिंडी रूप में प्रकट हुई थीं। मंदिर के गर्भगृह में मां चंडी की पिंडी के साथ-साथ मां महाकाली की चांदी की मूर्ति भी स्थापित है। मंदिर का निर्माण लकड़ी से किया गया है और इसके बाहर पौराणिक देवी-देवताओं की मूर्तियां लकड़ी की पटीकाओं पर अंकित हैं, जिनमें समुद्र मंथन का दृश्य विशेष रूप से आकर्षक है। माना जाता है कि मां चंडी ने इस क्षेत्र में भक्तों की रक्षा और दुष्ट शक्तियों का नाश करने के लिए यह स्थान चुना था।
मचैल माता की यात्रा का इतिहास भी सैकड़ों वर्ष पुराना है। यह तीर्थ स्थल न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि देश के अन्य हिस्सों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। मंदिर के कपाट सर्दियों में बंद रहते हैं और बैसाखी (अप्रैल) के आसपास तीर्थयात्रियों के लिए खोले जाते हैं। वार्षिक मचैल माता यात्रा जुलाई-अगस्त में होती है। यहां लाखों श्रद्धालुओं मां के दर्शन को आते हैं।
43 दिन तक चलती है मचैल माता यात्रा
मचैल माता यात्रा जम्मू-कश्मीर के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजनों में से एक है। यह यात्रा प्रतिवर्ष जुलाई-अगस्त में आयोजित होती है और 43 दिनों तक चलती है। 2025 में यह यात्रा 25 जुलाई को शुरू हुई थी और 5 सितंबर तक चलेगी। इस दौरान लाखों श्रद्धालु मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यात्रा का मुख्य आकर्षण पवित्र छड़ी यात्रा है, जो जम्मू से शुरू होकर 22 अगस्त को मचैल माता के दरबार में पहुंचती है, जहां विधिवत पूजन होता है।
पहले श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुंचने के लिए 30 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा करनी पड़ती थी। लेकिन हाल के वर्षों में सड़क निर्माण और चशोती गांव में पुल के निर्माण के कारण यह दूरी घटकर 7 किलोमीटर रह गई है। उम्मीद है कि पुल के पूर्ण निर्माण के बाद यह दूरी मात्र 3 किलोमीटर रह जाएगी, जिससे यात्रा और सुगम हो जाएगी। यात्रा के दौरान जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा और अन्य व्यवस्थाएं की जाती हैं, जिसमें प्रतिदिन 8,000 तीर्थयात्रियों को अनुमति दी जाती है। इसमें 6,000 ऑनलाइन और 2,000 ऑफलाइन भक्त होते हैं।
बादल फटने से मची तबाही
14 अगस्त 2025 को किश्तवाड़ जिले के पाडर क्षेत्र में चशोती गांव के पास मचैल माता यात्रा मार्ग पर बादल फटने की एक दुखद घटना घटी। इस प्राकृतिक आपदा ने क्षेत्र में भारी तबाही मचाई। बादल फटने के कारण अचानक बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं, जिसमें कई लोगों के हताहत होने की आशंका है। यहां पर राहत और बचाव कार्य तुरंत शुरू किए गए हैं और प्रशासन ने प्रभावित क्षेत्रों में सहायता प्रदान की है। मचैल क्षेत्र दुर्गम पहाड़ियों और प्राकृतिक चुनौतियों से घिरा हुआ है।
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