Lalita Saptami 2024: हिन्दू संस्कृति में न केवल देवी-देवता बल्कि उनके मित्रों, सहयोगियों और अनुयायियों को भी बहुत महत्व दिया गया है। सुदामा जयंती, चैतन्य जयंती, ललिता जयंती आदि इस परंपरा के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। हिन्दू पर्व ललिता सप्तमी देवी ललिता देवी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो राधा रानी और भगवान कृष्ण की सखी हैं। आइए जानते हैं, ललिता सप्तमी कब है, इसका महत्व क्या है, पूजा विधि क्या है और उनकी पूजा करने के क्या लाभ हैं?
ललिता सप्तमी कब है?
देवी ललिता की जयंती ललिता सप्तमी हर साल राधाष्टमी से पहले भादो मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। साल 2024 में भादो शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि 9 सितंबर को रात 9 बजकर 53 मिनट पर शुरू होगी और 10 सितंबर को रात 11 बजकर 11 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए सूर्य के उदयातिथि नियम के अनुसार ललिता सप्तमी पर्व 10 सितंबर 2024, मंगलवार को मनाई जाएगी।
ललिता सप्तमी का महत्व
ललिता सप्तमी श्री ललिता देवी का प्राकट्य यानी जन्म दिवस है। इसलिए ललिता सप्तमी श्री ललिता देवी के सम्मान में मनाई जाती है। किशोरी जी राधा रानी की सबसे प्रिय सखियों में विशाखा और ललिता के नाम बहुत आदर से लिए जाते हैं। देवी ललिता को राधा जी के प्रति सबसे समर्पित गोपी माना गया है। राधा और कृष्ण के प्रेम और रासलीला में ललिता का बहुत योगदान माना जाता है। कहते हैं, वे उन दोनों के पास बैठती थीं और रासलीला के आसपास अन्य गोपियों को शरारती ढंग से खेलते हुए देखती थीं। वह राधा-कृष्ण दोनों के प्रति प्रेमपूर्ण भाव रखती थीं, लेकिन उनका झुकाव राधारानी की ओर अधिक था। वे भगवान श्रीकृष्ण की भी सखी थी। ललिता सप्तमी के दिन देवी ललिता की पूजा करने से देवी राधा और भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और जीवन में प्रेम, सहयोग और सौभाग्य का वरदान देते हैं।
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ललिता सप्तमी पूजा विधि
जीवन में मित्र और सहयोगी के बिना काम नहीं होता है। ललिता सप्तमी इसी भावना और संस्कार की पुष्टि का व्रत है। ललिता सप्तमी का व्रत रखने से देवी राधा और भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं। आइए जानते हैं, ललिता सप्तमी की पूजा विधि क्या है?
- सूर्योदय से पहले उठकर सुबह में स्नान के बाद गणेश जी, राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करना चाहिए।
- फिर दिन में देवी ललिता देवी, देवी राधा और भगवान कृष्ण या शालिग्राम की पूजा करनी चाहिए।
- सबसे पहले घी का दीया जलाएं। फिर उन्हें नारियल, चावल, हल्दी, चंदन, गुलाल, फूल और दूध अर्पित करें।
- इसके बाद नैवेद्य और मिठाई चढ़ाएं। मालपुआ का भोग लगाने से विशेष लाभ होता है।
- इसके बाद का जल का अर्घ्य दें और दाहिने हाथ में लाल धागा या मौली बांधें।
ललिता सप्तमी का उपवास सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक होता है। दिन में एक बार ही भोजन किया जाता है। अगले दिन सुबह प्रार्थना करने के बाद उपवास तोड़ा जाता है। इनको चढ़ाया गया फल प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
राधाष्टमी 2024 कब है?
भगवान कृष्ण का जन्म भादो कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आधी रात में हुआ था। वहीं भगवान कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति राधा रानी जी का जन्म भादो शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दिन में दोपहर को हुआ था. हिन्दू धर्म में राधा जी के जन्म दिवस को राधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस साल राधाष्टमी त्योहार सितंबर माह में 11 तारीख को मनाई जाएगी।
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