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कजरी तीज की असली व्रत कथा, इस पौराणिक कहानी को पढ़े बिना अधूरी है सुहागिनों की पूजा

Kajari Teej Vrat Katha: कजरी तीज का व्रत भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए यह व्रत रखा था। कजरी तीज की कथा सुनने और पढ़ने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य और कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है। इए जानते हैं, कजरी तीज की असली व्रत कथा क्या है?

Edited By : Shyam Nandan | Updated: Aug 21, 2024 19:30
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Kajari Teej Vrat Katha: भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि के दिन सुहागिन महिलाएं तीज का व्रत रखती हैं, जो कजरी तीज कहलाता है। साल 2024 में यह पावन तीज पर्व गुरूवार 22 अगस्त को है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भादो मास की इस तिथि के दिन पहली बार इस व्रत को मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए किया था। यही कारण है कि इस तीज व्रत को कुंवारी लड़कियां भी रखती हैं। इसकी पूजा के दौरान कजरी तीज की व्रत कथा भी सुनी जाती है। मान्यता है कि व्रत कथा को पढ़ने और सुनने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होता है, वहीं कुंवारी लड़कियों को भी अच्छा जीवनसाथी प्राप्त होता है। आइए जानते हैं, कजरी तीज की असली व्रत कथा क्या है और जिस पौराणिक कहानी को पढ़े और सुने बिना इस तीज की पूजा अधूरी मानी जाती है?

कजरी तीज की पौराणिक व्रत कथा

प्राचीन समय की बात है… एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण दंपति रहते थे। उसकी हालत इतनी दयनीय थी कि जैसे-तैसे वह केवल दो वक्त का भोजन ही कर पाता था। ऐसे में जब भाद्रपद महीने में तृतीया तिथि की कजली तीज आई, तो ब्राह्मण की पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखने का संकल्प लिया और उसने तीज माता का व्रत रखा। ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से कहा, “सुनो जी! आज मेरा तीज माता का व्रत है। आप कहीं से चने का सत्तू लेकर आओ।”

इस पर ब्राह्मण बोला, “ओ भाग्यवान! देने के लिए दाम नहीं है, मैं सत्तू कहां से लाऊं?” तो ब्राह्मणी ने कहा, “ये मैं नहीं जानती, चाहे चोरी करो या चाहे डाका डालो। लेकिन मेरे लिए सत्तू लेकर आओ।” यह बात सुनकर ब्राह्मण परेशान हो गया कि आखिर बिना पैसे के वह सत्तू कहां से लेकर आए।

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रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकला और एक साहूकार की दुकान पर पहुंचा। उसने देखा कि साहूकार के साथ-साथ उसके सभी नौकर भी सो रहे थे, तो वह चुपके से दुकान में घुस गया। सत्तू बनाने के लिए उसने वहां पर चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सबको सवा किलो के बराबर तोल कर ले लिया। जब ब्राह्मण ये सब कर रहा था तो खटपट की आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे।

ऐसे में साहूकार की भी नींद खुल गई। उसने ब्राह्मण को देखा और उसको पकड़ लिया। साहूकार की गिरफ्त में आए ब्राह्मण ने बहुत विनम्रता ने कहा, “हे साहूकार! मैं चोर नहीं हूं। मेरी पत्नी ने कजरी तीज का व्रत किया है। मैं केवल सवा किलो सत्तू लेने आया था, लेकिन सत्तू न मिलने पर सत्तू बनाने की सवा किलो सामग्री लेकर जा रहा था। आप मेरी तलाशी लेकर देख लीजिए।” इस पर साहूकार ने उसकी तलाशी ली। उसके पास सत्तू के सामान के अलावा कुछ नहीं मिला।

ब्राह्मण ने कहा, “हे साहूकार! चांद निकल आया है। ब्राह्मणी मेरा इंतजार कर रही होगी।”

साहुकार की आंखें भर आईं। नम आंखों से साहूकार ने कहा, “आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा।” इसके बाद उसने ब्राह्मण को सत्तू, आभूषण-गहने, रूपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया। सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। इसके बाद ब्राह्मण दंपति पर कजली माता की कृपा हुई। उसके दिन फिर गए, अच्छे दिन आ गए।

इस कथा जो भी पढ़ता है और सुनता है, उसका कल्याण होता है। इस कथा को पढ़ने-सुनने वाले के साथ-साथ सब लोगों के वैसे ही दिन फिरे, जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे थे। कजली माता की कृपा सब पर हो!

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Written By

Shyam Nandan

First published on: Aug 21, 2024 07:30 PM

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