Jyeshtha Purnima 2025: ज्येष्ठ मास के नाम में ही विशेष अर्थ छिपा है। ‘ज्येष्ठ’ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘बड़ा’ या ‘श्रेष्ठ’। पंचांग के अनुसार, यह मास ग्रीष्म ऋतु के चरम पर आता है और इसे वर्ष का सबसे गरम महीना माना जाता है। शास्त्रों में इसे बड़ा और श्रेष्ठ मास इसलिए भी कहा गया है क्योंकि इसमें की गई तपस्या, दान, व्रत एवं स्नान का फल अत्यधिक माना गया है। द्रिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास का नाम अपने आप में ‘ज्येष्ठ संतान’ की ओर भी संकेत करता है।
प्राचीन काल में यह मान्यता थी कि इस मास में ज्येष्ठ संतान के लिए विशेष पूजा और अनुष्ठान करने से परिवार में समृद्धि, दीर्घायु और संतुलन बना रहता है। यही कारण है कि इस मास को पारिवारिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानते हैं, ज्येष्ठ पूर्णिमा कब है? वट पूर्णिमा का महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा और मंत्र क्या है?
ज्येष्ठ पूर्णिमा: पुण्य का परम अवसर
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को अत्यंत शुभ और पुण्यदायी माना गया है। इस दिन चंद्रमा ‘ज्येष्ठा’ नक्षत्र में स्थित होते हैं, जिससे इस तिथि को ज्येष्ठा पूर्णिमा भी कहा जाता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा को कई धार्मिक अनुष्ठानों और विशेष व्रतों का आयोजन किया जाता है।
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ज्येष्ठ पूर्णिमा कब है?
द्रिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ मंगलवार, 10 जून 2025 को सुबह 11:35 AM बजे होगा और इसका समापन बुधवार, 11 जून 2025 को दोपहर 01:13 PM बजे होगा। उदयातिथि नियम के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा के हर अनुष्ठान 11 जून को मनाए जाएंगे। वहीं, पूर्णिमा के दिन दिन चन्द्रोदय यानी चांद निकलने का समय शाम में 07:41 PM बजे है, जबकि इस पूर्णिमा के उपवास रखने की तिथि मंगलवार, 10 जून 2025 को निर्धारित है।
वट पूर्णिमा: सुहागिनों का परम व्रत
भारत के कई भागों में सुहागन स्त्रियाँ इस दिन वट वृक्ष (बरगद) की पूजा करती हैं और वट-सावित्री व्रत करती हैं। वे अपने पति की दीर्घायु और सौभाग्य की कामना करती हैं। व्रती महिलाएँ वटवृक्ष की परिक्रमा कर उससे अखंड सौभाग्य की याचना करती हैं। यह व्रत सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है, जिसमें सावित्री ने अपने तप और संकल्प से यमराज से अपने पति को पुनर्जीवन दिलाया था।
पितृ तर्पण और दान का श्रेष्ठ दिन
ज्येष्ठ पूर्णिमा पितरों की शांति और कृपा प्राप्त करने के लिए भी अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है। इस दिन पितृ तर्पण, श्राद्ध, और दान करने से पूर्वजों की आत्मा को संतोष प्राप्त होता है और उनका आशीर्वाद मिलता है। विशेष रूप से जल और अन्न का दान इस दिन अति पुण्यकारी माना गया है।
भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा का विधान है। कहा जाता है कि इस दिन विधिपूर्वक लक्ष्मी-नारायण की आराधना करने से घर में धन, वैभव और सुख-शांति का वास होता है। साथ ही यह मास व्रत, उपवास और जल-सेवा जैसे कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
पानी का महत्व और सेवा भाव
ज्येष्ठ माह में तेज गर्मी होने के कारण जल दान और प्याऊ लगाने की परंपरा भी बहुत पुरानी है। इस मास में यदि कोई व्यक्ति प्यासे को पानी पिलाता है, तो उसे अमूल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। इसलिए इस समय समाज में जल सेवा, आम के पत्तों से शीतल पेय का वितरण और छाया की व्यवस्था जैसे कर्म धर्म बन जाते हैं।
सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेमगाथा
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री अत्यंत रूपवती और बुद्धिमती थी। उसने अपने जीवनसाथी के रूप में सत्यवान नामक वनवासी राजकुमार को चुना। लेकिन नारद मुनि ने सावित्री को बताया कि सत्यवान अल्पायु है।
फिर भी सावित्री अपने संकल्प पर अडिग रही और सत्यवान से विवाह किया। विवाह के बाद एक दिन जब सत्यवान लकड़ियां काटने गया, तभी उसकी मृत्यु हो गई। यमराज उसकी आत्मा को ले जाने लगे, तो सावित्री ने उनका पीछा किया।
सावित्री की धैर्य, भक्ति और निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज ने उसे वरदान देने की अनुमति दी। सावित्री ने पहले अपने सास-ससुर की दृष्टि और राज्य मांगा, फिर सौ पुत्रों का वर माँगा। यमराज को अंततः सत्यवान का जीवन लौटाना पड़ा। इस कथा का सार यह है कि एक नारी के संकल्प, प्रेम और तप से मृत्यु को भी झुकना पड़ा।
ज्येष्ठ पूर्णिमा पर इन मंत्रों से उठाएं लाभ
विष्णुजी के लिए: ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
माता लक्ष्मी के लिए: ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
पितरों के तर्पण के समय: ॐ पितृभ्यो नमः, पितृ तृप्त्यर्थं तिलोदकं समर्पयामि।
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