चैत्र नवरात्रि का पर्व आते ही जोबनेर का प्रसिद्ध ज्वाला माता मंदिर भक्तिमय माहौल से गूंज उठता है। राजस्थान के इस प्राचीन शक्तिपीठ में देवी सती के घुटने की पूजा की जाती है जो भक्तों की अपार आस्था का केंद्र है। यहां मूर्ति नहीं बल्कि एक गुफा में प्रकट हुई प्राकृतिक आकृति की पूजा होती है। नवरात्रि के दौरान लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं अखंड ज्योत जलती रहती है और चांदी के बर्तनों में भव्य आरती होती है। आस्था, परंपरा और भक्ति के इस संगम में हर भक्त दिव्य ऊर्जा का अनुभव करता है।
मां सती के घुटने की होती है पूजा
जयपुर जिले के जोबनेर कस्बे में स्थित प्राचीन ज्वाला माता मंदिर में चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होते ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। यह मंदिर बहुत खास है क्योंकि इसे शक्तिपीठ माना जाता है। मान्यता है कि जब भगवान शिव माता सती के शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे तब उनके शरीर के अलग-अलग अंग धरती पर गिरे। जोबनेर में माता सती का घुटना गिरा था इसलिए यहां ज्वाला माता मंदिर बनाया गया। इस मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है। बल्कि मंदिर की गुफा में खुद ही माता के घुटने की आकृति बनी हुई है जिसे भक्त श्रद्धा से पूजते हैं।
📍 Jwala Mata Temple, Jobner (Rajasthan)
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— Mahesh Giri Goswami🍁 (@MaheshG91157283) October 4, 2024
अखंड ज्योत और चांदी के बर्तनों में आरती
मंदिर की सबसे अनोखी परंपरा यहां स्थित अखंड ज्योत और चांदी के बर्तनों में होने वाली आरती है। मंदिर के गर्भगृह में वर्षों से अखंड ज्योत जल रही है जिसे भक्त अपनी आस्था का प्रतीक मानते हैं। माता के श्रृंगार में विशेष रूप से सवा मीटर की चुनरी और पांच मीटर के कपड़े से बने लहंगे का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा मंदिर में 200 साल पुरानी नौबत (बड़ा नगाड़ा) है जिसे आरती के समय बजाया जाता है। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं जिससे यहां का माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो जाता है।
इतिहास और लक्खी मेले का महत्व
इतिहास के अनुसार यह मंदिर चौहान काल में संवत 1296 में निर्मित हुआ था और 1600 के आसपास जोबनेर के शासक जगमाल पुत्र खंगार ने इसे और विकसित किया। खंगारोत राजपूतों की कुलदेवी होने के कारण यह मंदिर उनके लिए विशेष महत्व रखता है। नवरात्रि के अवसर पर यहां वार्षिक लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों से भी भक्तजन पहुंचते हैं। नवविवाहित जोड़े माता के दर्शन करने और आशीर्वाद लेने आते हैं जबकि कई परिवार यहां अपने बच्चों का मुंडन संस्कार भी करवाते हैं।
ब्रह्म और रुद्र स्वरूप में होती है पूजा
मंदिर में देवी की पूजा दो स्वरूपों ब्रह्म (सात्विक) और रुद्र (तांत्रिक) रूप में की जाती है। सात्विक पूजा में खीर, पूरी, चावल और नारियल का भोग लगाया जाता है जबकि तांत्रिक पूजा में मांस और मदिरा का भोग चढ़ाने की परंपरा है। हिमाचल प्रदेश स्थित ज्वाला माता मंदिर तक न पहुंच पाने वाले श्रद्धालु भी जोबनेर के इस मंदिर में आकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर और शक्ति साधना का भी प्रमुख केंद्र है, जहां नवरात्रि के दौरान भव्य आयोजन होते हैं।