Ganga Dussehra 2024: पौराणिक कथाओं के अनुसार, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को देवी गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इसलिए इस तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। साल 2024 में यह पर्व 16 जून को यानी आज पड़ रहा है। आइए इस मौके पर जानते हैं, धरती पर देवी गंगा के अवतरण का कारण और उससे जुड़ी पौराणिक कथा।
जब स्वर्ग में बहती थीं गंगा
धर्म ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि धरती पर आने से पहले देवी गंगा ब्रह्माजी के कमंडल में निवास करती थी और वहीं से प्रवाहित होकर स्वर्ग में देवताओं की बीच बहती थीं। तब इनका नाम ‘सुरसरि’ था, जिसका अर्थ होता है- ‘देवताओं की नदी’। यहां प्रवाहित होते हुए वे भगवान विष्णु के चरणों को पखारती थी। इसलिए वे ‘विष्णुपदी’ भी कहलाती थीं।
राजा सगर के 60 हजार पुत्र हुए भस्म
भगवान राम के पूर्वजों में सगर नाम के एक प्रतापी राजा हुए थे। जिनकी दो रानियां थी, जिसमें एक रानी से 60 हजार पुत्र हुए और दूसरी रानी से केवल एक पुत्र हुआ था। राजा सागर ने पृथ्वी पर अपना एकछत्र राज्य स्थापित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ किया। इससे देवराज इंद्र को भय हो गया कि यदि सगर के अश्वमेध यज्ञ का अश्व (घोड़ा) स्वर्ग आ गया, तो स्वर्ग उनसे छिन जाएगा। इसलिए उन्होंने यज्ञ के घोड़े को चुराकर चुपचाप कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। घोड़े की रक्षा कर रहे सगर के 60 हजार पुत्रों ने जब घोड़े को कपिल मुनि आश्रम में बंधा देखा, तो वे कपिल मुनि को भला-बुरा कहने लगे। इससे कपिल मुनि क्रोधित हो उठे और राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों को अपने तपबल से अग्नि में भस्म कर दिया। इससे सभी सगर-पुत्र प्रेत योनि में भटकने लगे, क्योंकि बिना अंतिम संस्कार के राख में बदल जाने से उनको मुक्ति नहीं मिल पा रही थी।
भगीरथ प्रयास से प्रसन्न हुई देवी गंगा
राजा सगर ने अपने पुत्रों को बहुत दिनों तक लौटता न देख अपने पौत्र अंशुमन को उनकी खोज में भेजा। उनके पौत्र अंशुमन उनकी दूसरी रानी से हुए पुत्र पंचजन्य के पुत्र थे। जब अंशुमन को अपने चाचाओं की दुर्गति का पता चला तो उन्होंने कपिल मुनि से क्षमा याचना की और उनके 60 हजार चाचाओं की मुक्ति का रास्ता दिखाने की विनती भी की। कपिल मुनि उनके व्यवहार से प्रसन्न हुए और कहा कि स्वर्गवाहिनी विष्णुपदी गंगा के धरती पर आने के बाद उनके पवित्र जल से ही तुम्हारे 60 हजार पितरों का उद्धार होगा। अंशुमन ने वर्षों तक गंगा को धरती पर लाने की तपस्या की, लेकिन वे उनकी तपस्या सफल नहीं हुई। उनके बाद उनके प्रतापी पुत्र राजा दिलीप ने भी पृथ्वी पर गंगा अवतरण के लिए घोर तपस्या की, लेकिन देवी गंगा मृत्युलोक में आने को राजी नहीं हुईं और उनसे भी यह कार्य संभव न हो पाया। उनके बाद उनके पुत्र भगीरथ ने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए मां गंगा को धरती पर लाने की कठिन से कठिन तपस्या की। अंततः देवी गंगा प्रसन्न हुईं और धरती पर आने को तैयार हुईं। लेकिन अब समस्या कुछ और थी।
इस तरह धरती पर आयीं गंगा
मां गंगा ने भगीरथ ने कहा कि वे स्वर्ग से अति तीव्र वेग से धरती पर उतरेंगी तो इससे धरती उनका वेग सहन नहीं कर पाएंगी, उनके रास्ते में जो चीजें आएंगी, वे नष्ट हो जाएंगी। तब भगीरथ ने भगवान विष्णु से इस समस्या का हल सुझाने की विनती की। भगवान विष्णु ने बताया कि इसका समाधान भगवान भोलेनाथ ही कर सकते हैं। भगीरथ ने अपनी तपस्या से शिवजी को भी प्रसन्न किया। महादेव शिव ने कहा कि वह गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लेंगे, जिससे धरती पर विनाश नहीं होगा। इस तरह से गंगा जब अतिवेग से धरती पर उतरीं, तब देवाधिदेव शंकर ने उन्हें अपनी जटाओं बांध लिया और उसकी कम वेग वाली धारा को भारत भूमि पर प्रवाहित किया। इस तरह भगीरथ प्रयास से गंगा नदी धरती पर प्रकट हुईं और राजा सगर के प्रेत योनि में भटकते पुत्रों का तर्पण पूरा हुआ और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। तभी से हिन्दू धर्म में गंगा नदी पतित पावनी और मोक्षदायिनी मानी गई हैं।
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