Dev Deepawali 2024: सनातन संस्कृति में पुण्यदायी कार्तिक मास के दौरान 3 दीपोत्सव मनाए जाते हैं। इस माह की कृष्ण चतुर्दशी तिथि को जहां छोटी दिवाली मनाई जाती है, वहीं अमावस्या की रात में दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाई जाती हैं। छोटी दिवाली और दीपावली के शुभ मौके पर धरती के मनुष्यों द्वारा दीप जलाए जाते हैं। वहीं, देव दीपावली पर्व धरती पर तो मनाया ही जाता है, लेकिन इस दिन देवताओं द्वारा स्वर्ग में दीपावली मनाई जाती है।
देव दीपावली शुभ मौके पर मंदिरों और देवालयों की विशेष सजावट की जाती है। रंग-रोगन किया जाता है, बंदनवार लगाए जाते हैं और फूलों की रंगोली बनाई जाती है। रात में असंख्य दीप जलाए जाते हैं। ये सब इसलिए क्योंकि कार्तिक पूर्णिमा के रोज देवता दीपावली मनाने के लिए धरती पर आते हैं। आइए जानते हैं, इस साल देव दीपावली मनाने की सही डेट क्या है और साथ ही हम जानेंगे इस त्योहार का महत्व और इससे से जुड़ी कथा?
कब है देव दीपावली 2024?
देव दीपावली की दिवाली के 15 दिनों बाद कार्तिक पूर्णिमा के रोज मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर को सुबह 6 बजकर 19 मिनट पर शुरू होकर अगले दिन 16 नवंबर, 2024 की रात में 2 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि के आधार पर इस साल देव दीपावली का त्योहार शुक्रवार 15 नवंबर, 2024 को मनाई जाएगी।
देव दीपावली की कथा
पुराणों के अनुसार, असुरराज तारकासुर के तीन पुत्र थे – तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। इन्होंने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से 3 अलग-अलग नगरों का वरदान प्राप्त किया। ब्रह्मा जी ने उन्हें सोने, चांदी और लोहे से बने 3 नगर दिए, जो अंतरिक्ष में तरह घूमते रहते थे। इन्हें ‘त्रिपुर’ कहा जाता था और इन नगरों का स्वामी होने के कारण तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली को ‘त्रिपुरासुर’ कहा जाता था। अनंत अंतरिक्ष में घूमते इन तीनों नगरों को एक विशेष शक्ति प्राप्त थी कि ये एक निश्चित समय पर एक सीध में आएंगे, तभी नष्ट हो पाएंगे। ब्रह्मा जी ने यह भी कहा कि जो व्यक्ति एक ही बाण से इन तीनों नगरों को वेध कर नष्ट कर देगा, वही इन असुरों को मार सकेगा। यह वरदान पाकर ‘त्रिपुरासुर’ अजेय हो गए। उन्होंने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया और देवता, गंधर्व, मनुष्य इन सभी को सताने लगे।
त्रिपुरासुर के अत्याचारों से त्राहिमाम होकर देवताओं ने भगवान शिव से उनके आतंक से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। देवताओं की विनती सुनकर भगवान शिव ने एक सुयोग में जब तीनों नगर एक सीध में आए, तो एक बाण से तीनों नगरों को नष्ट कर दिया। इसके बाद एक भीषण युद्ध में त्रिपुरासुर का भी वध कर दिया और वे ‘त्रिपुरारी’ कहलाए।
देव दीपावली का महत्व
भगवान शिव ने यह पराक्रम कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में दिखाया था। पुराणों के अनुसार, इस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने शिव नगरी काशी और स्वर्ग दीप जलाकर में देव दीपावली मनाई थी। तभी से देव दीपावली का त्योहार भगवान शिव की इस महान विजय का स्मरण दिलाता है। इस दिन, देवता प्रकाश के प्रतीक दीप जलाकर भगवान शिव की पूजा करते हैं। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और हमें भी अपने जीवन में प्रकाश फैलाने का संदेश देता है।
वाराणसी की देव दीपावली
त्रिपुरासुर का वध होने और उसके अत्याचार से मुक्ति के पाने के बाद देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के रोज वाराणसी यानी काशी में आकर दीपोत्सव मनाया था। तब से वाराणसी के मंदिरों और गंगा घाटों पर असंख्य दीये जलाए जाते है, जिससे ये घाट दीयों की रोशनी से जगमगा उठते हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि तारे जमीन पर आ गए हों। वाराणसी की देव दीपावली को देखने के लिए पूरी दुनिया से लोग यहां आते हैं।
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