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Religion

Chhath Puja 2025: ‘कदुआ भात’ क्या है, जिससे शुरू होती है छठ की साधना; पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती आ रही है परंपरा

Chhath Puja 2025: छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय के दिन ‘कदुआ भात’ की परंपरा से होती है, जो सिर्फ व्रत की शुरुआत नहीं, बल्कि यह बताता है कि सच्ची पूजा तभी संभव है जब मन और शरीर दोनों पवित्र हों। आइए जानते हैं, क्या है यह परंपरा और इसका महत्व क्या है?

Author Written By: Shyamnandan Author Published By : Shyamnandan Updated: Oct 23, 2025 19:38
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Chhath Puja 2025: छठ पूजा, सूर्य देव और छठी मइया की उपासना का सबसे पवित्र पर्व माना जाता है। यह त्योहार सिर्फ व्रत या पूजा नहीं, बल्कि आस्था, अनुशासन और पवित्रता की अद्भुत मिसाल है। इसकी शुरुआत जिस रस्म से होती है, उसे ‘कदुआ भात’ कहा जाता है। यह परंपरा न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि जीवनशैली और शुद्धता के प्रतीक के रूप में भी बेहद खास है।

आस्था का पहला कदम है ‘कदुआ भात’

छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन व्रती यानी व्रत करने वाले स्त्री या पुरुष, बिना कुछ खाए-पिए स्नान करता है। इसके बाद मिट्टी के नए चूल्हे पर कदुआ भात बनाता है। ‘कदुआ भात’ का मतलब होता है- बिना लहसुन-प्याज और मसाले का शुद्ध भोजन। इसके लिए अरवा चावल का भात बनाया जाता है और इसके साथ कद्दू यानी लौकी की सब्जी खाई जाती है। यही भोजन व्रती के लिए छठ व्रत की शुद्ध शुरुआत मानी जाती है।

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शुद्धता और अनुशासन का प्रतीक

‘कदुआ भात’ सिर्फ एक डिश नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म की पवित्रता का प्रतीक है। छठ व्रत में नियमों की बहुत अहम भूमिका होती है:

  • व्रती के भोजन से लेकर बर्तनों तक सब कुछ नए या पूरी तरह से स्वच्छ होना चाहिए।
  • इस दिन घर का माहौल पूरी तरह सात्विक रहता है।
  • प्याज-लहसुन या किसी तामसिक वस्तु का प्रयोग वर्जित होता है।

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यह रस्म व्रती को संयम और साधना की मानसिक तैयारी देती है। यही वजह है कि इसे छठ की साधना का पहला चरण कहा जाता है। इस दिन लोग कदुआ यानी लौकी का दान देते हैं और सगे-संबंधियों के यहां लौकी देने जाते हैं। मान्यता है कि इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।

धार्मिक और वैज्ञानिक कारण

धार्मिक दृष्टि से ‘कदुआ भात’ शरीर और आत्मा को पवित्र करने का प्रतीक है, ताकि व्रती सूर्य उपासना के योग्य बन सके। वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो, बिना मसाले और हल्के भोजन से शरीर डिटॉक्स होता है। पाचन तंत्र अगले कुछ दिनों के उपवास के लिए तैयार हो जाता है। इस प्रकार यह परंपरा शरीर, मन और आत्मा, तीनों की शुद्धि का संगम है।

पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती आ रही है परंपरा

बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों में सदियों से यह रस्म निभाई जा रही है। आज भी चाहे लोग कहीं भी रहें, कदुआ भात की यह परंपरा उन्हें अपनी मिट्टी, अपनी संस्कृति और छठ मइया की आस्था से जोड़ती है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है और केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.

First published on: Oct 23, 2025 07:12 PM

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